प्रेम गली अति साँकरी - 144 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 144

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भाई से रोज़ बात होती, वहाँ पर पापा का इलाज डॉक्टर्स की काबिल टीम कर रही थी जो भारत के डॉक्टर्स के भी संपर्क में थी लेकिन पापा के स्वास्थ्य में कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा था | सब परेशान !

आज के जमाने में विज्ञान की इतनी तरक्की के बाद मंत्र, तंत्र पर लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है लेकिन आज भी दूर बैठे हुए अपने स्वार्थ के लिए ‘काले-जादू’ का प्रयोग किया जाता है और अपने लाभ के लिए दूसरों का नुकसान करने में लोग पीछे नहीं हटते | न चाहते हुए भी हम सब इन सब बातों पर सोचने के लिए मज़बूर हो रहे थे | किसी से कुछ जिक्र करना यानि आज विज्ञान के इस दौर में, शिक्षित वर्ग में मूर्ख कहलाना | जब अपने साथ कुछ ऐसी वैसी घटनाएं घटित होती हैं तब अनचाहे, अनायास ही हम अपने साथ कुछ घटनाओं को जोड़ लेते हैं या वे स्वयं ही जुड़ जाती हैं | 

कई दिनों से मन बहुत अजीब सा था, वैसे ही नींद का ठिकाना तो कभी नहीं था मेरा लेकिन आजकल तो कितनी भी शरीर व मस्तिष्क से थकान हो जाए, नींद के स्थान पर झटोके आते रहते और मैं कभी बैठकर, कभी लेटकर झटोकों में ही पूरी रात निकाल देती | मन में अच्छे ख्याल आने जैसे बंद ही होने लगे थे और मन वातावरण से भागने को करने लगा था लेकिन कहाँ जा सकती थी? यह स्थिति कई बार मेरे समक्ष आ चुकी थी क्या यह फिर से एक बार पलायन था? क्या उत्पल जैसे दृढ़ व्यक्तित्व ने भी यहाँ से जाकर पलायन ही किया था? वह मेरे झौंकों में भी मेरे सामने झूमता रहता | यदि मैं इस प्रकार की किसी भी बात का ज़िक्र अपनी टीम से करती तब तो वे मेरे लिए भी चिंतित हो उठते | कुछ बातों का केवल अहसास होता है, सब उसको समझ सकें, कैसे संभव हो सकता है ? 

रात के लगभग दो बजे होंगे, हाँ, संस्थान के कुछ दूरी पर एक चार रास्ता था जिस पर हर घंटे बाद समय पुकारता और उतने ही घंटे बजते जो समय होता | इस चार रास्ते को घंटे वाला चार रास्ता कहकर पुकारा जाता था यद्धपि मैं बचपन से उन्हें सुनती आ रही थी लेकिन आदत पड़ने के कारण वे अब ध्यान में भी न आते | हाँ, जब मैं अपने कमरे की प्यारी खिड़की पर जा बैठती और खाली मूड में होती तब रात के समय वे सुनाई देते और उस समय उन घंटों की आवाज़ के सहारे मैं उत्पल के पास पहुँच जाती | इतना भी क्या नखरे दिखाना, बहुत हो गया उत्पल!

मैंने तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं किया था, प्रेम क्यों व कैसे हुआ, नहीं जानती थी लेकिन तुम्हारा प्रेम अच्छी तरह जानती, समझती थी और तुम्हें इस अव्यवहारिक प्रेम से मुक्त करने के लिए न जाने कैसे-कैसे समझाया व अपनी बात कहने की कोशिश की थी लेकिन---बाज़ी तो पलट ही गई थी ;

‘न खुदा ही मिला, न विसाले-सनम !’

इधर भाई अमोल के व्यवहार से मुझे महसूस होने लगा था कि उसको मेरे और उत्पल के बीच के रिश्ते का पहले संभवत:भ्रम ही था लेकिन अब वह जिस प्रकार से मुझसे बात करता, मुझे लगता कि मेरे और उत्पल के बीच के मोह के धागे की रील उसके सामने खुल रही है | वह मुझसे बार-बार कहता कि मैं उसका पता लगाऊँ क्योंकि जब पहली बार यह सब कुछ मेरे साथ नाकाबिले बर्दाश्त हुआ था सबसे पहले उसने ही इस पर एतराज़ किया था | प्रमेश की बहन ने जो बिना किसी रिश्ते, बिना किसी गंभीर निर्णय के बंगाल की नक्काशी के हाथी के मुँह वाले भरी कंगन मुझे पहनाए थे और अम्मा भी उनसे कुछ दिग्भ्रमित सी हो गईं थीं, उत्पल ने बहुत स्पष्ट अपना मत दिया था और वह जानता था कि यह कोई यूँ ही जाने देने वाली बात नहीं थी | इसकी आड़ में कोई पूर्व नियोजित व पक्की योजना थी | 

भाई को यह भी ध्यान था कि उत्पल ने कहा था कि वह जो सब कुछ हुआ है यानि शर्बत पीने से सबका इतना प्रभावित हो जाना, यह केवल प्रमेश से अमी की शादी करवाने की बात नहीं है वरन धन-संपत्ति का लालच है | उत्पल ने कब कहा और कब भाई ने सुन लिया मुझे तो बिलकुल भी पता नहीं चला था क्योंकि मैं उस समय पलायन कर रही थी, हाँ, पलायन ही तो था वह !मैं खुद से भी लज्जित थी और भाई मुझसे सब बातें जन लेना चाहता था | कैसे क्या बताती उसे? पशोपेश में थी | 

अचानक दो घंटे बजने की आवाज़ आई और पूरे ए.सी के चलने के बावज़ूद भी मैं भयंकर पसीने से भीगने लगी तो अपनी खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई | नज़र अचानक बाहर पड़ी, क्या था? मुझे लगा, मेरी खिड़की के बाहर कुछ साए चहलकदमी कर रहे हैं जो कभी मेरे कमरे की ओर दाहिने चल रहे हैं, कभी बाएं !

