gulabo - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

गुलाबो - भाग 24

भाग 24


पिछले भाग में आपने पढ़ा कि जय, रतन से मिलने उसके घर जाता है। रतन से अपनी दिल की परेशानी बताता है। रतन उसे सुझाव देता है की वो पास के शहर में चला जाए और रज्जो भौजी की जांच करा ले सब पता चल जायेगा। जय रतन की बात मान रज्जो को ले कर शहर जाता है। अब आगे पढ़ें।

जय रतन के बताए अनुसार रज्जो को ले कर पास वाले शहर जाता है। वहां के जिला अस्पताल में वो बड़े डॉक्टर साहब को दिखाता है। डॉक्टर रज्जो की जांच करते है। रज्जो की परेशानी पूछते है।

रज्जो डॉक्टर साहब से बताती है की उसे भूख नहीं लगती। कुछ भी खाने का मन नहीं करता। और आलस घेरे रहता है। हर वक्त कमजोरी और सुस्ती महसूस होती है।"

डॉक्टर साहब उसे बताते है की इस हालत में ये सब होता है। वो मां बनने वाली है। इसी कारण ये सब उसे महसूस हो रहा।

रज्जो डॉक्टर साहब की बात सुन रो पड़ती है। जगत रानी के सच को झूठ कहने से उसे भी सच झूठ ही लगने लगा था।

जय रतन के बताए अनुसार डॉक्टर साहब से बात करता है की किसी तरह क्या बच्चे की फोटो (एक्स रे)

दिख सकती है..?

पहले तो डॉक्टर इनकार करते है, हो सकता है बच्चे को कोई नुकसान हो जाए। पर फिर उस दंपत्ति की अलभ्य इच्छा और देख कर राजी हो जाते है। वो रज्जो को ले कर एक कमरे में जाते है। जहां बड़ी सी मशीन लगी रहती है। रज्जो को नर्स एक चोंगा नुमा हरा कपड़ा पहनने को देती है। फिर डॉक्टर साहब रज्जो को उस मशीन के सामने खड़ा कर देते है। बस कुछ सेकंड में ही फोटो खिंच जाती है। डॉक्टर उन्हे घर जाने को बोलते है और दो दिन बाद आने को बोलते है।

रज्जो और जय देर शाम तक घर आ जाते है। जगत रानी जली भुनी दरवाजे पर बैठी रहती है। रज्जो और जय को देखते ही विष बुझे शब्द बोलने लगती है,

"अब जब बाल बच्चे नही हो रहे तो जिंदगी भर इनकी गुटर गूं ही चलती रहेगी। हां…! अब कोई जिम्मेदारी तो है नही..? घूमते डोलते रहो गली गली।"

जय मां के तानों को अनसुना कर रज्जो के साथ अंदर आ जाता है। आने जाने से थकी रज्जो की हिम्मत नही होती कुछ भी पकाने की। जय रज्जो से कहता है कि परेशान ना हो वो खिचड़ी बना लेगा। वही खा के दोनो सो जाते है।

किसी तरह रिपोर्ट के इंतजार में दो दिन कटते है। जय रिपोर्ट लेने एक बार फिर शहर जाता है। डॉक्टर से मिलता है रिपोर्ट ले कर। डॉक्टर साहब उसे समझाते हैं की ये बच्चे का सर है और ये है उसका हाथ पैर। जय को ये देख कर यकीन नही होता। ये… उसका बच्चा है..?

