Ye Tumhari Meri Baate - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

ये तुम्हारी मेरी बातें - 8

पिछले भाग में..

" भाभी जी, आप बैठिए मुझे ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ेगा, एक मुवक्किल को टाइम दे रक्खा था अभी याद आया। प्रतिमा वो फाइल निकाल दो चलकर जल्दी से, चलो प्लीज़।"

" कौन सी फाइल?" प्रतिमा ने अभिषेक को घूरते हुए पूछा।

" वही लाल पीली वाली! उठो ज़रा दे दो ना।" बिनती भरे सुर से अभिषेक प्रतिमा को आवाज़ लगाता कमरे में चला गया।

" वकील बाबू की मदद कर दो प्रतिमा, उन्हें देर हो जायेगी तो नुकसान हो जायेगा , जाओ। मेरा अपना ही घर है। बैठी हूं मैं। जाओ जल्दी।"

अब आगे.......

कमरे के अंदर पहुंचते ही नज़ारा कुछ यूं था.....

हमारे वकील बाबू, ज़मीन पर कान पकड़े बैठे थे और उनकी मिश्राईन उनके सामने जलन से लाल पीली हुए मौन धरे खड़ी थीं।
" अरे डांट लो सरकार, दबी ज़ुबान में ही सही। जान रहे, बहुतेई बड़ी गलती हो गई है आज ;मगर एक दम सच्ची कह रहे तुम्हें आराम देने खातिर चाय बनाए थे । तुमसे भला हमारा क्या कंपटीशन बीवी!"

" नहीं नहीं, सालों का तजुर्बा उबाल के पिलाए हो ना , स्वाद तो आना ही था। क्यूं सही कहा ना वकील बाबू!!!"

" प्रतिमा.....(सॉरी मांगने वाली टोन में नाम की गुहार लगाते हुए वकील बाबू बोले)
"अभिषेक!"( दबी आवाज़ में ही सही, लेकिन रौबदार आवाज़ में प्रतिमा ने कहा)

" यार ऐसे मत डांटो, देखो जल्दी से कोई फाइल दे दो हमको लाल पीले रंग की, जैसी तुम्हारी आंखें और गाल हैं इस वक्त! सेम टू सेम मैचिंग कलर की"।

" अपने पैर पे कुल्हाड़ी मत मारिए मिश्रा जी! पछताना ना पड़ जाए।"

" आपने मिश्रा जी कहके पुकार लिया है आज, हम समझ गए, पैर पे कुल्हाड़ी नहीं; हमने कुल्हाड़ी पे कत्थक कर लिया है आज। अब तो साले साहब का ही सहारा है......"

" भईया कहां से बीच में आ गए?"

" अरे मालिक, बजरंगबली तो हमारे साले साहब ही हैं, उनसे ही मदद मांग रहे।"

बाहर से आवाज़ आई....

" मैं भी मदद करवा दूं भईया , फाइल ना मिल रही क्या प्रतिमा को?"

अंदर कमरे में दबी आवाज़ में...

" बाहर जाते हुए अपनी बहन से कहते जाना अगर आज के बाद इसने मेरी मदद करने की बात सोची भी तो!!!"

" शांत भीम शांत! मैं दीदी को समझा दूंगा, तुम आराम से लेट जाओ अभी कमरे में। तुम्हारा ऐसी अवस्था में बाहर जाना उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं रहेगा। डर वर गईं तुम्हारा रौद्र रूप देख कर तो...

" क्या कहा?????"

" डर से ज़ुबान फिसल रही बीवी! तुम भी ना! आराम करो। मैं भाभी को नहीं नहीं मेरी दीदी को उनके घर छोड़ते हुए कुछ देर के लिए बाहर जाऊंगा , आते हुए दीपू के समोसे भी लेके आऊंगा। और कुछ?"

" तिवारी की कुल्फी भी।"

" हां हां क्यों नहीं, स्पेशल वाली लाऊंगा वो भी 2-3। ताकि ये क्षुब्ध ज्वालामुखी शांत हो सके।"

" अभिषेक!!!!"
" आई लव यू टू बीवी!!!"

अपने पति की बात सुन कर वाकई प्रतिमा कमरे से बाहर नहीं आई। उसके चेहरे पर उभरते उसके भाव आज उसके काबू में नहीं थे।
कमरे से बाहर आते हुए वकील बाबू ने अपनी वकालत वाली एक्टिंग शुरू कर दी।

" दीदी!"

