मुजरिम या मुलजिम? - 1 anita bashal द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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मुजरिम या मुलजिम? - 1

" एक 12 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या। क्या हो रहा है हमारे देश में? क्या ऐसे मुजरिम को सजा ए मौत देना चाहिए या नहीं? लेकिन आप यहां देख ही रहे हैं कि कुछ लोग इसे मुजरिम समझते ही नहीं है। उनका कहना है कि वह मुजरिम नहीं है एक मुलाजिम है। लेकिन आज उसे फांसी की सजा दी जा रही है।
लोग अभी भी दो झुट में बटे हुए हैं। कोई स्कूल के टीचर निहाल दत्त को कुमारी मित्तल गोहिल का रेपिस्ट और मर्डरर मानते हैं तो कोई नहीं। आपका क्या कहना है हमें एक बार इस नंबर पर मैसेज करके बताइए। अगर आपका जवाब हां है तो नंबर एक दबाइए और ना है तो नंबर दो दबाइए।"
यह सारी बातें एक न्यूज़ चैनल में टेलीकास्ट हो रही थी। इस चीज को लगभग हर घर के टीवी में लोग देख रहे थे। कुछ लोग निहाल दत्त को गुनहगार मान रहा था तो कोई बेगुनाह। क्योंकि अभी तक उसका गुनाह पूरी तरह से साबित नहीं हुआ था और उसके पहले ही उसे फांसी दी जा रही थी।
न्यूज़ चैनल वालों को अपना एक नया मसाला मिल गया था सबके सामने रखने के लिए। बोलो किसका पूरा फायदा उठा रहे थे और बार-बार इस न्यूज़ को टेलीकास्ट कर रहे थे। लोगों के यह सब सुनकर अपने अपने तरीके से इसका अनुमान लगा रहे थे कि वह खूनी हो सकता है या नहीं।
दूसरी तरफ जेल के अंदर निहाल मायूसी से बैठा हुआ था।उसे बता दिया गया था क्या जो से फांसी होने वाली है लेकिन उसके चेहरे पर मौत का डर नहीं था वह बस उदास था। वह अपनी डायरी में कुछ लिख रहा था जब तीन चार लोग उसके पास आए और उसके आखरी इच्छा पूछने लगे।
निहाल ने उन लोगों की तरफ देखा तो वहां पर एक इंस्पेक्टर एक वकील और उसके पीछे दो-तीन हवलदार आए हुए थे। निहाल ने उस डायरी को बंद किया और बाजू में रखते हुए कहा।
" इंस्पेक्टर सिंह आप से एक रिक्वेस्ट है कि यह मेरी डायरी मेरी 13 साल की बेटी को दे देना।"
इंस्पेक्टर सिंह ने उस डायरी को देखा और फिर से पूछा।
" निहाली हम तुम्हारी बेटी को दे देंगे लेकिन पहले तुम यह बताओ कि तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश क्या है।"
निहाल नेम उदासी से उन लोगों की तरफ देखा और फिर कुछ सोचते हुए कहा।
" मुझे पूरा यकीन है कि मेरी पत्नी आई नहीं होगी क्या मैं उनसे बात कर सकता हूं?"
इंस्पेक्टर सिंह ने हमें सर हिलाया और निहाल से उसकी पत्नी का नंबर मांगा। निहाल को अपनी पत्नी का नंबर मुंह जबानी याद था। उसने फटाफट फोन नंबर निहाल सिंह को दे दिया। निहाल सिंह ने अपने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर डायल करने लगा। कुछ देर तक रिंग बचने के बाद किसी ने फोन उठाया और कहा।
" हेलो क्या मैं अपने पति से बात कर सकती हूं?"
इंस्पेक्टर सिंह ने हैरानी से उस फोन की तरफ देखा और फिर कहा।
" आपको कैसे... हां आप बात कर सकती है।"
इंस्पेक्टर से पूछना चाहता था कि उन्हें कैसे पता कि यह फोन उन्ही की तरफ से गया है। लेकिन उन्होंने यह नहीं पूछा क्योंकि वह वक्त बर्बाद करना नहीं चाहते थे। उन्होंने फोन निहाल के हाथ में पकड़ा दिया।
कुछ देर तक निहाल चुपचाप बैठा रहा। उसे देखकर लग रहा था कि सामने से भी कोई कुछ नहीं बोल रहा है। निहाल कि आंखों से आंसू बहने लगे और अपनी कॉपी हुई आवाज में उसने कहा।
" शांति मैंने कुछ नहीं..."
इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता सामने से आवाज आई।
"जानती हूं। इतना भरोसा है मुझे आप पर। लेकिन आप जानते हो मैं आपके बिना नहीं रह सकती। मैं... मैं... आपके साथ आ रही हूं।"
अपनी पत्नी शांति की यह बात सुनकर चेहरा गंभीर देखने लगा जल्दी से कहा।
"क्या... क्या करना चाहती हो तुम? देखो कम से कम श्रुति के बारे में तो सोचो। वो..।"
" भैया संभाल लेंगे उसे। बहुत बहादुर है वो लेकिन मैं नहीं। भी आपके साथ आ रही हूं।"
कहते हुए उसने फोन रख दिया लेकिन दूसरी तरफ से निहाल फोन पकड़ कर चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था।
" पागल मत बनो। तुम्हें मेरी कसम तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी।"
निहाल ये सारी बातें बोल ही रहा था कि पीछे खड़ी वकील ने अपनी घड़ी की तरफ देख कर कहा।
" वक्त हो गया है इंस्पेक्टर सिंह।"
इंस्पेक्टर सिंह ने देखा कि निहाल अभी भी फोन के ऊपर चिल्ला रहा था जबकि फोंट पहले से ही कट हो गया था। इंस्पेक्टर सिंह ने अपना फोटो खींचते हुए उसके हाथ में से लिया और हवलदार से कहा।
" ले कर चलो इसको।"
निहाल ने हाथ जोड़ते हुए इंस्पेक्टर सिंह से कहा।
" इंस्पेक्टर मैं आपके हाथ जोड़ता हूं देखिए मैं कहीं भाग्य नहीं जा रहा मैं यहीं पर हूं। आप बस मेरे घर पर किसी को भेज दीजिए मेरी वाइफ वहां पर सुसाइड करने वाली है।"
इंस्पेक्टर सिंह ने निहाल की तरफ देखकर हंसते हुए कहा।
" अच्छा तो आज कल इन मुजरिमो ने फांसी से बचने का नया रास्ता निकाला है। मेरी वाइफ सुसाइड कर रही है...तुम चाहे कितने भी नहीं पितृ निकाल लो आज तुम्हारी सजा चलने वाली नहीं है।"
इंस्पेक्टर सिंह ने हवलदार की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा।
" अबे तू क्या सोच रहा है? पकड़ उसको लेकर चल।हमारे पास वक्त नहीं है शाम को जल्दी घर जाना है मेरी साली की सगाई होने वाली है।"
हवलदार ने निहाल को पकड़ा और सब लोग बाहर की तरफ जाने लगे। निहाल बार-बार यही कह रहा था कि मुझे छोटे के लिए नहीं कह रहा हूं बस मेरे घर पर किसी को भेज दीजिए। कम से कम मुझे किसी को फोन करने दीजिए लेकिन कोई उसकी बात नहीं सुन रहा था।
उसे वहां पर ले जाया गया जहां पर उसे आज फांसी होनी थी। निहाल अपने आप को बहुत ही बेबस और लाचार महसूस कर रहा था।
निहाल की पत्नी शांति टीवी ऑन कर दो उसके सामने बैठी हुई थी। न्यूज़ में हर चीज को लाइव कमेंट्री करके बता रहे थे। न्यूज़ एंकर हर हालात को बारीकी से सबको समझा रही थी।
" निहाल दत्त को उस जगह पर ले जाया गया है जहां पर आज उससे दरिंदे को फांसी होनी है। जब उनसे पूछा गया कि उनकी आखिरी ख्वाहिश क्या है तो उन्होंने बताया कि उन्हें अपनी पत्नी से बात करनी है। आखिर इंसान से उसकी पत्नी बात कैसे कर सकती है? आखिर ऐसी क्या बात करनी थी उसे अपनी पत्नी के साथ?"
जैसे ही टीवी में बताया गया कि निहाल दत्त को फांसी के लिए ले जाया जा रहा है तू शांति भी अपनी जगह से उठी और उसने अपनी एक सारी को पंखे के साथ बांध दिया। सारी को भरने के बाद उसने फांसी का फंदा तैयार किया और वापस टीवी की तरफ देखने लगी। न्यूज़ एंकर ने फिर से कुछ देर के बाद कहा।
" खबर मिल गई है कि निहाल दत्त को फांसी पर लटकाया जा चुका है।"
यह खबर सुनते ही शांति ने भी अपने आप को फांसी लगाई और कहा।
" निहाल जानती हो कि तुमने कुछ नहीं किया है। तुम्हें तो बेकसूर साबित करने का मौका भी नहीं दिया गया।मुझे पूरा यकीन है एक न एक दिन यह बात जरूर सामने आएगी लेकिन आज.. तुम बेकसूर साबित हो जाओ बस यही मेरी आखिरी ख्वाहिश है।"
कहते हुए उसने अपने आंसू पोंछे और एक नजर सामने लड़की हुई तस्वीर पर डाली। उस तस्वीर में निहाल और शांति थे और साथ में उनकी 13 साल की बेटी थी। शांति ने एक उम्मीद भरी नजर अपने बेटे की तस्वीर पर डाली और स्टुल को हटा दिया। आखिर निहाल बेकसूर था या गुनहगार? क्या कभी भी निहाल दत्त बेकसूर साबित होगा भी या नहीं?