जिन्दगी खूबसूरत है दिनेश कुमार कीर द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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जिन्दगी खूबसूरत है

1.
सारे गिले - शिकवे भुलाकर एक बार फिर से मुस्करा दो ।
क्या पता कल ये ज़िंदगी रहे न रहे ।
मेरी इस ज़िंदगी को फिर से एक ख़ूबसूरत मोड़ दे दो ।
क्या पता --- ।
ये ज़िंदगी बहुत ही अनिश्चितता से भरी है ।
इस ज़िंदगी के हर लम्हे को आनंद से जी लो ।
क्या पता --- ।
इस ज़िंदगी को फिर से एक ख़ूबसूरत बचपन में तब्दील कर दो ।
इस ज़िंदगी के कुछ पल बचपन की यादों में जी लो ।
क्या पता --- ।

क्योंकि ये ज़िंदगी आपके चैहरे पर आयी एक ख़ूबसूरत मुस्कान का नाम है ।

2.
प्रेम में प्रेमी सब भुल जाता है...
मान - सम्मान
रुपया - पैसा
जात - बिरादर
बस नही भूल पाता तो प्रेमिका का चेहरा...
और उसके साथ बिताए वो हसीन पल,
जिसकी साक्षी रही हैं।
ये हवाएँ जिन्होंने महसूस किया है,
उनकी नजदीकियों को...
जब - जब उनके प्रेम भरे लम्हों से गुजरी हैं...!

3.
सुंदरता क्या है...?
कोई तुमसे बात करके देखे...।

सहजता क्या है...?
कोई तुमसे मिलकर के देखे...।

सरलता क्या है...?
कोई तुम्हें आत्मकार करके देखे...!

सुनों करेजा...

तुम प्रतिमूर्ति हो स्त्रीत्व की, सभ्यताएँ एवम पीढ़ियाँ तुम्हारे गोद मे फलित एवम पल्लवित होती हैं...!

4.
कभी - कभी ...

खामोशियाँ कितनी अज़ीज़ होती हैं हमे,
कि उनमें किसी की भी, दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं होती,

बस खुद को महसूस करना, खुद की बातों पर गौर करना,
खुद ही के साथ, कुछ पल बांटना अच्छा लगता है,

हंस कर या फिर रोकर ही सही,मगर मन के भीतर उमड़ता सा,
वो सैलाब शांत हो ही जाता है ना जाने क्यों ,

खो सा जाता है मन, खुद में कहीं,
और वो जो घुटन होती है, भीतर कहीं इकट्ठी हुई,

ऐसा लगता है, जैसे धीरे - धीरे कहीं गुम हो रही है,
एक खालीपन सा, जैसे रिक्त स्थान को भरने की कोई उम्मीद सी,

ना भाती हैं फिर बातें किसी की,
ना किसी की तवज्जो अच्छी लगती हैं,

बस एक सफर थोड़ी देर का, खुद से खुद तक बस...

5.
सुनो...
वो भावनाओं की अंगीठी पर विरह की मद्धम आंच में...
धीमे - धीमे जो प्रेम पकता है...
उसका जायका बेहतरीन होता है...
बहुत बेहतरीन...
एकदम कड़क अदरक वाली चाय की तरह...

6.
तुम्हारी सरलता पुण्यता अनंत है
तुमसे प्रेम तो ईश्वर को भी हों जाता
तो भला मुझे कैसे प्रेम तुमसे न होता
मैं इतना बड़ा भाग्य तो लेकर जन्मा नहीं
जो तुम्हारे प्रेम का एक अंश मात्र भी पा सकु
मैं जन्मजा ही अभागा रहा हूँ
पसंदीदा चीजे मेरी रेखाओ मे नहीं
तुमसे प्रेम हैं काशीविश्वनाथ जितना...

7.
बिछड़ गए हैं जो उनका साथ क्या मांगू,
ज़रा सी उम्र बाकी है इस गम से निजात क्या मांगू,
वो साथ होते तो होती ज़रूरतें भी हमें,
अपने अकेले के लिए कायनात क्या मांगू...?

8.
प्रेम बड़ा जीवंत शब्द है - होना ही चाहिए;
क्योंकि सारा जगत प्रेम से जीता है।
तुम जन्मे हो प्रेम से।
तुम जीओगे प्रेम में।
और काश, तुम मर भी सको प्रेम में, तो धन्यभागी हो!
जन्मते सभी हैं प्रेम में, जीते बहुत कम हैं प्रेम में;
और मरते तो कभी - कभी कोई हैं प्रेम में।

9.
हुआ कुछ यूं कि
हम ख़ुद से ही दूर हो गए,
नाम जुबां पर आया भी नहीं तेरा
और तेरे नाम से ही मशहूर हो गए।