Beti ki Adalat - Part 4 books and stories free download online pdf in Hindi

बेटी की अदालत - भाग 4

आज रात को स्वीटी अपने पापा-मम्मी के कमरे में ही थी। लेकिन वह देख रही थी कि आज दोनों ही शांत थे क्योंकि दोनों के माता-पिता आए हुए थे। कौन क्या कहे। रात के अंधेरे साये ने उन सभी को नींद की गिरफ़्त में ले लिया।

सब गहरी नींद में सोए थे लेकिन स्वीटी की आँखों से नींद कोसों दूर थी। वह कल सुबह का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। उसे सचमुच की अदालत में जाने से पहले ही उसके मम्मी-पापा को रोकना था। कल उसे अपने ही घर में एक अदालत खोलनी थी; जिसकी वकील भी वह स्वयं थी और जज भी। खैर लंबे इंतज़ार के बाद सूरज ने अपनी किरणों को धरती पर बिखेरना शुरू किया। चाँद धीरे-धीरे वहाँ से अपना प्रस्थान कर रहा था। सूरज की लालिमा अपनी मौजूदगी अब दिखा रही थी।

धीरे-धीरे एक-एक करके सभी ने उगते सूरज का स्वागत किया और सब उठ बैठे। नित्य कर्मों से निपटने के बाद सभी ने मिलकर चाय नाश्ता भी कर लिया। आज रविवार का दिन था। अलका और गौरव की भी छुट्टी थी।

दोपहर को खाने के बाद स्वीटी ने सभी से आग्रह करते हुए कहा, “मुझे आप सभी से कुछ बातें करनी हैं। प्लीज सब लोग ड्राइंग रूम में चलो।”

इस समय सब एक दूसरे का मुँह देख रहे थे।

तभी अलका ने पूछा, “क्या बात है स्वीटी? क्या बात करनी है तुम्हें?”

मम्मी वहाँ बैठक में चलो फिर बताऊँगी।

सब लोग स्वीटी का कहना मानकर बैठक में आ गए।

अब स्वीटी ने खड़े होकर बोलना शुरू किया। सबसे पहले उसने कहा, “मैं आज आप सबके सामने मेरी समस्या रख रही हूँ। मैं चाहती हूँ कि मेरी इस समस्या को सुलझाने में आप सब मेरी मदद करें। पापा-मम्मी आप लोग मेरी बातों से नाराज हो सकते हैं लेकिन आपको भी मेरी बातें सुनना पड़ेंगी।”

गौरव कुछ बोलना चाह रहे थे। उनके मुँह से स्वीटी का नाम निकला ही था कि उनके पिताजी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, “गौरव स्वीटी कुछ कहना चाह रही है उसे कहने दो। 18 साल की बच्ची है यदि उसकी कोई समस्या है और वह हमसे मदद चाहती है तो उसे बोलने दो।”

“ठीक है पापा मैं अब बीच में कुछ नहीं बोलूँगा।”

“हाँ स्वीटी बेटा बोलो,” उसके दादा जी ने कहा।

स्वीटी ने कहा, “मेरे पापा-मम्मी मुझे पढ़ने के लिए अमेरिका भेजना चाहते हैं। उन्हें लगता है यहाँ मेरी पढ़ाई में डिस्टर्ब होता है लेकिन मैं ऐसा नहीं मानती। मेरे पापा-मम्मी का हर रोज़ झगड़ा होता है उससे ज़रूर मुझे डिस्टर्ब होता है। पर वे दोनों उसे झगड़े को ख़त्म नहीं करते।”

अलका ने गुस्से में उसे रोकते हुए कहा, “स्वीटी रुक जा चुप हो जा।”

तभी अलका के पिताजी की आवाज़ आई, “अलका तुम चुप रहो, कहने दो स्वीटी को, वह जो भी कहना चाहती है।”

अलका भी चुप हो गई।

स्वीटी ने आगे कहा, “आप लोगों को उनके झगड़े की वज़ह सुनकर बहुत दुख होगा। क्योंकि उनके झगड़े की वज़ह आप लोग हैं।”

वह चारों एक दूसरे का मुँह देखने लगे।

स्वीटी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “मैं बचपन से देखते आ रही हूँ जब भी दादा जी और दादी आते हैं तो मम्मी उनके आने से पहले और जाने के बाद तक भी पापा से रोज़ झगड़ा करती हैं। उनका आना अगर मेरी मम्मी को पसंद नहीं आता तो उसी तरह मेरे नाना-नानी जब भी घर आते हैं तो मेरे पापा को भी उनका आना पसंद नहीं आता। तब उनके आने से पहले और जाने तक पापा-मम्मी का झगड़ा होता है।”

“मैं कई महीनों से यह नोटिस कर रही हूँ कि आप लोगों का आना भी पहले की तुलना में कम हो गया है। क्योंकि शायद आप सब भी जानते हैं कि सच क्या है लेकिन कहें तो कहें किससे। आप भी नहीं चाहते कि पापा-मम्मी में झगड़ा हो। घर में तनाव रहे। मेरे पापा तो इकलौते बेटे हैं। दादा जी और दादी बेचारी कहाँ जाएंगे। नाना-नानी भी मामा-मामी के होते हुए भी अकेले रहते हैं। शायद उनकी भी यही समस्या हो।”

इस समय स्वीटी की आवाज़ के अलावा पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया था। ऐसा लग रहा था कि सभी की निगाहें मानो ज़मीन में कोई छोटी-सी चीज ढूँढ रही हों। एक दूसरे से नज़र मिलाने में वे सभी डर रहे हैं। अलका और गौरव अवाक थे क्योंकि उनके पास कहने के लिए कोई शब्द ही नहीं थे।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः

 

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