Living with Dyeing - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

लिविंग विथ डाइंग - 2


ऋत्वि किताबे टेबल पर रखते हुए कहती है "ये किताब काफी भारी थी, क्या हमे यह काम रोज करना पड़ेगा।

ऋत्विक भी किताबे वही पास में रखते हुए कहता है "हा"

ऋत्वि कहति है "क्या... अरे नही "

ऋत्विक कहता है "ये इस काम का जरूरी हिसा जो है, पता नही तुमने इस के लिए हा क्यो कर दी"

ऋत्वि वही पास ही की कुर्सी पर बैठते हुए कहती है "क्या पता..."

ऋत्विक रिटर्न बूक्स को चेक करते हुए ऋत्वि से पूछता है "वैसे तुम्हे बूक्स पसंद भी है?"

ऋत्वि कहती है "नही लेकिन में मांगा काफी पढ़ती हूं।"

ऋत्विक पूछता है "क्या तुम अपनी बची हुई जिंदगी इस लाइब्रेरी में बिताना चाहोगी?"

ऋत्वि कहती है "बिलकुल "

ऋत्विक कहता है "वैसे तुम बोलती कि तुम्हे पता नही तो वो भी सही था।"

यह सुन ऋत्वि उससे पूछती है "क्यू... मुझे और क्या करना चाहीए?"

ऋत्विक करता है "मेरा मतलब तुम्हे अपने किसी खास इन्सान के साथ वक्त बिताना चाहिए या फिर तुम विदेश यात्रा भी कर सकती हो, कोई एसी जगह ढूँढने के लिए जो तुम्हे सूकून दे।"

ऋत्वि कुछ सोचते हुए कहती है "हम्म... में समझ रही हुं तुम क्या कहना चाहते हो, लेकिन क्या तुम मरने से पहले कुछ नही करना चाहिए?"

ऋत्विक कहता है "शाहाद हा करना तो चाहूँगा"

ऋत्वि कहती है "फिर भी तुम उसे अब नही कर रहे, जब की किसीको नहीं पता कि वो कब मर सकता है! आज ए सच मेरे सामने है, कल किसी और के सामने होगा! तो मैं आज जो भी करती हूं या नहीं करती उससे कुछ फ़र्क नही पडता और मुझे एसी नोर्मल सिजे करना भी अच्छा लगता है"

ऋत्विक उसकी और देखते हुए कहता है "तुम पागल हो।"

ऋत्वि अपनी डायरी निकालते हुए कहती है" हा... मैं इस डायरी में उस सिजो कि लिस्ट बनाना चाहती हूं जो मैं मरने से पहले करना चाहती हूं और मैं तुम्हे अपने साथ आने का मौका दूगी।"

ऋत्विक अपनी नजर वापस किताबो पर जमाते हुए कहता है "अब इसका क्या मतल हे ? तुम अब अपनी बात से पलत रही हो।"

ऋत्वि उसकी बातो को नजरअंदाज करते हुए कहती है "इस के बाद फ्रि हो? जाहीर है दोस्त नहीं है तो बिजी तो नही रहोगे।

ऋत्विक कहता है "तुम्हारा शुक्रिया लेकिन मैं यही ठीक हूं"

ऋत्वि उसे याद दिलाते हुए कहती है "अरे... अपने हिसाब से जिने को मुझे तुम्हीने कहा था ना!"

ऋत्विक हड़बड़ाहटे हुए कहता है "क्या? लेकिन मेरा वो मतलब नहीं था!"

ऋत्वि कहती है "लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम मेरे साथ चलो!"

ऋत्विक उसके साथ जाने को तैयार नही होता लेकिन ऋत्वि कि जिद के कारण आख़िरकार ऋत्विक को उसके साथ जाना हि पडता है।

ऋत्वि उसे अपने फेवरेट रेस्टोरंट में ले आती है। रेस्टोरंट के अंदर बैठते हुए ऋत्वि खुश होते हुए कहती है "यहा सबसे स्वादीष्ट जापानी फूड मिलता है।"

ऋत्विक भी ऋत्वि कि सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहता है "तुम्हे यहा अपने परिवार के साथ आना चाहिए ना कि किसी अंजान के साथ।"

ऋत्वि उसकि बातो को नजरअंदाज करते हुए कहती हैं "अरे तुम तो कुछ खाई नही रहे हो, थोडा और लो" इतना कह ऋत्वि उसके प्लेट में खाना रखने लग जाती है।

ऋत्विक उसे ऐसा करने से मना करता है लेकिन ऋत्वि उसकी एक नहीं सुनती।

ऋत्विक खाना देखते हुए पूछता है "क्या तुम्हारे लिए ये सब खाना सही होगा? क्या तुम्हारा ककोई डायट प्लेन नही हैं?

ऋत्वि मना करते हुए कहती है "नही तो! शायद इन दस सालो में मेडिकल फील्ड में जो विकास हुआ है ये उसका कमाल है।" और फिर शूप पिते हुए आगे कहती हे "आज इन्सान क्या-क्या कर सकता है! इसलिए मेरी बिमारी भी मेरे रोज के कामो में कोई दिकत नही दालती!"

