प्यार हुआ चुपके से - भाग 1 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 1

जबलपुर शहर की तूफानी अंधेरी रात में, एक लड़की खुद को बचाने के लिए हाथ में चाकू लिए बेतहाशा भागे जा रही थी क्योंकि कुछ लोग हाथों में बंदूक लिए उसका पीछा कर रहे थे। तेज़ बारिश में भागते-भागते वो बहुत थक चुकी थी। उसने खुद को संभाल ने के लिऐ एक पेड़ को पकड़ा और बुरी तरह हांपने लगी। तभी उसे जूतों की तेज आवाजे सुनाई दी। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी हो गई और वो अपनी साड़ी जो कीचड़ में लथपथ हो चुकी थी, को पकड़े फिर से भागने लगी। भागते-भागते वो भेढ़ा घाट की पहाड़ी पर आ पहुंची। जहां नर्मदा नदी का पानी पूरे उफान पर था। उस उफनती नदी को देखकर उसके कदम रुक गए और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। वो रोते हुए ज़ोर से चीखी- शिव, कहां है आप?

वो लड़की चीखते हुए वहीं बैठ कर रोने लगी। उसकी आवाज़ सुनते ही उन गुंडों के कदम रुक गए। और उनमें से एक, जो उन सबका लीडर था। अपने साथियों से बोला- ये तो रति की आवाज़ है।

"ये आवाज़ उस तरफ से आईं है पर मुझे समझ नहीं आ रहा शक्ति कि ये शिव को मदद के लिए क्यों बुला रही है? वो यहां कैसे आ सकता है?"- तभी दूसरा गुंडा बोला। उसकी बातें सुनकर शक्ति ने गुस्से में उसकी गर्दन पकड़ी और उसके सिर पर अपनी गन तानकर बोला- तेरी इस बकवास की वजह से अगर ये सोने की चिड़िया मेरे हाथ से निकली तो महादेव की कसम तुझे यही जिंदा गाड़ दूंगा। समझा??? अब चल पकड़ उसे। आज वो हमारे हाथों से निकलनी नही चाहिए।

वो गुंडा घबरा कर उस आवाज़ की ओर चाकू लेकर दौड़ा। बाकी सब भी उसके पीछे ही दौड़ने लगे। रति ने ऊपर आसमान की ओर देखा तो बारिश की बूंदे उसके चेहरे को तेज़ी से छूने लगी।

"प्लीज शिव आ जाइए। आज अगर आप नहीं आए तो आपकी रति नहीं बचेगी। प्लीज आ जाइए।"- रति ने इतना कहा ही था कि वो गुंडे वहां आ गए। शक्ति अपने एक पैर के बल रति के पास बैठा और तीखी सी मुस्कुराहट के साथ बोला- नहीं आएगा वो रति। अब कभी लौटकर नहीं आएगा इसलिए भूल जाओ उसे..... और चुपचाप मेरे साथ चलकर पेपर्स साइन कर दो। एकबार मुझे मेरा हक़ मिल जाए। उसके बाद मैं तुम्हें हमेशा के लिए आज़ाद कर दूंगा। प्रॉमिस,

"आज़ाद तो तुम्हें मैं कर देती हूं शक्ति,हमेशा के लिए"- इतना कह कर रति ने अपने हाथ में पकड़ा चाकू उसके पेट में घोंप दिया।

"ए ई ई- शक्ति के सारे गुंडे चीखे और उन्होंने शक्ति को पकड़ा। तभी शक्ति ने रति के सिर से उसके बालों को पकड़कर कहा- साली दो टके की लड़की। तूने शक्ति पर वार किया।

उसने इतना कहा ही था कि रति ने उसके पेट से चाकू को झटके से बाहर खींचा और फिर से उसके पेट में घोंप दिया। तभी शक्ति के गुंडों ने आकर उसे पकड़ लिया। शक्ति अपने एक आदमी का सहारे, अपने पेट पर हाथ रखकर उठ खड़ा हुआ तो उसका एक आदमी बोला - ये तो हमारे हाथ लग गई है। इससे बाद में भी निपटा जा सकता है शक्ति पर पहले मैं तुझे हॉस्पिटल ले चलता हूं।

"नही"- शक्ति उसे खुद से दूर करके चीखा और रति के पास आया। उसने रति के गले को पकड़ा और बोला- एक छोटे से वार से मरने वालों में से शक्ति नहीं है रति इसलिए दोबारा ऐसी गलती कभी मत करना। वरना तुम्हारा वो हाल करूंगा कि तुम्हारी मां भी तुम्हें पहचान नहीं पाएगी।

