मन की बात आप के साथ DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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मन की बात आप के साथ

1.
औरत को आईने में यूँ उलझा दिया गया,
बखान करके हुस्न का, बहला दिया गया.

ना हक दिया ज़मीन का, न घर कहीं दिया,
गृहस्वामिनी के नाम का, रुतबा दिया गया.

छूती रही जब पाँव, परमेश्वर पति को कह,
फिर कैसे इनको घर की, गृहलक्ष्मी बना दिया.

चलती रहे चक्की और जलता रहे चूल्हा,
बस इसलिए औरत को, अन्नपूर्णा बना दिया.

न बराबर का हक मिले, न चूँ ही कर सकें,
इसलिए इनको पूज्य देवी, दुर्गा बना दिया.

यह डॉक्टर, इंजीनियर, सैनिक, भी हो गईं,
पर घर के चूल्हों ने उसे, औरत बना दिया.

चाँदी सोने की हथकड़ी, नकेल, बेड़ियाँ
कंगन, पाजेब, नथनियाँ जेवर बना दिया.

व्यभिचार लार आदमी, जब रोक ना सका,
श्रृंगार साज वस्त्र पर, तोहमत लगा दिया.

खुद नंग धड़ंग आदमी, फिरता है रात दिन,
औरत की टाँग क्या दिखी, नंगा बता दिया.

नारी ने जो ललकारा, इस दानव प्रवृत्ति को,
जिह्वा निकाल रक्त प्रिय, काली बना दिया.

नौ माह खून सींच के, बचपन जवां किया,
बेटों को नाम बाप का, चिपका दिया गया.

2.
उदास सी शाम बहुत है
दर्द में आराम बहुत है
चर्चे उनके हैं खास बड़े,
किस्से हमारे आम बहुत है
खरीद लिए सस्ते में गम
खुशियों के तो दाम बहुत है
इक्के पान के करें भला क्या,
हुक्म के यहां गुलाम बहुत है
बहुत बटोरे झूठ सुर्खियां
सच्चाई हुई गुमनाम बहुत है।
मंजिल बेशक मिली है लेकिन
करने हासिल मुकाम बहुत है।
जंग जीत रही है नफरतें
मुहब्बत पर इल्जाम बहुत है।
मिला सबक ये नजदीकी से
दूर से दुआ सलाम बहुत है।
दुनियां का जो है रखवाला,
जुबां पर उसका नाम बहुत है
3.
सुनो बेवफ़ाई का फ़साना बुरा है
कहते हैं लोग कि जमाना बुरा है

नमक ले कर बैठे हैं मुट्ठी में सब
ज़ख्म यहां सबको दिखाना बुरा है
ना जाने बुरा किस को लग जाएगा
बिना बात यूं मुस्कुराना बुरा है
खुला है दरवाजा चले आइएगा
ख्वाबों में ऐसे आना जाना बुरा है
मेहनत से दौलत सीखो कमाना
दिल दुखा के किसी का कमाना बुरा है
4.
जरा जरा सी बात उछाला ना कीजिए
गमों का बोझ दिल में पाला ना कीजिए

बनकर अश्क बहे तन्हाई में जो सदा
यादों को इस कदर संभाला ना कीजिए

रास हमको आजकल अंधेरे आ गए
रुख से हटा नकाब, उजाला ना कीजिए

जीवन में सांसों का भरोसा क्या भला
हर एक काम कल पे टाला ना कीजिए

रूठकर यूं बार बार जाते हो किसलिए
दम इस तरह से आप निकाला ना कीजिए

5.
मुश्किलों को हराने की ज़िद है
आज फिर मुस्कुराने की ज़िद है

है दूर बहुत ये फलक तो क्या
चांद तारे तोड़ लाने की ज़िद है

रूठ बैठे हैं हमसे जो बेवजह
उन अपनों को मनाने की ज़िद है

बांटकर खुशियां ज़माने में सारी
उदास चेहरों को हंसाने की जिद़ है

चल पड़े गांव से शहर की ओर
बस दो पैसा कमाने की ज़िद है

आंधियों का है जोर मगर फिर भी
रेत के घरौंदे बनाने की ज़िद है

नज़र से नज़र भी मिलाते नहीं जो
उन्हीं से दिल मिलाने की ज़िद है
6.
प्रेम चाहिये तो
समर्पण खर्च करना होगा
विश्वास चाहिये तो
निष्ठा खर्च करनी होगी
साथ चाहिये तो
समय खर्च करना होगा

किसने कहा रिश्ते
मुफ्त मिलते हैं
मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती
एक सांस भी तब आती है
जब एक सांस छोड़ी जाती है

उनके लिए सवेरे नही होते
जो जिन्दगी में कुछ भी पाने की
उम्मीद छोड़ चुके है

उजाला तो उनका होता है
जो बार बार हारने के बाद कुछ
पाने की उम्मीद रखे है