उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार स्नेहिल मित्रों

आशा है, आप सब स्वस्थ व आनंदित हैं

जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव आते जिनसे हम सबको आमना-सामना करना पड़ता है |कभी उनसे सामना करते हैं तो कभी उनसे छिपने की कोशिश भी लेकिन यह सच है कि जीवन में हमें सभी तत्वों की आवश्यकता होती है | मनुष्य प्रकृति से ही संवेदनशील है, उसमें प्रत्येक प्रकार की संवेदना समय-समय पर आकर अपनी उपस्थिति का दर्शन करवा ही देती है |

रंजन काम के मामले में बहुत गंभीर और प्रगति के मामले में बड़ा चैतन्य लेकिन बॉस के मामले में उसका ज़रा अजीब ही मसला रहा | हाँ, कुछ सीधा तो है वह, किसी से स्पष्ट बोल नहीं पाता है और जब बॉस का काम भी स्वयं करके उनसे गलत व्यवहार पाता है तो क्षुब्ध हो जाता है जो स्वाभाविक है भी |

"अरे! इतना मन को मत लगाया करो, इस दुनिया में अलग-अलग तरह के लोग होते हैं जो हमारे ऊपर अलग तरह के प्रभाव भी डालते हैं | अगर उनको अपने ऊपर हावी होने देंगे तो उनको क्या फ़र्क पड़ेगा, नहीं मालूम लेकिन तुम ज़रूर ढीले पड़ते जाओगे |"

वह ऐसा युवा है जो हमेशा स्वयं तो प्रगति करता ही है, साथ ही सबको प्रेरित करता है |उसकी सोच और चिंतन बड़ा व्यापक है और वह सदा से यही सोचता है कि एक इंसान के पास सब कुछ हो इसका कोई अर्थ नहीं है बल्कि जब सब उन्नति कर सकें तब बात बनती है {

उसकी सोच बालपन से ऐसी ही ही रही है और वह अपनी स्कूली पढ़ाई में भी मॉनिटर बनकर सबको आगे बढ़ने में सहायता करता रहा है | कार्यक्षेत्र भी नं एक लेकिन जब से यह नया बॉस आया है उसने रंजन की नाक में दम कर दिया है | स्वयं काम करने में अधिक गंभीर नहीं है और विवेकहीन तो है ही, साथ ही अपने साथ कामकरने वालों से उसकी बेकार की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं |पहले उसने अपने नीचे काम करने वालों कोअपनी लपेट में लिया अब न जाने उसकी दृष्टि रंजन पर जाकर टिक गई |

कुछ लोगों के स्वभाव में केवल दूसरों को परेशान करके मज़ा लेना होता है, बस उसने रंजन के साथ ऐसा ही करके उसे परेशान करना शुरू किया |  
"रंजन ! यह उसका स्वभाव है लेकिन तुम्हारा भी तो अपना स्वभाव है, तुम अपने स्वभाव को मत छोड़ो और वह क्या करता है, उसे करने दो |तुम उसके इस स्वभाव से भी प्रेरित हो सकते हो, मैं जानती हूँ |"मैंने उसे कई बार समझाने की कोशिश की |
"मैं कैसे प्रेरित हो सकता हूँ? मेरे बॉस मेरे साथ रोज़ाना बहुत दुर्व्यवहार करते हैं।"

उसका कहना ठीक ही था, वह पीड़ित था लेकिन मुझे तो उसको समझाने की ज़रूरत थी|मैंने कहा ;

"देखो रंजन !जिसके पास जो होता है वह केवल वही दूसरे को दे सकता है। इसके मर्म को समझने के बाद तुम समझने लगोगे कि उसके पास वही संवेदना है जिसे वह बाँट रहा है |"

यदि हमें कोई ऐसा व्यक्ति टकराता है तब क्या उसके कारण हमें अपने अंदर अपनी अच्छाई को छोड़कर बुराई को स्वीकार कर लेना चाहिए? कुछ लोगों की दुर्भावना दूसरों के लिए पीड़ा देने वाली होती है। उनके दिमाग अत्याधिक अशांत होते हैं इस कारण वह अशांति फैलाते हैं। कईं बार हम इस पीड़ा को हफ्तों, महीनों तक झेलते रहते हैं और यह हमें आंतरिक रुप से दुखी कर देती है। हम इसे एक झटके में यादों से निकाल नहीं सकते हैं। यह आंतरिक दुख हमारी खुशियों को नष्ट करना शुरु कर देता है। इससे दुर्व्यवहार का अनुभव दोबारा जीवित हो उठता है और जिससे आंतरिक रुप से हम खोखले हो जाते हैं। उन पलों का दोबारा अनुभव करते हुए हमें उन दुर्व्यवहारों को अपने अंदर पालने या उनको निकाल सकने में से किसी एक को चुनना होगा। उन पलों के एक-एक करके दोबारा जीवित होने पर हम पीड़ा क्यों महसूस करते हैं? विचार ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। नकारात्मक विचार से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है और सकारात्मक विचार से सकारात्मक ऊर्जा।

किन्ही भी कठिन से कठिन परिस्थिति में चयन हमारा अपना है कि हम अपने जीवन मे क्या चाहते हैं।

आज अगर ईमानदारी से पूछा जाए तो इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि हम सबने अपनी अनमोल ऊर्जा ओर उपयोगी अवसर दूसरों के ऊपर अपनी समस्याओं का दोष मढ़ने में बर्बाद कर दिये । आरोप लगाने और खुद साफ बच कर निकल जाने की इस कवायद में लगे रहते हुए हम यह सच भूल जाते हैं कि कर्म का नियम कुछ और है। कर्म का सिद्धांत साफ कहता है कि हमारे हर दुख-कष्ट आदि के लिए हम ही जिम्मेदार हैं। कोई दूसरा नहीं। आज हम जो भी हैं, जैसा भी अनुभव कर रहे हैं वह हमारे अतीत के कर्म का ही परिणाम है।

सोचे, और इस बात पर अमल करें कि हमें किसी को भी अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है बल्कि जो बात हमें गलत लग रही है उसका विरोध बड़ी सहनशीलता और विवेक से करना है |

आप सभी मित्रों का दिन शुभ एवं मंगलमय हो।

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती