पिछल परी माया एक अनसुना किस्सा भूपेंद्र सिंह द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पिछल परी माया एक अनसुना किस्सा

इतने में बंद कमरे में से आवाज आई ,"कोई आ रहा है बच्ची?"
माया ने अपनी आंखें बंद की और अचानक से काले धुएं में बदलकर कहीं गायब हो गई।
इतने में खूंखार सिंह धीरे धीरे दबे पांव वहीं आग के पास में आकर खड़ा हो गया और सामने के उस बंद कमरे को घूरने लगा।
खूंखार सिंह ने चारों और नज़र दौड़ाई लेकिन कहीं भी कोई नज़र नहीं आ रहा था।
इतने में एक और से एक नौकर हाथ में बड़ा सा ताला और चाबी लेकर आ गया और बोला ,"ये कीजिए साहब आपने जैसी ताला और चाबी लाने को कहा था? मैं वैसे ही चाभी और ताला ले आया हूं।"
खूंखार सिंह ने उसके हाथ से ताला और चाबी पकड़ी और चारों और घूरते हुए वापिस मूड गया और नौकर भी उसके साथ में चलने लगा।
नौकर ने हवेली का मुख्य दरवाजा बंद कर दिया।
खूंखार सिंह ने ताला लगा दिया और चाभी अपनी जेब में डालते हुए बोला ,"ये हवेली कभी खुलनी नहीं चाहिए और ये ताला भी।"
नौकर ने चुपचाप हां में सिर हिला दिया।
वहीं एक पेड़ के पीछे रॉकी छिपकर खड़ा इनकी सारी बातें सुन रहा था।
इतने में खूंखार सिंह और नौकर दोनों पीछे मुड़े और वापिस जाने लगे तभी एक जोरदार झटके के साथ में वो गेट खुल गया और ताला खूंखार सिंह के आगे आकर गिर गया।
ये देखकर नौकर की तो जैसे रूह ही कांप गई।
रॉकी भी थोड़ा सा घबरा गया और वापिस पेड़ के पीछे छीप गया लेकिन खूंखार सिंह के चेहरे पर डर का नामोनिशान तक न था मानो की वो पहले से ही जानता हो की ये सबकुछ होने वाला है।
खूंखार सिंह गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींचते हुए बोला ,"माया तुम मान जाओ?"
इतना कहकर खूंखार सिंह ने वो ताला उठा लिया और गुस्से से वापिस हवेली को बंद किया और ताला लगाकर एक लाल रंग का धागा ताले से बांधते हुए बोला ,"अब मैं भी देखता हूं की तुम जहां से बाहर कैसे निकलती हो?"
इतना कहकर खूंखार सिंह वहां से चला गया और नौकर भी डरते हुए उसके पीछे भाग गया।
उन दोनों के जाते ही रॉकी बाहर निकला और बोला ,"तुम्हें क्या लगता है मामा साहब की मेरे होते हुए तुम मेरी माया को इस तरह हवेली के अंदर कैद कर दोगे? ना ना ना.... । बहुत महंगी सजा मिलेगी इसकी तो। अब बदले के लिए तैयार हो जाओ। सबसे पहले तो तुम्हें ही मारूंगा.....।"
इतने में रूपमती उड़ते हुए रॉकी के पास आई और उसके कंधे पर बैठते हुए बोली ,"हवेली का दरवाजा खोलो। अब माया अंदर कैद हो गई है। इस लाल धागे के होते माया की शक्तियां कुछ भी नहीं कर सकती है। हवेली से बाहर निकलने का इसके अलावा और कोई भी रास्ता नहीं है।"
रॉकी धीरे से बोला ,"फिक्र मत करो। मैं अभी कुछ करता हूं।"
इतना कहकर रॉकी दरवाजे के पास में चला गया और एक पत्थर उठाकर ताले से दे मारा लेकिन ताला था की टूटने का नाम ही नहीं ले रहा था।
रॉकी ने अपनी सारी ताकत लगा दी कभी लकड़ी से ताले को तोड़ने की कोशिश की तो कभी किसी बड़े पत्थर से लेकिन ताला जरा सा भी नहीं हिला।
रूपमती पंख फड़फड़ाते हुए बोली ,"चाभी ही लानी पड़ेगी? ताला बहुत बड़ा है ऐसे नहीं टूटेगा?"
रॉकी गेट पर हाथ फेरते हुए बोला ,"तुम फिक्र मत करो माया मैं जल्द ही चाभी लेकर आता हूं। तब तक तुम रेस्ट करो।"
इतना कहकर रॉकी वहां से नानी की हवेली की और चला गया।
हवेली के अंदर अब घना अंधेरा छाया हुआ था।
माया बंद कमरे के दरवाजे पर हाथ फेरते हुए बोली ,"मां फिक्र मत करो। रॉकी मुझे जरूर बचा लेगा और फिर मैं उन्हें चुन चुनकर मारूंगी। मां आप शांत हो जाइए।"
इतना कहकर माया पागलों की तरह हंसते हुए बोली ,"वाह ! राजपूत साहब मान गए तुम्हें। अब देखते हैं की मुझे आजाद करने के लिए तुम किस हद तक जा सकते हो?"

