कबूतरों का झुण्ड दिनेश कुमार कीर द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कबूतरों का झुण्ड

1. कबूतरों का झुण्ड

कबूतरों का झुण्ड भोजन की तलाश में इधर - उधर भटक रहा था। वहीं दूसरी तरफ एक शिकारी पक्षियों को पकड़ने की योजना बना रहा था। बहुत कोशिश करने के बाद भी कबूतरों का झुण्ड भोजन तलाश नहीं कर पा रहा था। कुछ देर बाद थक - हार कर एक पेड़ की डाल पर सभी कबूतर बैठ गये और आपस में बात करने लगे।
"न जाने आज किसकी नजर लग गयी, जिस कारण हम में से किसी को भी भोजन प्राप्त नहीं हुआ। लगता है, आज का दिन भूखे रहकर गुजारना होगा। भूख से हम लोगों का हाल इतना बेहाल है कि अब हम लोग उड़ने की कोशिश भी नहीं कर सकते। सुबह से ही हम लोग भोजन की तलाश में हैं। शाम होने को आयी है। एक तो भोजन भी नहीं मिला और कुछ शिकारी हम लोगों के पीछा भी कर रहे हैं। देखो, वह लोग इधर ही आ रहे हैं। अब हमें कौन बचाएगा! हम लोग इतना थक गये हैं कि उड़ने की हिम्मत नहीं हो रही है।"
जिस पेड़ की डाल पर बैठे सभी कबूतर एक दूसरे से बातें कर रहे थे, उसी पेड़ पर एक बन्दर रहता था। बन्दर चुपचाप सभी की बातें सुन रहा था। बन्दर बहुत दयालु था। उसे कबूतरों पर दया आयी। उसने अपने आस - पास के सभी साथियों को आवाज़ लगायी। उसके सभी साथी आ गये। साथियों की मदद से कुछ ही देर में बन्दर ने शिकारियों को भगा दिया। बन्दर के पास बहुत सारा भोजन था। उसने सभी कबूतरों को भरपेट भोजन खिलाया और थोड़ा भोजन घर ले जाने के लिए भी दे दिया। सभी कबूतर बहुत खुश हुए। उन्होंने जी भरकर बन्दर को दुआ दी और अपने घर आने का निमन्त्रण भी दिया। इस तरह से सभी कबूतरों ने बन्दर से दोस्ती कर ली।
जाते - जाते कबूतरों ने उसे धन्यवाद दिया और अपने घर की तरफ चल दिये।

संस्कार सन्देश: - जीवन में अगर कभी अवसर मिले, तो हमें लोगों की मदद जरूर करनी चाहिए।

2. अवनी के खिलौने

एक बार की बात है। अवनी नाम की एक छोटी लड़की थी, जिसे हर समय अपने दोस्तों के साथ खिलौनों से खेलना अच्छा लगता था। पढ़ाई उसे बहुत बोझ लगती थी। जब कोई दोस्त साथ न होता, तब भी वह अकेली ही खिलौनों से खेला करती थी। यहाँ तक कि रात में भी खिलौनों से खेलते - खेलते ही सो जाती और खिलौने रात में भी उसके पास ही बिस्तर पर रहते।‌‌ पढ़ाई पर ध्यान न‌ देने से उसके स्कूल से भी शिकायत आती रहती थी। उसकी माँ यह देखकर बहुत दुःखी होती थी। समझाने का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
एक दिन अवनी ने रात में सपना देखा कि उसके खिलौने आपस में बातें कर रहे हैं।
"ये अवनी हर समय हमारे साथ खेलती रहती है, हम तो बहुत थक जाते हैं, कभी आराम करने का समय नहीं मिलता, जबकि उसकी किताबें हमेशा आराम करती रहती हैं। अवनी कभी पढ़ाई तो करती नहीं है, बहुत ही गन्दी बच्ची है। इससे अच्छा होता कि हम किसी अच्छे बच्चे के पास होते, जो हमारी भी परेशानी समझता। कभी हमें भी आराम करने को मिलता। दूसरे बच्चे तो अपने खिलौनों से हर समय नहीं खेलते।"
यह सपना देखते ही अवनी की नींद टूटी और वह उठ बैठी। बिस्तर पर पड़े खिलौनों को देखकर लगा, जैसे सचमुच वे सब दु:खी थे। अवनी ने उन सबको बड़े प्यार से उठाया और चुपचाप अलमारी में रख दिया। बड़ी देर तक कुछ सोचती रही और फिर सो गयी। सुबह माँ के आवाज देने से पहले ही उठकर ब्रश आदि करके नहा - धोकर स्कूल के लिए तैयार हो गयी। माँ ने भी खुशी से टिफिन देते हुए उसे बहुत सारा दुलार करके स्कूल भेजा। उन बेजुबान और बेजान खिलौनों ने सपने में आकर अवनी को सही राह दिखायी थी।

संस्कार सन्देश: - हर समय खेलना बुरी बात है। बच्चों को खेल के साथ - साथ अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना चाहिए।