"वो तो तुम तब करोगे ना शक्ति, जब रति तुम्हारे हाथ लगेगी।"- इतना कह कर उसने शक्ति के गुंडों को धक्का मारा और पहाड़ी से नीचे उफनती नदी में कूद गई। शक्ति ज़ोर से चीखा- रति,

अगले दिन

"ॐ नमः शिवाय...ॐ नमः शिवाय .....ॐ नमः शिवाय" का जाप करते हुए दीनानाथजी ओम्कारेश्वर के घाट पर नर्मदा मैय्या के पानी में डुबकी लगा रहे थे। तीन डुब की लगाकर वो अपनी धोती पकड़े नदी से बाहर आए। फिर उन्होंने वही लगी दुकान से पूजा की एक थाल ली और घाट के किनारे बने भोलेनाथ के मन्दिर में आकर पूजा करने लगे। अपनी पूजा ख़त्म होते ही हाथों में लोटा लिए वो फिर से घाट पर आए। उन्होंने नदी का जल अपने लोटे में भरा और आंखें बन्द करके सूर्य देव को अर्ग देने लगे। अर्ग देने के बाद वो जैसे ही वापस जाने के लिए पलटे तो उनकी नज़र पानी में बह रहे एक कपड़े पर पड़ी। उन्होंने गौर से देखा तो उन्हें पानी में बही चली आ रही एक लड़की नज़र आईं। वो ज़ोर से चीखे- अरे, नर्मदा मैय्या किसी को अपने साथ बहाए ले जा रही है। कोई बचाओ उसे। बचाओ,

दीनानाथजी की आवाज़ सुनते ही वही किनारे पर बैठे कुछ लड़के तुरंत नदी में कूद पड़े। वो लड़की नदी के बहाव में बही चली जा रही थी। वो लड़के तैरते हुए उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे। तभी आसमान में उमड़े बादल भी बरस गए।

नदी में बह रही लड़की को देखने के लिए घाट पर लोगों की भीड़ उमड़ आई थी। सब लोग बस आपस में यही चर्चा कर रहे थे कि वो लड़की बचेगी या नही..... बहुत मशक्कत के बाद एक लड़के ने नदी में बह रहीं लड़की का हाथ पकड़ लिया। उसके हाथ पकड़ते ही बाकी लड़के भी तैरते हुए वहां आ गए। उन सबने मिलकर उस लड़की को पकड़ा और नदी के किनारे पर लाने लगे।

"अरे लाओ... लाओ..... बच्ची को बाहर ले आओ। देखे सांसों ने साथ छोड़ दिया है या बाबा ने बचा लिया इसे"-इतना कहकर दीनानाथजी आगे बढ़े और उस लड़की को बाहर लाने में लड़कों की मदद करने लगे। सबने मिलकर उस लड़की को वही घाट पर लेटा दिया। वो लड़की कोई और नहीं बल्कि रति ही थी। उन लड़कों में से एक ने रति की नाक पर हाथ लगाकर देखा तो उसकी सांसे चल रही थी। वो तुरन्त बोला- पुजारीजी, ये लड़की जिंदा है। इसे उल्टा करो। इसके पेट से जल्दी ही पानी निकालना होगा हमें वरना ज्यादा देर जी नहीं पाएगी।

लोगों ने तुरन्त रति को पीठ के बल लेटाया तो एक लड़का उसकी पीठ दबाकर उसके पेट में भरा पानी निकालने लगा। उसके मुंह से पानी बाहर निकलने लगा। जिसकी वजह से उसे थसका लगा। वहां खड़े सारे लोगो की जैसे जान में जान आ गई। पानी निकलते ही लोगो ने उसे सीधा किया। तभी लोगों की भीड़ देखकर पंडित दीनानाथ की पत्नी वहां आ गई और बोली- सुनिए जी, ना जाने ये बच्ची कहां से बही चली आ रही है। बारिश भी बहुत तेज़ हो गई है। इसे हमारे घर ले चलते हैं वरना बेचारी बचकर भी नहीं बच सकेगी।

"तुम ठीक कह रही हो।"- इतना कहकर दीनानाथजी ने रति को उठाने की कोशिश करते हुए। वहां खड़े लड़कों से कहा- बेटा जरा इस बच्ची को वहां सामने हमारे घर तक पहुंचा दो और अगर हो सके तो कोई किसी डॉक्टर को भी बुला कर ले आओ।

