प्यार से हैं ज़िंदगी दिनेश कुमार कीर द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार से हैं ज़िंदगी

1.
तुम्हें चाहा
और मैने पा लिया के चांद!

पर तुम्हें पाने की इक चाहत में
खुद को ही खो दिया मैने!

इसे खुद की
खुशनसीबी कहूँ मैं !

या कहूँ
तुम्हारी चाहत का नशा....

पाकर तुम्हे
खुश तो बहुत हूँ मैं!

पर इस खुशी में
खुद को ही खो दिया है मैने!

2.
हमें उन पर भरोसा था

उन्हे लगा हम उनके भरोसे है...

3.
उम्र के इक हिस्से से मैंने सीखा कोई किसी के लिए हमेशा नहीं रहता

वो जाएगा तुमसे जरा सा भी बेहतर मिलते ही और बता के जाएगा ख़ामिया तुम्हारी

4.
प्रेम सदा से ही सरल था,
करने वाले इसे समझ न सके..
उनकी क्षमता से बाहर था,
इसलिये जटिल कह दिया..
प्रेम तो सरल है इतना,
जितना उसका अस्तित्व..
तभी तो यह जब हो जाये तो,
बस हो जाता है..
असत्य तो यह हो ही नहीं सकता,
व्यर्थ ही दावा होता है सत्य का..
जिस भाव पर जग निर्भर..
वह हो भला कैसे दुभर..?

इसलिये कहते हैं-
जब वह था तब सिर्फ वही था,
और अब भी वही है जब वह नहीं है...

5.
सब कुछ तो तुमसे ही है मेरा,
तेरे बिना ज़िन्दगी भी मेरा नहीं!!

6.
जब भी कोई घटना मन को चोट पहुँचाती
या कोई भी छोटी सी बात मन को गहरे तक छू जाती
तब अवचेतन मन में बसी भावाभिव्यक्तियाँ
स्वत: ही पृष्ठों पर ‌शब्द बन उतर आती।

एक जगह से दूसरी जगह बसना
और उजड़ना,
बार-बार जुड़ना और टूटना
इस अंतराल में मिले लोग और
उनसे मिले अनुभव अमूल्य पूँजी।
इन्हीं सब से गुज़र कर
अपने आस-पास के परिवेश को
अपने में समेट कर शब्दों में व्यक्त करना
मेरे लिए कविता।

अपनी पहचान तलाशती
बनावटीपन से दूर,
जीवन को सहजता से जीने का प्रयास करती
मेरी रचनाएँ और उसी के समीप कहीं ‌खड़ी मैं।

7.
राजनीति में रिश्ते हो तो कोई "तकलीफ" नही,

किन्तु "मधुर" रिश्तो मे कभी राजनीति नही होनी चाहिये।

8.
एक चिट्ठी
हर रोज
तेरे नाम
मैं लिखती हूं

पता नहीं,पता मुझको
तुम तक आने का
इसीलिए,हर बात
सरे आम
मैं लिखती हूं

आज नहीं,तो क्या
कल तो कदर होगी
सांसों का
ठिकाना नहीं
अविराम
मैं लिखती हूं

तुमको
अपने पैगाम
सुबह शाम
मैं लिखती हूं

कल जब दुनिया में
हम ढूंढे से
नहीं मिलेंगे
तब इनको पढ़ना तुम

जो कुछ लिखती हूं
तुम्हारे नाम
मैं लिखती हूं

9.
तुम्हें अलविदा! कैसे कह दूँ,
जाते-जाते तुमने,
मेरे रूह को छू लिया।
वरना कितना मुश्किल होता,
तुम्हारे बिना जीना।
अब धड़कने सिर्फ तुम्हारी कहती है और मैं सुनती हूँ।
हर एक लम्हा तुम्हारे साथ धड़कती हूँ।
अब मैं कहाँ अकेली हूँ।
तुम्हारी धड़कनो की दस्तक से,
मेरी दुनिया आबाद है,
चाहे तुम पास रहो!
या ना रहो!

10.
उन हथेलियों को चूम कर सजदा मैं भी कर लूँ
जिनके हाथों में इश्क़ की मुकम्मल लकीर हो !!

11.
और फिर एक दिन मैंने सब कुछ जाने दिया ,
ना रुकी ख़ुद,ना तुमसे रूकने का वादा लिया,
वादे-कस्मे, शिकवे-गिले तुम्हारे, सब अंदर समेटे!
एक दिन सब कुछ,खुद में ही दफन कर लिया...
दहलीज पर ठहरी रही थोड़ी देर तुम्हारे...
थोड़े छुपाऐ गम, थोड़े आंसू आंखों में भर लिया...
अपने प्रेम और पीड़ा की गठरी उठाए...
अंतत: तुम्हें,आखरी अलविदा कह दिया...

12.
किस्मत का लिखा होता है किसी से इत्तेफाकन मिलना या किसी से अचानक बिछड़ना !
हम सोचते कुछ और हैं लेकिन हो कुछ और जाता है !
हमारे सोचने से ही अगर सब हो पाता तो शायद कभी कोई दुखी हो ही नही पाता !
क़िस्मत में क्या लिखा है ये वक्त ही बता पाता है तो स्वयं को कोसने से , क़िस्मत को दोष देने से हालात नही बदलने वाले !
हालात तो आपको स्वयं ही बदलना होगा और उसके लिए परिस्थिति स्वीकार्य कर जीवन की तमाम चुनौतियों का हर पल सामना करना ही पड़ेगा !!