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गुलाबो - भाग 8

भाग 8


रज्जो पति,देवर और ससुर के साथ शहर पहुंची। गंभीर रज्जो को बाहर के माहौल से कोई लेना देना नही था। वो वहां पहुंच कर जल्दी ही अपनी छोटी सी गृहस्ती में रम गई। खाना पीना और घर का सारा काम तो गुलाबो भी करती थी। पर रज्जो की बात ही अलग थी। वो बेहद कुशलता से झट पट सारे काम निपटा देती। उन्हें साथ ले जाने टिफिन भी देती। जबकि गुलाबो सिर्फ सुबह ही उन्हें कुछ बना कर खिला पाती थी। रज्जो ज्यादा बातूनी नही थी तो पास पड़ोस की महिलाओं से भी कोई खास लगाव नहीं रक्खा था। उस समय का सदुपयोग वो घर की साफ सफाई और दूसरे कामों में करती।

इधर गुलाबो रज्जो के जाने के बाद हर पल चिड़ चिड़ाती रहती। जगत रानी जो रज्जो के रहने पर एक काम भी हाथ नही लगाती थी। अब उसके लिए मुसीबत बन गया था रज्जो को भेजना। गुलाबो उठती तो बड़े ही तेजी से की खाना बना दे। पर रसोई में जा कर जैसे ही कुछ चढ़ाती चूल्हे पर उसे उल्टी जैसा लगने लगता।और अगर न भी लगाता तो भी दौड़ कर नाली पर जाकर जोर जोर से उल्टी का नाटक करने लगती। सास जगत रानी भागी भागी आतीं। जबकी उनका भी ज्यादा चलाना फिरना नही हो पाता था। गुलाबो की तकलीफ देखी न जाती। बहू की पीठ सहलाने दौड़ी आती। मुंह धुलवाती। गुलाबो तो नाटक की कला में माहिर थी ही। उल्टी कर उठती तो सास का हाथ पकड़ बोलती, "अम्मा मुझे कमरे में पहुंचा दो। आंखो के आगे अंधेरा छा रहा है।"

जगत रानी कहती हां.! हां..! बहू अभी पहुंचती हूं। चल फिर हाथ पकड़ कर लाती और कमरे में पहुंचा कर बिस्तर पर बिठा देती।

बिना देर किए गुलाबो तुरंत लेट जाती और सास का हाथ पकड़े पकड़े रोने लगती। रोते हुए बोलती,"अम्मा..! मुझे पता नही क्या हो गया है..? इतनी कम जोरी लग रही है की उठा ही नहीं जा रहा मुझसे। पर मेरे होते आप खाना बनाओ.…? यही सोच कर मैं रसोई में चली गई। पर अब देखो..? कुछ कर भी न पाई। अम्मा अब कैसे काम होगा..?"

फिर बनावटी उठने का नाटक करते हुए कहती, "नही ..! अम्मा..! मैं उठती हूं। चल रही हूं। अभी खाना बनाती हूं। आपको भूख भी लगी होगी।" अपने मासूम चेहरे पर बेचारगी के भाव लाते हुए गुलाबो सास की आखों में देखते हुए कहती।

रज्जो की तरफ से कोई खुश खबरी न मिलने से मायूस जगत रानी को गुलाबो ने बहुत बड़ी खुशी दी थी। वो नही चाहती थी की किसी भी कारण से गुलाबो या उसके पेट में पल रहे बच्चे को कोई नुकसान हो। आखिर उनका वंश आकर ले रहा था गुलाबो के अंदर। वो नही चाहती थीं कि गुलाबो को कोई दिक्कत हो। इसलिए तुरंत ही जगत रानी उसे रोकती हुई बोली, "ना.! गुलाबो तू रहने दे। तेरी तबियत ठीक नहीं तो कोई जरूरत नहीं है खाना बनाने की।"