"मैं अभी बुलाकर लाता हूं।"- एक लड़का दौड़ता हुआ डॉक्टर को लाने चला गया और बाकियों की मदद से दीनानाथजी और उनकी पत्नी लक्ष्मी रति को अपने घर ले आए।

दो महीने बाद

ओंकारेश्वर के एक बड़े से मन्दिर में दीनानाथजी ऊंचे स्वर में भोलेनाथ की आरती कर रहे थे। सैकड़ों भक्त वहां आरती में मग्न थे। ढोल-ताशों की आवाज़ के बीच भी आरती का एक-एक शब्द साफ सुनाई दे रहा था। पंडितजी के पास ही उनकी पत्नी और रति भी हाथ जोड़े खड़ी थी। रति ने हलके गुलाबी रंग की प्लेन कॉटन की साड़ी पहनी हुई थी और उसकी लम्बी चोटी उसकी कमर पर लहरा रही थी। उसका गौरा रंग और तीखे नैन नक्क्ष.... उसकी सुन्दरता को बयां कर रहे थे पर उसकी आंखों में एक अजीब सा खालीपन था। वो हाथ जोड़े भोलेनाथ के सामने खड़ी आरती में शामिल तो थी पर वो भोलेनाथ की मूर्ति को ऐसे देख रही थी जैसे उनसे अपने सवालों के जवाब चाहती हो।

तभी मन्दिर के सामने एक कार आकर रूकी। जिसमें से एक अधेड़ उम्र की औरत बाहर आई। हरे रंग की बनारसी साड़ी पहने उस औरत ने अपनी चप्पले वही उतारी तो ड्राइवर ने आकर उनके हाथों में पूजा की थाली देते हुए कहा- मालकिन,आपकी पूजा की थाली.....

उन्होंने मन्दिर की ओर देखते हुए थाली ली और अपनी साड़ी संभाले मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ने लगी। मन्दिर में हो रही आरती की वजह से वहां बहुत भीड़ थी इसलिए वो औरत वही पीछे खड़ी होकर आरती में शामिल हो गई। कुछ देर बाद आरती ख़त्म हुई तो सारे देवी देवताओं का जयकारा मन्दिर में गूंजने लगा। उसके बाद दीनानाथजी सबको आरती देने लगे।

उनके पीछे ही रति भी सबको प्रसाद बांटते हुए चली आरहीथी। आरती और प्रसाद लेकर सारे भक्त एक-एक करके मन्दिर से बाहर जाने लगे। तभी दीनानाथजी की नज़र उस औरत पर पड़ी। वो मुस्कुराते हुए आरती की थाली लिए उनके पास आकर बोले- आरती लीजिए सुमित्रा बहन.......

उस औरत ने आरती ली और अपने चेहरे से लगाकर कुछ कहने जा ही रही थी कि तभी दीनानाथजी बोले- मुझे आपसे कुछ बात करनी है बहनजी...

"हां कहिए ना पंडितजी"- सुमित्रा ने इतना पूछा ही था कि तभी रति वहां आ गई और थाल से एक लड्डू उठाकर उन्हें देते हुए बोली- प्रसाद आंटीजी,

सुमित्रा ने मुस्कुराते हुए प्रसाद लिया तो रति वहां से चली गई। वो उसे जाते देख ही रही थी कि तभी दीनानाथजी बोले- काजल.... काजल नाम है इसका,

"कौन है ये पंडितजी"- सुमित्रा ने पूछा। दीनानाथजी दो पल सोच कर बोले- मेरी भतीजी है.....मेरे छोटे भाई की बेटी.... पढ़ी-लिखी है। नौकरी की तलाश है इसे। मैं इसी के बारे में आपसे बात करना चाहता था।

"कहिए?"- सुमित्रा ने काजल की ओर देखकर पूछा जो अभी भी भक्तों को प्रसाद दे रही थी। दीनानाथजी भी उसकी ओर देखकर बोले- आप तो ओंकारेश्वर के ऊंचे खानदान से है। बहुत से बड़े लोगों में उठना-बैठना है आपका....बहुत जान-पहचान है आपकी इस शहर में। अगर आप इस बच्ची को किसी अच्छी जगह पर काम दिला दे तो बहुत मेहरबानी होगी आपकी.....