इस पर ऋत्विक कुछ नही कहता।

ऋत्वि आगे कहती है "मैं लास नही बनना चाहती!"

ऋत्विक उसे हैरानी से देखते हुए कहता है "ये सब खाते वक्त बोलना जरूरी है क्या?"

ऋत्वि उसकि बात नही मानती और फिर कहती है "अगर चाहोतो तुम मेरे पैंक्रियास खा सकते हो।"

ऋत्विक असे घूरते हुए कहता है "तुम नही मानोगी ना!"

ऋत्वि हँसते हुए कहती हे "और पता है मैं ने कही सूना था कि विदेश में तोग यह मानते है कि अगर तुम किसीका कोई अंग खाते होतो उसकी आत्मा तुम में बस जाती है।"

ऋत्विक कहता है "किसी और को जाकर ढूंढो, तुम्हारी आत्मा मेरा जिना हराम कर देगी।"

ऋत्वि बात बदलते हुए कहती है "वैसे तुम वलास में किसी से बात नहीं करते! शायद मुझे भी तुम्हारे बारे में कुछ नही पता है।"

ऋत्विक कहता है "क्योंकि हर कोई मुझे एक बोरिंग लड़का ही समझता है या उससे भी कही ज्यादा उपर!"

ऋत्वि पूछती है "क्या उन्होंने खुद तुमसे कहा?"

ऋत्विक कहता है "एसा कोई कहता नही है, एसा मुझे लगता है।"

ऋत्वि कहती है "तुम एसा कैसे कह सकते हो! ये बस तुम्हारी सोच है, तुम गलत भी तो हो सकते हो! "

ऋत्विक कहता है "मेरे सही या गलत होने से कोई फर्क नही पडता एसा मेरा मानना है! कोई मेरे बारे में क्या सोचता है इस के बारे में सोचना सिर्फ मेरी एक होबि है।"

ऋत्वि कुछ सोचते हुए पूछती है "हम्... तो तुम्हे क्या लगता हे मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचती हूँ?"

ऋत्विक कहता है "वही बस एक बेकार सा बोरिंग इन्सान, जिसे बस तुम्हारे थोडे बहुत सिक्रेट पता है और कुछ नही।"

ऋत्वि झूठी हंसी हँसते हुए कहती है "हा... शायद!"

ऋत्विक उसे यू हँसता देख कहता है "मैं ने बताया ना अब मुझे इन सब से कोई फ़र्क नही पडता!"

ऋत्वि पूछती है "लकिन तुम्हे आखीर एसा क्यो लगता है?"

ऋत्विक कहता है "इन्सान तब हि साथ देता है जब उसे कुछ चाहिए हो!"

ऋत्वि पूछती है "अब इसका क्या मतलब?"

ऋत्विक अपनी बात बदलते हुए कहता है "फैमिली के अलावा मेरे सारे रिश्ते मेरी सोच में ही शुरु होते हे और सोच में ही खत्म भी! किसी को कोई फर्क नही पडता मेरे पसंद आने या ना आने से! जब तक मुझे कुछ हो नही जाता तब तक किसीको कोई फ़र्क नही पडता कि मैं कैसा हूं! इसीलिए मुझे बाकीयो में दिलचस्पी ही नही है और ना ही बाकीयो को मुझ मैं हैं।

ऋत्वि अपना सिर ना में हिलाते हुए कहती है "लेकिन मुझे दिलचस्पी है, अगर दिलचस्पी नही होती तो तुम्हे अपने साथ लाती क्यू? मुझे इतना भी बेवकूफ मत समझो!"

ऋत्विन कहता है "वैसे तुम काफी बेवकूफिया करती तो हो पर मैं तुम्हे बेवकूफ नहीं कह रहा।"

ऋत्वि कहती है "दिमाग में सोच रहे होगे, क्या पता?"

यह सुन ऋत्विके चेहरे पर एक छोटी सी स्माइल आ जाती है लेकिन वो उससे कुछ कहता नही।

यह देखकर ऋत्वि उसकी प्लेट में और ज्यादा खाना रखते हुए कहती है "तुम अब मुझे बहुत गुस्सा दिला रहे हो!"

ऋत्विक उसे रोकने कि कोशिश करते हुए कहता हैं "बस करो मैं इतना नही खा सकता!" लेकिन ऋत्वि उसकी एक नही सुनती।

खाना खत्म कर के ऋत्विक और ऋत्वि रेस्टोरंटसे बाहार निकल आते है।

रेस्टोरंटसे बाहार निकल ऋत्विक एक सुनसान रास्ते कि और बढते हुए कहता हैं "चलो तो अब मैं चलता हूं!" लेकिन ऋत्वि उसे अपने साथ बाजार वाले रास्ते से चलने को कहती हैं।

ऋत्विक मना करते हुए कहता है "नही वो रास्ता मेरे घर के लिए लंबा है!" लेकिन ऋत्वि फिर जिद्द करने लग जाती है जिससे ऋत्विक को उस साथ ना चाहते हुए भी
बाजार वाले रास्ते से जाना पडत है।


To be continue..................

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