"पर अम्मा खाना कैसे बनेगा….?" गुलाबो अपने होठों को सिकोड़ कर प्रश्न किया।

समस्या तो थी पर जगत रानी ने गुलाबो को दिलासा दिया और बोली, "कोई बात नही छोटी. … मैं हूं. ना..! फिर दो जन का ही तो खाना बनाना है। मैं बना लूंगी तू तो बस अपना ध्यान रख। आराम कर।" स्वभाव के विपरीत सास जगत रानी का मृदुल व्यवहार गुलाबो के गले के नीचे नही उतर रहा था। पर जब वो कह रही थी तो यकीन करना ही था। जगत रानी गुलाबो को आज पहली बार छोटी कह कर बुला रही थी। गुलाबो को आराम करने का आदेश देकर जगत रानी उठ कर चली आई। सास के जाते ही गुलाबो मुस्कुरा उठी और एक लंबी अंगड़ाई ले कर लेट गई। जो कभी सोचा नहीं था, आज वो हो रहा था। सास कभी खाना बनाएगी और वो लेटी रहेगी..? ऐसा तो उसने कभी सपने में भी नही सोचा था। यही सोचते सोचते वो सुकून से सो गई।

इधर जगत रानी रसोई में चली तो आई, पर एक लंबे अरसे बाद उसने रसोई में पांव रक्खा था। उसे कुछ समझा नहीं आ रहा था क्या करे..? आखिर शुरुआत कहां से करे..? भले ही दो जन का खाना था पर बनाना तो सब कुछ था ही। बड़ी मुश्किल से दाल की मटकी (पहले गांव में मिट्ठी के मटकों में ही राशन रक्खा जाता था) ढूंढ कर चूल्हा जला कर दाल पकने को रख दी। फिर चावल धो कर बटुए में चढ़ा दिया पकने को। चावल पकते पकते चूल्हे में इतनी आग बन गई थी की उसमें आलू, बैंगन भुना जा सके। आलू बैंगन भुनने को डाल जगत रानी ने थोड़ा सा आटा भी गूंथ लिया रोटी के लिए। बस अब पूरा खाना तैयार था। रोटी सेंकने शुरू करते ही जगत रानी ने जोर से आवाज लगाई, "गुलाबो..! आजा खाना बन गया है, खा ले।" इधर गुलाबो आराम से नींद खींच रही थी। ऐसा सुनहरा अवसर उसकी जिंदगी में पहले ना आया था, ना अब आगे आयेगा।

जब कई बार आवाज लगाने के बाद भी गुलाबो ने कोई जवाब नही दिया तो जगत रानी को लगा की शायद कुछ ज्यादा ही तबियत खराब हो गई है। इस लिए थाली में खाना निकाला और गुलाबो के कमरे की ओर चल पड़ी। वो इतना सब करने में बिलकुल थक चुकी थी।

एक तो उम्र दूसरे आदत छूट जाने से उसे बहुत भारी लगा ये सब करना। खाने की थाली वहीं बिस्तर पर रख गुलाबो को हिलाया। सास के इस तरह जगाने से गुलाबो जो गहरी नींद में थी। चौंक कर उठी। पर तुरंत ही खुद को नियंत्रित कर लिया। और ऐसा जाहिर करने की कोशिश करने लगी की वो सो नही रही थी। गुलाबो ने चेहरे को भरसक कोशिश कर ये जताने की कोशिश की कि वो काफी तकलीफ में है। आवाज भारी करते हुए बोली, "अम्मा आप कितना परेशान हुई..? मैं क्या करूं मेरी हिम्मत ही नहीं हुई उठने की..?" कहते हुए गुलाबो उठ कर बैठ गई।

राज रानी प्यार जताते हुए बोली, "कोई बात नही गुलाबो... ऐसा होता है इस हालत में। चल छोड़ ये सब तू पहले खाना खा ले।"

गुलाबो बोली, "अम्मा आपने खाना खाया..?"

जगत रानी बोली, "नही री… अभी तो बना ही पाई हूं। मेरी आदत नही न खाना बनाने की इस कारण इतना समय लग गया। ले तू खा ले मैं भी जाती हूं खाने।"

इतना कह गुलाबो को थाली पकड़ा जगत रानी खुद भी खाना खाने चल दी। और जाते जाते बोली, "हां ..! छोटी देख तबियत ठीक महसूस हो तो आ के रसोई समेट देना। मैं तो थक गई।"

गुलाबो बोली, "हां ..! अम्मा।"

इसके बाद राज रानी रसोई में आकर अपना खाना परोस कर खाने बैठ गई। आज दिन उसे बहुत भारी महसूस हो रहा था। उसे लग रहा था रज्जो को भेज कर बड़ी गलती कर दी। अब इतना सारा काम उन्हे खुद करना पड़ रहा है।