सुमित्रा ने दीनानाथजी की ओर देखा और दो पल के लिए कुछ सोचने लगी। दीनानाथजी ने उसका चेहरा देखा तो तुरन्त बोले- बहनजी ज़माना खराब है। ऐसे में जवान लड़की को कहीं भी तो काम पर नहीं लगवा सकता। आजकल के ज़माने में किसी अंजान पर भरोसा भी तो नहीं किया जा सकता पर आपको तो मैं सालों से जानता हूं इसलिए आपसे मदद चाहता हूं। कहीं अच्छी जगह काम दिलवा दीजिए बच्ची को.... अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी। बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है इस पर। बिना नौकरी के अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाएगी।

सुमित्रा मुस्कुराते हुए बोली- आपने मुझ पर भरोसा करके मुझसे मदद मांगी है पंडितजी। मैं आपको निराश नहीं करूंगी पर मैं इस लड़की को कहीं और नौकरी नहीं दिलवा सकती।

सुमित्रा के इतना कहते ही दीनानाथजी उदास हो गए। उनका चेहरा देखकर सुमित्रा मुस्कुराते हुए बोली- वो इसलिए..... क्योंकि काजल कहीं और नहीं बल्की हमारे बेटे के ऑफिस में काम करेगी। सुमित्रा के इतना कहते ही दीनानाथजी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

"समझ नहीं आ रहा बहनजी कि आपका शुक्रिया कैसे करूं। शुक्रिया....बहुत-बहुत शुक्रिया आपका"

सुमित्रा मुस्कुराई- आपको शुक्रिया करने की कोई ज़रूरत नहीं हैं पंडितजी.... सालों से आपके हाथों मेरे घर में दिया जल रहा है। आपकी मदद करके मुझे बहुत खुशी होगी। कल सुबह घर आ जाइएगा और भगवान सत्यनारायण की कथा सुनाकर घर का शुद्धिकरण कर दीजिएगा। काजल को भी साथ ले आइएगा। मैं काजल को वहीं अपने बेटे से मिलवा दूंगी और परसों से काजल हमारे ऑफिस में काम कर सकेगी। दीनानाथजी ने हाथ जोड़कर सिर झुका दिया। ये देखकर सुमित्रा फिर से बोली- अब चलकर हमारी पूजा तो करवा दीजिए।

"जी जरूर,आइए"- इतना कहकर दीनानाथजी, सुमित्रा से महादेव की पूजा करवाने लगे। रति ने जब ये सारी बातें सुनी तो उसने अपनी आंखें बन्द कर ली। वो मन ही मन बोली- समझ नहीं आता शिवजी कि अभी-अभी आपने जो मेरे लिए किया है। उसके लिए आपका शुक्रिया करूं या फिर मुझसे मेरी सारी खुशियां छीनने के लिए आपसे शिकायत करूं?

रति ने इतना कहा और पलटकर भोलेनाथ की मूर्ति की ओर देखा और फिर हाथ जोड़कर वहां से चली गई। अगले दिन सुमित्रा के घर में पूजा की तैयारियां चल रही थी। भगवान सत्यनारायण की पूजा के लिए बड़ा अच्छा मंडप सजाया गया था। घर का हर कोना भी फूलो से महक रहा था। सुमित्रा ने अपने नौकर से कहा- बहादुर ज़रा जाकर देखो। अजय और प्रिया उठे या नहीं?

"जी मालकिन"- बहादुर दौड़ता हुआ सुमित्रा की छोटी बेटी प्रिया के कमरे में पहुंचा। जिसकी उम्र अठारह साल थी। प्रिया अभी भी सो रही थी। बहादुर ने उसे उठाते हुए कहा- बिटिया उठ जाइए, पूजा बस शुरू ही होने वाली है।

प्रिया टस से मस नहीं हुई। बहादुर ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की पर प्रिया नहीं जागी, उल्टा अपने चेहरे को तकिए से ढंककर सो गई। बहादुर हारकर उसके कमरे से बाहर आया और अजय के कमरे में पहुंचा पर अजय वहां नहीं था। उसे बेड पर एक खत रखा हुआ नज़र आया। उसने खत उठाया और दौड़ता हुआ सुमित्रा के पास आया। उसे देखते ही सुमित्रा ने पूछा- उठ गए दोनों?