अपने लिए दीदी का संबोधन सुनकर जहां एक ओर शुक्लाइन की त्योरियां चढ़ गईं, वहीं अंदर बिस्तर पे लेटी प्रतिमा के चहरे पर बड़ी सी मुस्कान ने कब्ज़ा कर लिया।

" जी, आज आपने इतने मन से भईया कहके पुकारा, अब आपको दीदी के अलावा कुछ और कहने का मन नहीं कर रहा। इतना अधिकार तो देंगी ना आप अपने छोटे भाई को!"

" जी, वो.....

" मैं आपके भाई बनने योग्य नहीं?"

" नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है भईया, आपके जैसा भाई पाकर तो मैं खुद को नसीब वाली समझूंगी।"

" प्रतिमा की तबियत कुछ ठीक नहीं है दीदी, उसको सुला दिया है मैंने, फाइल मुवक्किल को देकर, दवाई लेने जा रहा हूं, माफ करिएगा दीदी, आज की पकौड़ियां उधार रहीं ।"

" अरे!! क्या हुआ प्रतिमा को, चेहरा कुछ था तो उतरा हुआ सा। मैं देखूं? आप जाइए भईया मैं बैठती हूं ना उसके पास!!"

इधर मिश्रा जी ने तो उधर मिश्राइन ,दोनों ने मन ही मन ख़ुद को कोसना शुरू कर दिया। माहोल संभालते हुए वकील बाबू बोल पड़े...

" नहीं नहीं दीदी, थोड़ा सिर में दर्द है , सो जायेगी तो आराम हो जायेगा उसको और मैं दवा लेने जा ही रहा। आप जाइए जीजा जी के आने का समय हो गया।"

" जीजा जी?"

" हां अब जब आप मेरी दीदी हैं, तो शुक्ला जी मेरे जीजा जी ही हुए ना रिश्ते में।" चलिए मैं चलता हूं दीदी।"

" ठीक है भईया, मैं भी चलती हूं फिर, आपके जीजा जी के आने का समय वाकई हो गया है।"

आज शुक्लाइन आईं तो किसी और मकसद से थीं प्रतिमा के घर, लेकिन जाते समय उनके मन में भी आज एक अलग भाव ने जन्म ले लिया था। अब तलक जो प्रतिमा आंखों में चुभती थी, अचानक से तबियत खराब सुन कर उसके लिए भी चिंता के भाव जागृत हो गए थे।
किसी ने सच कहा है, कठोर से कठोर व्यक्ति भी मान सम्मान पा कर मोम की तरह पिघल उठता है।

एक घंटे बाद.......

दो कप गरमा गर्म चाय के कप के साथ दीपू के समोसे ट्रे में सजा कर हमारे वकील बाबू कमरे में दाख़िल हुए।

जा कर देखा, तो प्रतिमा वाकई गहरी नींद में सो चुकी थी।
माथे पर प्यार से हांथ फिराया, तो आधी खुली आंखों से प्रतिमा ने कहा...

" चाय बना दो प्लीज़"

" बेगम साहिबा, आंखें खोलिए और चाय का प्याला हाथों में लीजिए, समोसे ठंडे हुए जा रहे।"

प्रतिमा झट से उठ बैठी, और दोनों ने इत्मीनान से चाय पी।

चाय का आखिरी घूंट पीने के बाद अभिषेक प्रतिमा को एक टक घूरने लगा।

" घूर क्या रहे हो?"

" सोच रहा हूं, जाते जाते जो बोला था वो तो सुना होगा ही तुमने तो कितनी देर बाद बम फूटने वाला है इंतजार में हूं।"

इतना कहकर अभिषेक ने आंखें मीच ली।

" अबकी दीदी आयेंगी तो जो जो कहोगे, सब तरह के पकोड़े बना कर खिलाऊंगी उन्हें। तुम भी ना, क्या सोचते रहते हो मेरे बारे में। इतनी बुरी हूं मैं?"

" भाग्यवान, तुम्हें पाकर धन्य हो गया हूं मैं। तुम और बुरी! ना ना किस कमबख्त ने कहा है ऐसा, बताओ तो। अभी खबर लूंगा उसकी!!"

" ओवर एक्टिंग के पैसे ना कट जाएं वकील बाबू। कंट्रोल करिए। आज दिन कुछ ठीक नहीं है आपका।"

" फिक्र नॉट! अभी कुल्फियां बचीं हुई हैं, थोड़ी देर कुल्हाड़ी पे कत्थक और कर सकता हूं मैं!!!!!"

इतना कहकर हमेशा की तरह हमारे वकील बाबू अपनी जान बचाते हुए फ्रिज की तरफ दौड़ चुके थे और अपने हिस्से की कुल्फी बचाने के लिए प्रतिमा ठीक उनके पीछे थी।


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