ये साए अनजाने, अनपहचाने नहीं थे, इन्हें मैं बखूबी जानती थी | मैं अपनी पसंददीदा जगह पर आ बैठी थी और बाहर की ओर टकटकी लगाकर देखने लगी थी जो मुझे कुछ अजीब से आकर्षण में बांधती चली जा रही थी | कुछ ऐसा इशारा हो रहा था जो मुझे अपने कमरे से बाहर निकलने का इशारा कर रहा था लेकिन समझ से परे था और बाँध भी इतनी पक्की डोर से रखा था कि उनींदी नजरें उधर से हटने का नाम नहीं ले रही थीं | 

अचानक पापा का यू.के हॉस्पिटल का बैड दिखाई दिया, अक्सर भाई पापा को वीडियो में दिखाया करता था | समझ में नहीं आया क्यों दिखाई दिया? 

“उत्पल को ढूंढो अमी बेटे!” यह तो पापा की आवाज़ थी और पापा तो बोलने के क्या हिलने की स्थिति में भी नहीं थे, हम सब यह जानते थे | फिर? 

“अमी! बेटे, हम जैसे विज्ञान के चमत्कार देख रहे हैं और हमें लग रहा है कि हम न जाने विज्ञान के सहारे किन ऊँचाइयों पर चढ़ गए हैं, यह सब ठीक है लेकिन यह भी है कि हमारे पास ईश्वर प्रदत्त ऊर्जा है जो दैवीय है | ”शायद उनकी साँस फूलने लगी थी और वे कमज़ोरी के कारण बोलने में अचानक असमर्थ होने लगे थे | मैंने साफ़ देखा, उनके पास नर्स आई और उन्हें कोई इंजेक्शन दिया | अब पापा चुप थे | मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी बंद खिड़की के पार उस सड़क पार मुहल्ले की ओर देखती रही थी शायद कि पापा की आवाज़ अचानक मेरे कानों में फिर से धीमी-धीमी सी गूंजने लगी | 

“तुम जानती हो कि महाभारत के युद्ध के समय श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था ;

“हे पार्थ !इस विश्व में प्रत्येक जीवित वस्तु एक ऊर्जा द्वारा ही निर्मित है, हर चीज़ दैवीय है | ”

अर्जुन ने आश्चर्य में भरकर पूछा;

“अगर हर चीज़ दैवीय है तब निश्चित ही दुर्योधन के अंदर भी वही ऊर्जा होगी फिर वह नकारात्मक कार्य क्यों कर रहा है? ”

कृष्ण का उत्तर था;”ईश्वर निर्गुण है, दिव्यता निर्गुण है, उसका अपना कोई गुण नहीं “

इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे पास विशुद्ध ऊर्जा है | आप उससे कुछ भी बना सकते हैं, एक दैत्य में भी वही ऊर्जा है जो हमें मारने आता है और एक देवता या मनुष्य जो हमें बचाने आता है, उसमें भी वही ऊर्जा है | बस, कोई सकरात्मकता और कोई नकारात्मकता के तरीके से काम कर रहे हैं | ऊर्जा का न तो निर्माण संभव है और न ही विनाश !केवल इसका रूप बदला जा सकता है | 

मैं अजीब पशोपेश में थी, पापा इतनी दूर से मुझसे बात कर रहे थे? पापा ने कहा था पुराने समय में दूर बैठकर भी रोगी का उपचार किया जा सकता था, यही अब भी हो रहा है। आज की ‘रेकी’ व अन्य इसी प्रकार की विधाएं, इस बात का प्रमाण हैं | इतिहास के पन्नों को पलटकर देखने से पता चलता है कि इस संसार में कब सारी चीजें एक अनुपात में रही हैं? ऊर्जा वही है, उसको क्रियान्वित करने के तरीके गलत, सही दोनों हो सकते हैं | ऊर्जा का तरह तरह उपयोग किया जाता रहा है, आज भी यही हो रहा है | पहले और अब भी स्वार्थसिद्धि व लोलुपता के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है | यह जो कुछ भी है, हो रहा है, हमें हर तरह से नुकसान देने और अपनी भूख का गड्डा भरने के लिए किया जा रहा है | इसको समझना होगा, इसमें फँसना नहीं है | ”

मैं अजीब स्थिति में हो आई, जो पापा हिलने की स्थिति में नहीं हैं, मुझसे बातें कर रहे हैं? उन्होंने यह भी कहा कि जो घटना जीवन में घटित होनी होती है, होती ही है | जन्म लेने वाले हर इंसान को अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है | 

न जाने कितनी देर तक मैं पापा की बात सुनती रही थी और जब खुद को पसीने से लथपथ अपने पलंग पर पाया तब लगा कि शायद वह एक सपना था लेकिन इसको सबको बताना भी संभव नहीं था, पापा ने साफ़ मना किया था कि जो कुछ चल रहा है, चलने दो | वहाँ कार्यवाही हो ही रही है, डॉक्टर्स मेरा ध्यान रख रहे हैँ, जो जैसा होना होगा, होगा | 

हाँ, एक बात में मुझे उनकी रजामंदी दिखाई दी कि ऊर्जा को नकारात्मक रूप से प्रयुक्त करने वालों को समाज के हित के लिए सही आईना दिखाना बहुत महत्वपूर्ण है |