कुंडली भाग्य-3
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पिछले भाग में....
" सीधे मुंह बात नहीं कर सकते , तो जाओ मुझे भी कोई शौक नहीं तुमसे मुंह जोरी करने का ।"
" मुझे तो है शौक! जब तक तुम्हारी जली कटी ना सुन लूं, मुझे नॉर्मल फील नहीं होता ! शादी के पहले क्या ही सुकून भरी जिंदगी थी, जब से शादी हुई है, सुकून का एक पल भी मिल जाए तो काटने को दौड़ता है, लगता है कौन सी गलती कर बैठा हूं जो तुम शांत हो! तूफान के पहले की शांति सी महसूस होने लगती है तुम्हारी चुप्पी!"
" तुम्हारी बातें बिना क्वेश्चन मार्क के कैसे खत्म हो रहीं?"
" आज मैं तुम, और तुम मैं जो बन गए हैं।"
(अब आगे...)
"बहुत हो गया, अब और नहीं। तुम और तुम्हारी बातें तुम्हें मुबारक, मुझे माफ करो।"
"ऐसे कैसे माफ करूं, और अपना दिल साफ करूं? "
"मत करो साफ, कहां की बात कहां ले गए तुम। घर के सौ काम होते हैं , तुम्हारे चक्कर में सब धरा का धरा रह जा रहा, मैं भी क्या सोच कर बैठ गई तुमसे बात करने।"
"यही सोच कर बैठी कि चलो आज पति नामक जीव के दिमाग का दही किया जाए , छाछ बना कर पिया जाए , काहे की बात तो अब भी वहीं है जहां थी, तुम्हारे गले में अटकी हुई, वहां से सब बाहर आ सकता है, मेरे लिए जली कटी, चाय के लिए बेवक्त तुम्हारी फरमाइश, लेकिन दो बोल मीठे नहीं निकल सकते, वैसे चाय भी अब तो पी चुकी अब कुंडली भाग्य का परदा फाश करोगी या स्टिंग ऑपरेशन चलाना पड़ेगा तुम्हारे साथ बात निकलवाने के लिए?"
"स्टिंग ऑपरेशन तो तुम्हारे ऊपर चलेगा जैसे तुम्हारे कर्म होने वाले हैं या ऑलरेडी हैं। इसीलिए आगाह करना चाह रही थी की सुधर जाओ लेकिन लगता नहीं है कि तुम सुधरना चाह रहे, किसी ने सही कहा है, लातों के भूत बातों से कहां ही मानते हैं!"
"माते, आपके चरणों में डिफरेंट फ्लेवर की चाय का भोग चढ़ाऊंगा , कृपा करके अब बात बता दीजिए वरना ..."
" वरना क्या अभिषेक ?"
" चाय के साथ प्याज़ की पकौड़ियां भी बना दूंगा और फिर खानी पड़ेगी तुम्हें, और क्या । तुम्हें क्या लगा ,मैं तुम्हें धमकी दे रहा हूं? इतनी मजाल मेरी? इस घर में रहना है मुझे, जिंदा रहना है मुझे! "
"बातें बनवा ले कोई तुमसे! एक दिन इन्ही सब चीजों की वजह से फंसोगे, लिख के ले लो!"
" फंस तो चुका अब और क्या फसूंगा? पटा लिया तुमने मुझे, अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में! तुम्हारे जाल में ये मछली फंस जो चुकी है! हां हां लिख कर लेना है मुझे, चलो कॉपी पेन उठाओ और लिखना शुरू करो, " मैं प्रतिमा, अपने पूरे होश हवास में, अपने पति को अपना भगवान मानते हुए उनके चरणों में अपना जीवन अर्पण करना स्वीकारती हूं और... "
"और!!!!!!"
" और ये मज़ाक यहीं ख़त्म होता है।"
" फिर से कह रहीं हूं, आदत सुधार लो अपनी तुम!"
" फिर से कहो, कहती रहो, अच्छा लगता है....."
" तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता, जब पुलिस पकड़ कर लेके जायेगी ना, तब गाना, फिर से पकड़ो, पकड़ते रहो, अच्छा लगता है....."
" क्या???? पुलिस!!! मुझे क्यों पकड़ कर लेके जायेगी पुलिस! तुमने मेरी शिकायत दर्ज की है क्या? दहेज मैंने मांगा नहीं, प्रताड़ित मैंने किया नहीं, मुफ्त की इतनी चाय गटक चुकी हो, उल्टा मुआवज़ा मिलना चाहिए मुझे! क्यों की मेरी शिकायत?? बोलो!"
" हो गया? या अभी और कोई सवाल या ताना बचा हो तो वो भी पूछ लो और मार लो, वरना कहोगे कि बोलने नहीं देती मैं!"
" यार, अब बहुत हो चुका, अब बता भी दो, पुलिस का क्या मामला हो गया, मैंने ऐसा क्या किया है की पुलिस पकड़ कर लेके जायेगी?"
" किया नहीं है तो करोगे, आख़िर कुंडली में लिखा है तो करोगे ही!"
" क्या?"
" तुम्हें सुनाई कम देने लगा है क्या? ये क्या, क्या-क्या लगा रक्खा है कबसे।"
"देवी, तुम्हारे हाथ जोडूं, अब बताई भी दो, माजरा क्या है? पुलिस के नाम से डर लग रहा मुझे, तुम्हारा भरोसा भी नहीं है, चाय में चाय पत्ती ज़्यादा हो जाने pe जो बात करना बंद कर दे, वो कौन सी बात पे पुलिस केस कर दे, कोई सोच भी नहीं सकता!"
" तुम्हें लगता है, मैं तुम पर पुलिस केस कर सकती हूं? इतना ही जानते हो मुझे? यही समझ सके हो मेरे बारे में अब तक!?"
" Focus Pratima, Focus! Please!! पुलिस का मामला है बाबा, तुम मेरे लिए क्या हो, मैं क्या सोचता हूं, गर बता दूंगा तो जज़्बातों की सुनामी में बह जाओगी तुम, और तुम्हारे साथ मैं।"
" Focus Abhishek Focus! कुंडली भाग्य का सवाल है!"
" तुम बाज़ नहीं आ सकती ना, मेरी लाइन मुझे
चिपकाए बिना तुम्हारा दिमाग़ शांत नहीं होता ना! ख़ैर, अब भगवान के लिए सच क्या है, सब बता भी दो, और मुझे इस टेंशन से रिहा करो"
"पहली बात, शुरुवात तुमने की थी, दूसरी बात अब कान खोल कर सुनो,
'मैंने कुंडली भाग्य में पढ़ा है कि मेरा पति जीवन में गलत संगति में फंस कर कुछ ऐसा कर रहा है या सकता है जिससे उसको जेल जाना पड़ सकता है, मेरे ऊपर है तुम्हें सही रास्ते पर लाना, मेरी ज़िम्मेदारी होगी तुम्हें फसने से बचाने की, बस वही फर्ज़ निभा रही हूं। '
" हे मेरे परमात्मा! इतनी देर से इतनी सी बात के लिए इतना सब कुछ सुना दिया? वाह ,नहीं नहीं वाह!
अपने बारे में भी कुछ पढ़ा था? वहां कुछ लिखा था कि क्या जीवन भर ऐसे ही बकवास करोगी या कुछ समय तक के लिए ही ऐसी हो!"
"तुमने मुझे पागल कहा??"
" मेरी इतनी मजाल! मैं तुम्हें पागल कैसे कह सकता हूं, कहने के लिए सोचना पड़ेगा ना, मैं तो सोच भी नहीं सकता कि तुम पागल हो और मुझे भी अपने जैसा पागल बनाना चाहती हो, मैं पागल थोड़े ही हूं, जो ऐसा कुछ सोचूंगा!"
"अभिषेक!"
"प्रतिमा!"
Disclaimer: कुंडली पढ़ कर किसी का भला नहीं हुआ है कभी, कर्म प्रधान बनिए जीवन में। कुंडली के चक्कर में पड़े, तो कहीं आपका भी वही हाल ना हो जो अभिषेक का हुआ।
धन्यवाद ।