इधर अम्मा के जाते ही गुलाबो खाने बैठ गई। भूख बहुत तेज लगी थी। वो जल्दी जल्दी खाने लगी। खाने का स्वाद बिलकुल नया और स्वाद से भर पूर था। आज पहली बार अम्मा के हाथों का बना खाना खाया था। अम्मा इत्ता अच्छा खाना बनाती है ये उसे पता ही नही था। फिर मन ही ये सोच कर मुस्कुरा उठी की, ’मैं नही गई शहर तो कोई बात नही अम्मा के हाथ का बना बनाया खाना तो खा रही थीं। दीदी गई तो क्या हुआ ..? उसे वहां भी तो काम ही करना पड़ता होगा। मेरी तरह थोड़ी ना इस तरह बिस्तर पर बैठ कर खाने को मिलता होगा..? मुझे रोका है ना अम्मा अब करो मेरी सेवा।’

इस तरह सोचते हुए खाना खत्म किया। फिर रसोई समेटने चल दी। धीरे धीरे कर के रसोई साफ कर बर्तन साफ किए। जगत रानी इतना थक गई थी की खाना खत्म कर लेटते ही खर्राटे लेने लगी। बरतन के खटर पटर से जगत रानी की आंख खुल गई। जगत रानी ने आवाज दिया, "गुलाबो जो आराम से कर पा वो कर वरना छोड़ दे किसी को बुला कर करवा लूंगी।" फिर वो खर्राटे लेने लगी। बरतन साफ कर गुलाबो आई तो देखा अम्मा गहरी नींद सो रही। थकान साफ दिख रही थी उनके चेहरे पर। एक तो उम्र हो गई थी दूसरे काम करने की आदत भी छूट गई थी। बेस्ड सोती अम्मा को देख कर एक पल को गुलाबो को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ। उसे अम्मा को इस तरह परेशान नहीं करना चाहिए था। पर फिर दूसरे ही पल ये पछतावा गायब हो गया। आखिर यही तो दोषी है । मुझे यहां रोक कर दीदी को भेजने की। अच्छा किया मैंने। ये तो शुरुआत है अम्मा आप तैयार रहो अब तो रोज हो आपको ये सब करना होगा। अब दादी बनने के लिए कुछ तो परिश्रम करना ही होगा। इन्ही विचारों के साथ वो अपने कमरे में फिर आराम करने चली गई।

वो दिन तो किसी तरह बीत गया। दूसरे दिन फिर गुलाबो को उल्टी आने लगी फिर वो चक्कर से निढाल हो गई। कुछ तो तबियत वाकई गड़बड़ हुई । पर वो दिखवा बहुत ज्यादा बीमार होने का करती। अब जगत रानी की बूढ़ी हड्डियों के बस का तो था नहीं रोज रोज रसोई संभालना। अब उसे रज्जो की कमी खल रही थी। कोई उपाय न देख जगत रानी ने रसोई के लिए महराजिन और ऊपर के कामों के लिए नाऊन रख ली। अब सारा काम वही दोनों करती। गुलाबो के अब मजे ही मजे ही गए। सारा दिन या तो सजती संवरती, या सोती। हां ..! सास को खुश करने के लिए उनके बालो मे तेल कंघी जरूर करती। हाथ,पैर की मालिश भी करती। राज रानी निहाल हो जाती अपनी सेवा से। सख्त स्वभाव राज रानी के दिल में अपनी इस छोटी बहू के लिए एक खास स्नेह उत्पन्न हो गया था। होता भी क्यों ना..? आखिर वो उन्हें दादी बनने की खुशी देने वाली थी। जबकि रज्जो की ओर से वो निराश हो गई थी। रज्जो की शादी के सात वर्ष बीत गए थे लेकिन वो अभी तक मां नही बन पाई थी।

पर गुलाबो के मन में अब अपनी प्यारी दीदी रज्जो के लिए कोई प्यार नही रह गया था। बिना किसी कसूर के ही रज्जो उसकी निगाह में दोषी बन गई थी।


अगले भाग मे पढ़े क्या गुलाबो के मन में रज्जो के प्रति कटुता समाप्त हुई? क्या गुलाबो ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया? वो संतान बेटा था या बेटी..?

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