1. वार्षिक प्रतियोगिता
सुदूर गाँव में एक विद्यालय था। उस विद्यालय में अमित, सुनील और रोहिणी तीन बच्चे पढ़ते थे, जो आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे। तीनों ही बच्चे नियमित विद्यालय आते थे और मन लगाकर सीखते थे।
तीनों में से कोई दोस्त किसी कारण विद्यालय नहीं जा पाता था तो वह दोनों से पूछ लेता था, आज विद्यालय में क्या पढ़ाया गया? उसे वह घर से सीख लेता था, जिससे वह पढ़ाई में पिछड़ता नहीं था।
एक बार उनके विद्यालय के कक्षा अध्यापक ने बच्चों को सूचना दी कि अगले माह पूर्व वर्षों की तरह इस वर्ष भी आप सभी की ब्लॉक स्तरीय बहुविकल्पीय परीक्षा आयोजित होनी है। यह सुनकर बच्चे बहुत खुश हुए और विद्यालय के सभी बच्चे अपनी अपनी तैयारी में जुट गये।
सभी ने परीक्षा की अच्छी तैयारी की और इसमें विद्यालय के अध्यापकों ने भी सहयोगी की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सभी छात्रों को आवश्यक दिशा - निर्देश दिए।
परीक्षा के दिन सभी अपनी अपनी परीक्षा देकर अपने परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे।
सभी बच्चों को सभागार में बिठा दिया।
टॉप तीन बच्चों के नाम बोले गये, उनमें रोहिणी का प्रथम स्थान और अमित का दूसरा स्थान एवं सुनील का तीसरा स्थान आया। चौथा स्थान आने से सुनील दुःखी हुआ, तभी सभागार में उपस्थित सभी बच्चों को समझाया गया कि अगले वर्ष की परीक्षा की तैयारी करें और अधिक मेहनत करें। इसके बाद सभी बच्चों को प्रमाण - पत्र वितरित कर विदा किया गया।
संस्कार सन्देश :- परिणाम से कभी दुःखी नहीं होना चाहिए। कोई भी परिणाम अंतिम नहीं होता। कड़ी मेहनत करें!
2. आलसी बच्चा
अमित, कक्षा छह में पढता था। वह बहुत आलसी था। अपना गृह कार्य समय पर पूरा नहीं करता था। आज वह पेट दर्द का बहाना बनाकर स्कूल नहीं गया और गेंद लेकर बगीचे मे चला गया। बगीचे मे उसे कोई भी न दिखा। सभी लोग अपने - अपने कामों में व्यस्त थे। तब उसकी नजर एक कौवे पर पडी। कौवे के पास जाकर बोला-, "कौवे भाई... कौवे भाई! मेरे साथ खेलो।" कौवे ने कहा - "मुझे जन-जागरण के लिए जाना है। तुम किसी और के साथ खेलो। फिर उसे पेड की टहनी पर बैठा कबूतर दिखा। वह कबूतर से बोला - "कबूतर भाई! आओ मेरे साथ खेलो।" कबूतर बोला - "नहीं, भाई! सुबह का समय है, मुझे अपने बच्चों को भोजन लेने जाना है। अगर मैं तुम्हारे साथ खेलूँगा तो मेरे बच्चे भूखे रह जायेगें। तुम किसी और से खेलो ।"
आलसी बालक निराश हो गया। फिर उसने फूलों पर बैठै भौंरे को देखा - उसने भौंरे को खेलने को कहा! भौरें ने कहा - "मुझे पराग इकठ्ठा करना है। मेरे पास खेलने का समय नहीं है।" फिर वह चींटी के पास गया। चींटी ने भी खेलने से मना कर दिया, तब आलसी बालक सोचने लगा कि - "इस संसार में जीव - जन्तु, कीट - पतंग सब अपने - अपने कामों में व्यस्त हैं। कोई भी आलसी नहीं है। एक मैं ही आलसी हूँ, जो अपना काम समय पर नहीं करता हूँ।" उस दिन से वह समझ गया कि आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
संस्कार सन्देश :- हमें कभी भी आलस नहीं करना चाहिए, बल्कि मेहनत करनी चाहिए।