15 मई को बच्चों का परीक्षा परिणाम घोषित किया जाना था। बच्चों को परीक्षा परिणाम जानने की बहुत ही उत्सुकता थी। सभी बच्चे आपस में एक - दूसरे से चर्चा करते कि - "मैंने ऐसा लिखा है... मैंने इतना लिखा है... मेरे नम्बर अच्छे आयेंगे...।" इस तरह सभी आपस में वार्तालाप करके परीक्षा परिणाम घोषित होने का बैचेनी से इन्तजार कर रहे थे।
तभी अचानक कक्षाध्यापक कक्ष में आये और सभी बच्चे सचेत और मौन हो गये। कक्षाध्यापक ने कहा कि - "बच्चों! आप सभी को परीक्षाफल जानने की बहुत ही उत्सुकता और प्रतीक्षा होगी। मैं जानता हूँ कि जो बच्चे होशियार हैं, उन्हें परीक्षा में अपना स्थान जानने की बहुत प्रतीक्षा होगी।"
"जी हाँ सर!" सभी बच्चों ने कहा।
कक्षाध्यापक ने कहा कि - "तो ठीक है, मैं सबसे पहले उन चार छात्र - छात्राओं के नाम बताऊँगा, जो परीक्षा में क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ स्थान पर आये हैं।" सभी बच्चे व्यग्रता से एक - दूसरे की ओर देखने लगे। कक्षाध्यापक आगे बोले - "तो सुनो - कक्षा पाँच में दिनेश ने प्रथम और संजू ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया है।" दिनेश और संजू यह सुनकर खुशी से तालियाँ बजाने लगें। तभी कक्षाध्यापक ने फिर कहा कि - " अब तीसरे और चौथे स्थान पर आने वाले छात्र - छात्राओं के नाम सुनो - तीसरे स्थान पर पहुँचा हैं विनोद और चौथे स्थान पर आयी है राजी। इन सबके लिए भी तालियाँ बजाओ।"
सभी बच्चों ने तालियाँ बजाकर चारों छात्र - छात्राओं का स्वागत किया। तभी हेमराज नाम का लड़का खड़ा हुआ और तेज आवाज में बोला - "सर! आपने मेरे साथ गलत किया है। मैं कक्षा में सदा सबसे होशियार रहा हूँ। मैं इन चारों स्थानों से दूर रहा हूँ, क्यों?"
कक्षाध्यापक ने कहा कि - "तुम भले ही कक्षा में सदा होशियार रहे हो, लेकिन तुमने परीक्षा की काॅपियों पर सभी प्रश्न हल नहीं किए हैं, जबकि तुम्हें सभी प्रश्न आते थे। मौखिक विषयों, कला और कार्यानुभव में तुम्हारे सबसे अधिक अंक हैं, शेष अन्य विषयों में इन चारों से सबसे कम। इसलिए तुम पाँचवे स्थान पर आये हो। बच्चों! हेमराज के लिए भी तालियाँ बजाओ।" सभी बच्चों ने हेमराज के लिए तालियाँ बजायीं। हेमराज ऊपरी मन से जरुर मुस्कुराया, लेकिन उसके चेहरे के भाव उसके भीतर के दर्द को व्यक्त कर रहे थे। कक्षाध्यापक ने कहा कि - "हेमराज! मैंने तुमसे अनेक बार कहा कि तुम बहुत धीमे लिखते हो... अपनी लिखावट सुधारो, लेकिन तुमने दोनों ही बातों पर गौर नहीं किया। तुम समझते थे कि मैं तो कक्षा में सबसे होशियार हूँ, इसलिए मैं ही प्रथम आऊँगा। अब देखो - परिणाम तुम्हारे सामने है।" यह सुनकर सभी बच्चे हेमराज की ओर देखने लगे। थोड़ी ही देर में हेमराज के पिता विद्यालय में आये तो कक्षाध्यापक से और बच्चों से उन्हें जब इस बात का पता चला तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। कक्षाध्यापक ने उन्हें हेमराज की सभी विषयों की काॅपियाँ दिखायीं और कहा कि - "जितना मुझसे हो सका, मैंने नम्बर बढ़ाने की कोशिश की, पर इससे अधिक नम्बर बढ़ाना सम्भव नहीं था।" हेमराज के पिता ने जब हेमराज की काॅपियाँ देखीं, तो वह कुछ न कह सके, क्योंकि स्थिति उनके सामने स्पष्ट थी। हेमराज भी यह सब देख रहा था, इसलिए वह भी मौन रहा। कक्षाध्यापक ने कहा कि - "हेमराज! अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। अभी से अगर तुम लिखावट पर ध्यान देकर तेज लिखने का अभ्यास करोगे तो आगे तुम सदा ही प्रथम आओगे। तुम्हें प्रथम आना चाहिए। ये तुम्हारी नियति और अधिकार है। इस अधिकार को तुम्हें कैसे पाना है, इसका मार्ग और तुम्हारी कमजोरी मैंने बता दी है। इसे सुधारो, अन्यथा आगे से फिर यही होगा।" हेमराज और उसके पिता कक्षाध्यापक की बात समझ चुके थे। हेमराज ने अपनी गलती सुधारने का निश्चय किया। हेमराज के पिता ने कक्षाध्यापक को 'धन्यवाद' दिया और हेमराज को लेकर वहाँ से चले गये। कक्षाध्यापक और सभी बच्चे उन दोनों को वहाँ से जाते हुए कुछ छण तक देखते रहे।
संस्कार सन्देश :- हमें अपनी कमजोरियाँ सुधारना चाहिए ताकि हम आगे बढ़ सकें।