"मैनें प्रिया बिटिया को उठाने की बहुत कोशिश की मालकिन पर वो नहीं उठ रही है और छोटे साहब,वो अपने कमरे में नहीं है। उनके बिस्तर से ये खत मिला है।"- बहादुर ने इतना कहकर खत सुमित्रा की ओर बढ़ाया। सुमित्रा ने खत लिया और उसे खोलकर मन ही मन पढ़ने लगीं- सॉरी मां..... पर मुझे ऑफिस जाना होगा, बहुत ज़रूरी मीटिंग है आज- आपका अजय

सुमित्रा ने गुस्से में खत की मुट्ठी बांधी और बोली- इन दोनों बच्चों ने तो परेशान किया हुआ है। समझ नहीं आता क्या करूं इनका? एक को सोने से फुर्सत नहीं मिलती और दूसरे से अपना ऑफिस नहीं छूटता....ये भी याद नहीं है इस लड़की को कि इसे स्कूल भी जाना है।

बहादुर वहीं खड़ा उनकी बातें सुन रहा था। सुमित्रा ने जब उसकी ओर देखा तो गुस्से में भड़की- अब यहां खड़े रहकर मेरा मुंह ही तांकते रहोंगे? या जाकर देखोगे कि पंडितजी अब तक क्यों नहीं आए? बहादुर तुरन्त जाने लगा पर वो जैसे ही जाने के लिए पलटा। तो उसकी नजर सामने से आ रहे पंडितजी पर पड़ी।

"पंडितजी आ गए मालकिन"- बहादुर के इतना कहते ही सुमित्रा ने दरवाजे की ओर देखा। वो उठकर पंडितजी के पास आई और हाथ जोड़कर बोली- आइए पंडितजी... मैं आपका ही इंतज़ार कर रही थी। काजल कहीं नज़र नहीं आ रही?

"बाहर आपका बगीचा देख रही है।"- पंडितजी ने जवाब दिया। सुमित्रा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वो तुरंत बोली- आइए, अंदर आइए। दोनों अन्दर आकर पूजा की तैयारी करने लगे। रति बगीचे में लगे रंग-बिरंगे फूलों को छूकर देख रही थी। उन्हें देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई पर जैसे ही वो लाल रंग के गुलाब के पास आई। तो उसकी मुस्कुराहट उदासी में बदल गई। वो घर के अंदर जा ही रही थी कि अचानक उसने उस बड़े से बंगले की ओर देखा और दो पल सोच कर बोली- इतना बड़ा घर है,तो टेलीफोन भी ज़रूर होगा।

रति दौड़ती हुई घर के अंदर आई तो उसने देखा कि घर में सब पूजा की तैयारी में लगे हुए थे। उसने अपने पास से जा रहे एक नौकर से कहा- भईया मैं पंडितजी की बेटी हूं। क्या मैं एक फोन कर सकती हूं?

"जी,वो वहां सामने फोन रखा है।"- नौकर के इतना कहते ही रति दौड़ती हुई टेलीफोन के पास आई। उसने आंखें बन्द करके हिम्मत जुटाई और रिसीवर को कान से लगाकर नंबर डायल करने लगी। नंबर डायल करते ही उसे रिंग सुनाई दी। वो बड़ी ही बेसब्री से किसी के फोन उठाने का इंतज़ार कर रही थी। तभी दूसरी ओर से किसी ने रिसीवर उठाकर कहा- हलो, हम घनश्याम बोल रहे है।

रति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वो कुछ कहने ही जा रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आ गया। उसने तुरंत अपना दुपट्टा रिसीवर पर रखा और दबी सी आवाज़ में बोली- क्या हम शिव बाबू से बात कर सकत है?

"शिव बिटवा को ये दुनिया छोड़े ढ़ाई महीने होने को आए है"- घनश्याम आंखों में आंसू लिए बोला। उसके इतना कहते ही रति की आंखों से भी आंसू बहने लगे और वो मन ही मन बोली- अगर मेरी सांसे चल रही है तो शिव को कैसे कुछ हो सकता है काका? कुछ नहीं हुआ उन्हें। वो लौटकर ज़रूर आयेंगे तभी घनश्याम ने पूछा- आपकी बात किसी और से करवा दूं?

"हां वो मां से....."- रति ने इतना कहा ही था कि तभी दूसरी ओर से सीढ़ियों से नीचे आ रहे शक्ति ने अकड़कर पूछा- किससे बात कर रहे है काका?

शक्ति की आवाज़ सुनते ही रति ने तुरन्त घबराकर रिसीवर नीचे रख दिया और मन ही मन बोली- शिव आपको लौटना होगा..... लौटना होगा आपको...आप ऐसे उस शक्ति को जीतने नहीं दे सकते। प्लीज वापस आ जाइए।

लेखिका
कविता वर्मा