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अतीत
दो दिन ऐसे ही गुज़र गए। तन्मय अँधेरे कमरे में बैठा हुआ है, हल्की सी रौशनी उसके कमरे में आ रहीं है। उसके हाथ-पैर रस्सी से बंधे हुए हैं। उसे खाना देते वक्त उसक हाथ खोल दिए जाते, हालांकि पानी पीने के अलावा, वह बड़ी मुश्किल से यह सोचकर खाता कि उसे अपनी मम्मी तक पहुँचना है। उसने कई बार पूछा कि उसे यहाँ क्यों लाया गया है। मगर जवाब में उस जूते और घूँसे खाने को मिले, उसे समझ नहीं आ रहा कि वह कैसे यहाँ से निकले। उसे डर भी लग रहा है, साथ ही वह हिम्मत भी बनाए हुए है।
राघव कितने फ़ोन और मैसेज तन्मय को कर चुका है, मगर उसका कोई जवाब नहीं आ रहा है। कल रात को उसने बुरा सपना देखा था कि तन्मय किसी मुसीबत में है। उसके पापा भी उससे तन्मय के बारे में पूछ चुके हैं क्योकि तन्मय का फ़ोन नहीं मिल रहा। वह दो दिन से स्कूल नहीं गया है। उसे डर है कि कही अभिमन्यु ने उसे देख लिया तो तूफ़ान आ जायेगा। इतिफाक से दादाजी किसी काम से दिल्ली से बाहर है और दादी तो सर्दियों में घर से निकलती नहीं। मगर एक दिन बाद क्या होगा? तन्मय से तो बात ही नहीं हो पा रहीं हैं। यही सब सोचते हुए राघव बेचैन हो रहा है।
अभिमन्यु आज दोपहर के बाद मनोरमा के घर जाने के बारे में सोच रहा है। उसने अपनी सारी मीटिंग दोपहर तक निबटा ली और शाम पाँच बजे के करीब वह मॉल से निकल गया। राजीव के वकील ने पूरा ज़ोर लगा दिया कि उसे जमानत मिल जाए, मगर अभी कोर्ट ने उसकी याचिका पर सुनवाई नहीं की। शिवांगी ने रुद्राक्ष को बताया कि जमाल का पहले भी क्रिमिनल रिकॉर्ड है और नंदनी का फ़ोन रिकॉर्ड भी कई कहानियाँ सुना रहा है। रुद्राक्ष ने उसे अपनी तफ्तीश ज़ारी रखने के लिए कहा। सिद्धार्थ नैना की फाइल देखते हुए गहन चिंतन में डूबा हुआ है कि तभी वह अपनी घड़ी देखता है और जाने के लिए उठ पड़ता है। उसे इस तरह जाते देखकर रुद्राक्ष उससे पूछ बैठता है,
क्या बात है, आजकल तुम नज़र नहीं आते? अब भी जल्दी में लग रहें हो?
केस के सिलसिले में ही कही जा रहा हूँ ।
मैंने तुम्हें उस दिन लिफ्ट दी, मगर तुमने फिर भी ऑटो पकड़ लिया ।
पैदल जाने की इच्छा नहीं हो रही थीं।
तो मैं छोड़ ही रहा था, तुम्हे।
मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था। अच्छा मैं चलता हूँ। वह जल्दी से निकल गया।
सर, सिद्धार्थ साहब आजकल एक पहली बने हुए हैं । हरिलाल हँसते हुए बोला।
लगता है, पहेली को सुलझाते हुए खुद पहेली बन गए। उसने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
तन्मय अपने हाथ-पैर रस्सी से खोलने के लिए बहुत कोशिश मार रहा है। मगर उससे कोई फायदा नहीं हो रहा। तभी दरवाजा खुलता है और एक सोलह सत्रह साल का लड़का उसके सामने थाली रखते हुए कहता है, खा ले, फिर जाना भी है।
कहाँ ?