इधर रॉकी वापिस नानी की हवेली में आ गया था।
अंदर मोंटी और बाकी सब नीचे सोफों पर बैठे हुए थे।
एक और कोरिडोर में खूंखार सिंह नानी के पास में खड़ा कुछ बातें कर रहा था।
चाभी उसकी जेब में ही थी जो की दूर से उसे साफ़ नज़र आ रही थी।
रॉकी धीरे धीरे उनके पास चला गया और एक और छिपकर उनकी बातें सुनने लगा।
खूंखार सिंह ,"मां आप फिक्र मत करो। मैं हवेली के ऐसा ताला लगाकर आया हूं की उसे कोई भी खोल नहीं सकता है। मंत्रों का जाप किया है मैने ताले पर। कोई चाहकर भी उस ताले को नहीं खोल सकता है। ऊपर मैंने हनुमान जी का धागा भी बांधा है जो की अघोरी बाबा जी ने मुझे दिया था। इसलिए आप फिक्र मत कीजिए। अब संकट टल चुका है।"
इतना कहकर खूंखार सिंह ने वो चाभी निकाली और नानी के हाथों में थमाते हुए बोला ,"ये चाभी किसी के भी हाथ नहीं लगनी चाहिए। इसे किसी खास जगह पर छुपा दीजिए। मुझे अभी और भी बहुत से काम करने है। आप एक बार के लिए ये काम कीजिए।"
इतना कहकर खूंखार सिंह वहां से चला गया।
नानी ने उस चाभी को अपनी दोनों आंखों से छुआ और कुछ मंत्र पढ़ने लगी।
इसके बाद में नानी वहां से चली गई और एक और छिपे हुए रॉकी के बिलकुल पास से चली गई।
रॉकी नानी के जाते ही उसके हाथ में पकड़ी हुई उस चाभी को घूरते हुए बोला ,"बुढ़िया तुझे ये चाभी तो मुझे देनी ही पड़ेगी? कब तक छुपाकर रखेगी इसे। इस चाभी को हासिल करने के लिए तो मैं कुछ भी करूंगा। कुछ भी।"
इतना कहकर रॉकी धीरे धीरे नानी के पीछे उसके कमरे के पास चला गया।
नानी ने अपने कमरे में जाकर अलमारी को खोला एक और छोटा सा बक्सा निकालकर उसमें चाभी को डाला और बापिस अलमारी में रखकर अलमारी को बंद कर दिया और हनुमान नाम का जाप करते हुए वहां से बाहर निकल गई।
उसके जाते ही रॉकी दबे पांव कमरे के अंदर चला आया और अलमारी को खोलने लगा।
रॉकी ने अलमारी को खोला ही था की तभी किसी के कदमों की आवाज वहां आने लगी।
रॉकी इधर उधर देखते हुए कहीं छिपने की जगह ढूंढने लगा।
इतने में नानी वापिस कमरे में आ गई और चारों और नजरें दौड़ाने लगी जहां उसे कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।
नानी ने अपने साड़ी के पल्लू से बांधी हुई एक चाभी निकाली और अलमारी के ताला लगाते हुए बोली ,"मैं भी ना इस अलमारी को तो लॉक करना भूल ही गई थी?"
इतना कहकर नानी वहां से चली गई।
उसके जाते ही एक और पर्दे के पीछे से रॉकी निकला और गुस्से से बोला ,"अब इस चीज़ की कमी रह गई थी। इस अलमारी के भी ताला लगा दिया है। अब क्या करूं?"
इतना कहकर रॉकी गुस्से से कमरे से बाहर निकला और जाते ही मेघा से टकरा गया और रॉकी मेघा के ऊपर फर्श पर जाकर गिर गया और दोनों के होठ एक दूसरे से टकरा गए।।

सतनाम वाहेगुरु।।