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गुलाबो - भाग 23

भाग 23


पिछले भाग में आपने पढ़ा की सास जगत रानी, रज्जो को ताना देती है की मां नही बन पा रही तो वो उसका ढोंग कर रही पेट पर साड़ी लपेट कर। इस बात से आहत रज्जो बिखरने लगती है उसे सास की ही बात सच लगने लगती है। वादे के मुताबिक जय जल्दी ही घर आता है। अब आगे पढ़े।


इधर जय को अकेले पाते ही जगत रानी उससे भी वही बात कहने लगी बोली, "जय बेटा तू शादी को राजी नहीं होता..? और तेरी ये रज्जो पेट पर साड़ी बांधे घूम रही है। अब साड़ी बांध कर पेट तो ऊंचा दिखा देगी। पर बच्चा कहा से लाएगी..? क्या साड़ी बांधने से तेरा वंश चल जायेगा..? तू बाप बन जायेगा…?"

जय को अम्मा की बातें बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रही थीं। पर वो मजबूर था सुनने को। वो संकोची, शर्मीला, आज्ञाकारी बेटा कैसे उन्हें बताता की अम्मा तुम इस बार गलत हो..?

वो चुप चाप उनकी बातें सुनता रहा और मन ही कुछ गुनता भी रहा। फिर बोला, "अच्छा अम्मा..! मैं कुछ देर के लिए रतन के यहां जा रहा हूं.।"

फिर जय रतन के घर चला गया।

जय रतन के घर पहुंच कर अपने घर में उठ रहे तूफान को विस्तार से रतन बताया और उसकी राय मांगी।

जय बोला, "रज्जो को ले कर आया तो इस लिए था की अम्मा उसकी अच्छे से देख भाल करेंगी। पर अम्मा ने तो उसका जीना मुश्किल कर दिया है। जिस समय उसे खुश रहना चाहिए। उस समय वो इतने तनाव से गुजर रही है।"

रतन ने सुझाव दिया कि, "अभी मित्र तुम रज्जो भौजी को ले कर वापस चले जाओ। फिर जब एक महीना बाकी रहे तब तुम वापस आ जाना उन्हें ले कर।"

फिर रतन कुछ देर तक सोच कर बोला, "जय यार मैंने एक ऐसी मशीन के बारे में सुना है, जिससे शरीर के अंदर का सब.. कुछ.. पता चलता है। मैं अपने बेटे को दिखाने पास वाले शहर गया था तो वहां लोगो से उसके बारे में सुना। सुन..! तू भी ऐसा कर भौजी को ले कर शहर चला जा और उस मशीन से जांच करवा ले। सब पता चल जायेगा और भौजी को जी आशंका हो गई है वो भी दूर हो जायेगी। इस हालत में उनका खुश रहना बहुत जरूरी है।"

जय रतन से उस अस्पताल और डॉक्टर के बारे में पूरा विवरण ले लेता है। फिर वो रतन से कहता है की कल ही वो रज्जो को लेकर पास के शहर जायेगा और रज्जो को दिखाएगा। रतन के घर आ कर जय को अपनी समस्या का हल मिल गया था। अब वो थोड़ा निश्चिंत हो गया था। रतन से विदा ले वो अपने घर चल देता है।

जय जब कभी पहले भी किसी समस्या से गुजरता था तो उसे रतन ही नज़र आता था उसे बांटने के लिए। आज भी उसे इस समस्या को किसी को बता कर दिल हल्का करना हुआ तो रतन ही नज़र आया। और सदा की भांति रतन ने उसे समाधान भी दे दिया। जय को गर्व था रतन पर, उसकी दोस्ती पर, उसके सुझाए रास्ते पर। अब वो हल्की मुस्कुराहट होठों पर लिए, कुछ गुनगुनाता हुआ, मस्ती से घर की ओर चला जा रहा था।

इसी मूड में वो घर पहुंचा। अंदर गया तो देखा रज्जो अपने बिस्तर पर निढाल सी लेटी हुई थी। जैसे उसे किसी के आने की खबर ही नहीं हुई हो। जय पास आकर बिसार पर बैठ गया और रज्जो का हाथ धीरे से छूते आवाज दी, "रज्जो…!? रज्जो…?! सो रही हो क्या..?"

रज्जो ने जय की आवाज सुन धीरे से अपनी पलकें ऊपर की और मंद स्वर में बोली, "नही तो…. बस आंखे बंद कर लेटी हूं।"

जय को करीब बैठा देख रज्जो उठा कर बैठ गई।

जय बोला,"तबियत ठीक नहीं लग रही क्या…? ना.. लगती हो तो लेटी रहो।"

रज्जो ने "ना" में सिर हिलाया और बोली, "ठीक हूं ; बस थोड़ी सी थकान सी लग रही।"

फिर जय ने रज्जो के बहुत रोकने के बाद भी उसे को खुद अपने हाथो से चाय बना कर पिलाई। चाय पीते पीते जय ने रज्जो को पूरी बात बताई। वो रतन के घर गया था और रतन ने उसे शहर वाले डॉक्टर और मशीन के बारे में बताई। जय ने रज्जो को कहा कि सुबह तड़के ही तैयार हो जाए । हम दोनो डॉक्टर को दिखाने शहर चलेंगे। मुझे तो कोई शक नहीं है तुम्हारे मां बनने पर। पर तुम्हारे भरम को दूर करना जरूरी है। जो अम्मा की ऊल जलूल बातों से तुम्हारे दिमाग में पैदा हो गया है।

रज्जो ने अपनी आशंका जाहिर की, वो बोली, अम्मा से पूछा है…? उन्होंने कह दिया जाने को..?"

जय का मूड उखड़ गया। वो बोला, "ना तो पूछा है अम्मा से; ना पूछूंगा। उनके कारण ही तो सब हो रहा है। मुझे किसी की इजाजत नहीं चाहिए। बस तुम सुबह तैयार रहना। हम बिना किसी से बताए तड़के ही निकल जायेंगे। फिर शाम तक वापस आ जायेंगे।"

उस शाम जय रज्जो को कोई काम नहीं करने देता। खुद अपने हाथों से कटहल की सब्जी बनाता है। पूरा खाना परोस कर पिताजी को खिलाता है। उनके खाने के बाद वो अपना और रज्जो का भी खाना परोसता है। दोनो साथ बैठ कर खुशी खुशी खाते है। रज्जो के चेहरे की मुस्कान जय को एक नई स्फूर्ति दे रही थी। सुबह जल्दी उठना था। इस कारण वो जल्दी सो गए।

सुबह तड़के उठ कर रज्जो नहा धो कर तैयार हुई। बस सुबह सुबह ही शहर के लिए जाती थी। देवी मां की पूजा की और सास जगत रानी से डरते डरते घर से बाहर निकली। ये रज्जो का सौभाग्य था की जगत रानी उस वक्त। रज्जो और जय विश्वनाथ जी से धीरे से कम का बता कर शहर चले गए।


अगले भाग मे पढ़े, क्या जगत रानी जन पाई की रज्जो कहां गई है…? क्या रज्जो की वो जांच हो पाई जो रतन ने बताई थी…? क्या सच था…? रज्जो का अनुमान या जगत रानी का..? जानने के लिए आधे रहे।

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