नागपुर
क्यों ? वह हैरान है, वहां के एक दलाल से तेरा सौदा हुआ है।
यह सुनकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसे समझते देर नहीं लगी कि वह किसी मानव तस्करी करने वालो के चुंगल में फँस गया है।
उसने उसे विनती करते हुए कहा, मुझे छोड़ दो, मुझे अपनी मम्मी के पास जाना है और यह कहकर उसने उसे सारी बात बताई। उस लड़के के हाव-भाव एकदम से बदल गए। वह तन्मय को गौर से देखते हुए बोला, तुमने पुलिस को क्यों नहीं बताया, तुम खुद क्यों मरने चले आए।
मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकता, प्लीज मेरी मदद करो।
उसने कुछ सोचा, फ़िर बोला यहाँ से एक रास्ता पीछे गली की ओर भी जाता है। मैं तुम्हें वहाँ ले चलता हूँ। तुम वहाँ से भाग जाना। लेकिन घ्यान से जाना, क्योंकि किसी के हाथ लग गए तो टुकड़े-टुकड़े कर देंगे, तुम्हारे। यह सारा ईलाका संतोष और रुस्तम भाई का है, दोनों मिलकर बच्चे उठाते है और उन्हें बेच देते है या उनको ग़ुलाम बनाते हैं। अब उसने जल्दी से उसके हाथ-पैर खोलने शुरू किए। तन्मय ने आज़ाद होते ही अपना पास रखा, बैग अपने कंधे पर लटकाया । तभी उस लड़के ने जेब से एक चाकू निकाला और उसे देते हुए कहा, इसे अपनी जेब में रखो और उसने उसकी जीन्स की जेब में चाकू डाल दिया।
पर मुझे चाकू चलाना नहीं आता।
जब मौत सामने आएगी , तब चाकू चलाना भी आ जायेगा। अब चलो।
वह उसे उस कमरे से निकालकर बाहर की ओर ले जा रहा है। जहाँ उसे कुछ आदमी दिखे, उसने तन्मय को वहीं एक तरफ छुपा लिया। तन्मय ने देखा कि रास्ते में बहुत से हथियार पड़े हुए हैं, उस लड़के ने कसकर उसका हाथ पकड़ लिया। अभी एक कमरे में मीटिंग चल रहीं है। जहाँ कुछ लोग बैठे हुए है,।
तुम उस कोने में छुपकर खड़े हो जाओ। इस कमरे के आगे से निकलना आसान नहीं है, मैं कुछ करता हूँ। उस लड़के ने पास रखा झाड़ू उठाया और मारना शुरू किया। धूल उड़ने के कारण, अंदर बैठे आदमी ने उसे दरवाजा बंद करने का ईशारा किया। दरवाजा बंद होते ही उसने तन्मय को वहां स निकाला और उस रास्ते की और ले गया, जो बाहर की ओर जाता है।
अब जाओ, यहाँ से इस गली से निकलते ही एक जंगली रास्ता आएगा। उसे पार कर लोंगे तो कुछ पुराने घर दिखाई देंगे। उन्ही किसी घर में तुम्हारी मम्मी होगी।
तुम भी साथ चलो, तुम भी तो यहाँ कैद हो।
मेरी छोड़ो, इन्हें मेरा पता चल गया तो मेरे साथ तुम भी मारे जाओंगे।
पर........
पर पर छोड़ो, तुम्हारा परिवार है, मेरा कोई नहीं है। मेरी यही किस्मत है। अब निकलो यहाँ से । उसने तन्मय को धक्का मारते हुए कहा।
तुम्हारा नाम क्या है?
दिमू, अब भागो यहाँ से।
तन्मय पूरी गति के साथ वहाँ से निकल रहा है। भागते-भागते उसकी साँस चढ़ रही है। अब वह उस जंगल के रास्ते पर पहुँचकर पेड़ के साथ टिककर सांस लेता है, अब तक तो उन्हें मेरा पता चल गया होगा। हे! भगवान, दिमू ठीक हो। उसने अब बैग से पानी की बोतल निकालकर पानी पिया, राघव को फ़ोन किया मगर बैटरी कम होने की वजह से फ़ोन बंद हो गया। उसने फ़िर भागना शुरू किया। तभी एक झाड़ी में उसका पैर अटक गया। उसने पैर निकाला ही था कि किसी ने उसे पीछे खींच लिया। वह ज़ोर से चिल्लाया, छोड़ो मुझे। उस आदमी ने उसके मुँह पर दो चाटे मारे और उसे खींचता हुआ, ले जाने लगा। तभी उसने देखा कि दो और आदमी सामने से आ रहें हैं। उसे अपनी ज़ेब में रखा, चाकू याद आया । उसने झट से उसे निकाला और उसके हाथ पर दे मारा। वह ज़ोर से चीखा, और तन्मय अपना हाथ छुड़ाकर भाग गया। उसे लगा भागने से वह पकड़ा जायेगा। उसने एक घना पेड़ देखा और उस पर चढ़कर उसमें छुप गया। बचपन में नानू के गॉंव में , खेल-खेल में पेड़ पर चढ़ना सीखा था, आज वहीं काम आ गया। किसी ने सच ही कहा है कि ज़िन्दगी में सीखीं कभी कोई चीज़ बेकार नहीं जाती।
वे लोग उसे पूरे जंगल में ढूंढते रहे। हारकर उसी पेड़ के नीचे आकर कहने लगे, "दिमू सही कह रहा था, छोकरा बड़ा तेज़ है, उसे चकमा देकर भाग गया। अब हमे चकमा देकर भाग गया। कमब्ख़त मेरा हाथ जख्मी भी कर गया"। अब वो करहाने लगा, चलो, यार भाड़ में जाए, वो छोकरा, बहुत खून बह रहा है। उसने अपना हाथ पकड़ते हुए कहा। ठीक है, तू जा । हम कुछ देर में आते हैं।
अभिमन्यु ने मनोरमा के घर की बेल बजाई तो एक नौजवान ने दरवाजा खोला,
जी ??
मेरा नाम अभिमन्यु है, मुझे मनोरमा जी का लंदन वाला नंबर चाहिए था, बहुत जरूरी काम है।
मम्मी तो दो सालों से इंडिया में है
पर उनका इंडिया वाला नंबर तो बंद आ रहा है।
नंबर चेंज हो चुका है ।
आप वो नंबर दे सकते हैं, मैं उनसे बात कर लूंगा।
मम्मी अभी घर पर ही है, आप अंदर आ जाए । उसने मुस्कुराते हुए कहा।
ओह ! यह सुनकर वह हैरान हो गया। उसने यह तो कभी नहीं सोचा था कि वह उससे मिल ही लेगा।