उमंग से भरा जय एक हांडी रसगुल्ले खरीदता है और घर की ओर चल पड़ता है। उसका जी चाहता है की कितनी जल्दी वो घर पहुंच जाए और कितनी जल्दी रज्जो को उसके होने वाले बच्चे की एक झलक दिखा दे।

घर आकर जय सीधा पहले अम्मा के पास जाता है और अम्मा को रसगुल्ले की हांडी पकड़ा देता है। रसगुल्ले जगत रानी की कमजोरी थी। उसे देखते ही उसका मन डावांडोल होने लगता। जगत रानी लपक कर हांडी पकड़ लेती है। फिर जय अम्मा के पांव छूता है। अम्मा को आश्चर्य होता है की ये आज जय को क्या हो गया जो अचानक पैर छू रहा है। कोई तीज त्योहार भी तो नहीं। ना ही कहीं बाहर जा रहा है। फिर ये पैर छूना क्यों..?

वो पूछती है, "क्यों रे…! आज पैर क्यों छू रहा…? जा रहा क्या…?"

जय जवाब देता है, "नही अम्मा.! जा तो दो दिन बाद रहा हूं , पर मां के पांव छूने, आशीर्वाद लेने के लिए जाना जरूरी थोड़े ना है।"

जगत रानी खुश हो जाती है। आशीर्वाद देती है, "जीता रह बेटा…..।"

जय इसके बाद अपने हिस्से वाले घर में चला जाता है।

रज्जो बैठी शाम के खाने के लिए सब्जी काट रही थी। जय रज्जो के पास आकर बैठता है और कहता है, "तुम बेवजह ही घबरा रही थी रज्जो….। डॉक्टर साहब ने बताया है, सब ठीक है। हाथ साफ करके आओ, मैं तुम्हे कुछ दिखता हूं।" रज्जो जल्दी से हाथ पानी से धो कर, आंचल से पोछती हुई आई।

जय ने रज्जो को पास बैठने को कहा और झोले से निकल कर डॉक्टर साहब द्वारा दी गई भूरी भूरी फोटो दिखाने लगा। पर रज्जो को उसमे कुछ समझ नहीं आया। तब जैसे डॉक्टर साहब ने जय को उस फोटो को दिखा कर बताया था, वैसे ही जय रज्जो को बताने लगा। नन्हा सा सिर, नन्हे नन्हे हाथ पैर, अस्पष्ट से नज़र आ रहे थे। रज्जो ने उसे हाथ में ले लिया और अपनी उंगलियों को बच्चे के अंगो पर फिरा कर महसूस करने लगी। आंखो में खुशी के आंसू भर आए थे। रज्जो को ऐसा महसूस हुआ छूते समय जैसे वो वाकई अपने बच्चे को छू रही हो।

रज्जो के मन में उठा आशंकाओं का ज्वार समाप्त हो गया था, अब अगर था तो सिर्फ असीम आनंद और उमंग। साथ में बच्चे के आने की व्याकुलता के साथ प्रतीक्षा।

जय कुछ दिन रुक कर रज्जो को साथ ले कर चला गया। डॉक्टर ने यही राय दी थी। उनका कहना था की मान लो बच्चे के जन्म के वक्त कोई परेशानी हुई तो शहर में तो अस्पताल है, डॉक्टर है, मदद मिल जाएगी। पर गांव में कुछ नही हो पाएगा। इस कारण जय रज्जो को साथ ले कर चला गया।

जगत रानी रज्जो के ऊंचे पेट को उसकी नौटंकी ही समझती रही। पर विश्वनाथ जी को पूरी उम्मीद थी की वो दादा बनाने वाले है। रज्जो कोई नौटंकी नही कर रही। जाते वक्त जय को उन्होंने आश्वासन दिया की घबराना मत बहू का ख्याल रखना। जब जरूरत हो तार दे देना। हम तुम्हारी मां को लिवा कर आ जायेंगे।

जय एक आज्ञाकारी बेटे की तरह पिता की हां में हां मिलाता है। और कहता है जरूर खबर करेगा।


अगले भाग मे पढ़े रज्जो की संतान क्या स्वस्थ पैदा हुई..? वो संतान क्या थी, बेटा या बेटी…? क्या जगत रानी रज्जो और उसकी संतान को देखने शहर गई…? पढ़े अगले भाग में।


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED