दिशा Bharat(Raj) द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

दिशा

दिशा हमेशा सही और सटीक होनी चाहिए चाहे मंजिल कितनी ही दूर क्यों न हो। सही दिशा की तरफ जाते हुए अपनी भावनाओं को, अपनी संवेदनाओं को ,कुछ समय के लिए पहले दु:ख ,तकलीफ ,मुसीबत, निराशा हो सकती है। लेकिन आखिरकार सही राह पर ,सही दिशा में चलते हुए ही इंशान तिमिर को भी उजाले मे परिवर्तित करने की क्षमता रखता है।



इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता, अपने आंतरिक शक्ति को जागृत करते हुए वह असंभव कार्य को भी संभव कर सकता हैं।


जिसमें हौसला है, जज्बा है , हिम्मत है बस उसे देखने की जरूरत है ।अपने आंतरिक भाग में ,अपने अंदर में उसे अपने आप को आत्मसात करने की जरूरत है । कि आखिरकार वह है क्या?



जिस समय इंसान को यह आभास हो जाता है, कि उसके अंदर अपार शक्तियों का भंडार है। उसी समय से उसका जीवन परिवर्तित होने लगता है ।


छोटे-छोटे बदलावों से ही जिंदगी बड़े बदलाव का रूप लेती है। जिंदगी बड़ी होने लगती है। इसीलिए इंसान को अपने आंतरिक भाग में छोटे-छोटे बदलाव करते हुए पूरे जीवन को परिवर्तित कर देना चाहिए ना कि यह भौतिकवादी सुविधाओं में जीने के लिए लालायीत होना चाहिए।



जीवन में परिवर्तन के बारे में बहुत सारे लोगो द्वारा बहुत सारी बातें कही गई है ।लेकिन मेरा यह मानना है कि इंसान को जब तक अपने आंतरिक शक्तियों का ज्ञान नहीं होता , तब तक उसको कोई कितना ही बढ़ा ज्ञानवान बता दे, कोई कितना ही अच्छा पढालिखा समझ ले, उसके अंदर वह समझदारी अपनी होगी। लेकिन जब वह अपने अंदरूनी रूह को पहचानेगा। अपनी आंतरिक शक्तियो को पहचानेगा, उसके अंदर तो शक्तियों का अपार भंडार है। तब उसे बाहर से किसी के अनुसार चलने की, किसी को सुनने की कोई जरूरत नहीं है। उसका मन इतना पवित्र होना चाहिए कि वह अपार शक्तियों के उस भंडार को जान सके।


मन तो एक ऐसी चीज है जो इंसान को हर वक्त परिवर्तित करती रहती है । किसी ने सही कहा है की "मन के जीते जीत है मन के हारे हर"।


अगर मन पर आपने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया, मन को अगर आपने अपने वश में कर लिया तब मेरा यह मानना है कि आप अपनी आंतरिक शक्तियों को जानने की तरफ बढ़ रहे है।




जैसे-जैसे आप अपने आंतरिक स्वभाव को अपनी आंतरिक शक्तियों के बारे में आभास होने लगेगा, आपको बाहर की दुनिया एकदम से परिवर्तित होती नजर आएगी ,जबरदस्त चमत्कार आपकी जिंदगी में होगा।



मान लीजिए , कोई इंशान सुबह कभी जल्दी उठता नहीं है । देर से सोना और देर से उठना जिसकी आदत है । शरीर में मोटापा आया हुआ है । लेकिन एक दिन उसे अंदर से आभास होता है कि मेरा जीवन तो खत्म होने की तरफ जा रहा है। मुझे कुछ अपने जीवन के लिए करना चाहिए। तब वह जागृत होता है।तब वह अपने आंतरिक शक्तियों पर विश्वास करता हैं । तब कहीं जाकर उसमे वह समझ विकसित होती है। तब वह एक दिन अपने मन पर विजय पाने की कोशिश करता है। और अपने मन के मुताबिक वह सुबह जल्दी उठना शुरू करता हैं। जब सुबह जल्दी उठता है तो शुरुआत मॉर्निंग वॉक से करता है ।सुबह की तरह ,उसे जीवन की बातो मे भी हल्का-हल्का सा अंधियार नजर आता है ।


लेकिन वह उस अंधेरे में भी कुछ कदम चलता । तब उसे एहसास होता है की सूर्य की पहली किरण निकलने वाली है । उसे उस प्रकाश का अपने जीवन मे आभास होता है । उसे अपने आंतरिक भाग में प्रकाश की ज्योति जलती हुई प्रतीत होती है।


हर रोज सुबह जल्दी उठकर व्यायाम, योग, एक्सरसाइज आदि करता है। धीरे-धीरे कुछ ही समय में देखता है कि उसका स्वास्थय भी अच्छा होने लगा है। वह सबसे ज्यादा खुश रहने लगा है। इससे पहले उसने बहुत से जिम को ज्वाइन किया था। बहुत से दोस्तों के साथ बाहर घूमने का , मॉर्निंग वॉक का प्लान किया था। लेकिन जा नहीं पता था क्योंकि उसे अपने आंतरिक भाग की जो शक्ति है। जो उसका मन है , जो उसका आभामंडल है। चारों तरफ वह पूरी तरह से नकारात्मक था। लेकिन जैसे ही उसने अपने आप की आवाज सुनी, अपने दिल की आवाज सुनी, अपने मन की आवाज सुनी, उसे अपने जीवन के प्रति जीने की इच्छा बड़ी ।


तब , उसे सबसे अलग चलने की, सबसे हटके चलने का आभास हुआ। और वह नाटकीय रूप से अपने जीवन को परिवर्तित करने की ओर बढ़ने लगा।


जब किसी का अपने आप से साक्षात्कार होता है, जब कोई इंसान अपने आप को समझने की कोशिश करता है, जब कोई इंसान अपने आप से रूबरू होता है, खुद से प्यार करने लगता है, तब उसे बाहर की भौतिक दुनिया से कोई मतलब नहीं होता, तब उसे बड़े बनने की चाहत नहीं रहती, तब उसे कोई अच्छा कहे उसकी फिक्र नहीं रहती ,कोई उसके बारे में बुरा कहे उसका गम नहीं रहता है । खुशी खुशी जिंदगी जीता हैं। हमेशा खुश रहता है। उसे कोई गम डरा नहीं सकता, उसे किसी दर्द का एहसास नहीं होता, उसकी की आंखों में आंखें डाल के सीना तान के खड़ा रहता है।


और अपनी आंतरिक शक्तियों से , अपने मन से हरा देता दर्द को, क्योंकि उसने अपने आप पर विजेता पा ली होती है। फिर उसे दुनिया जीतने की जरूरत नहीं है, किसी को जितना है तो अपने अंदर बैठे डर को जीतना है। अपने अंदर बैठे डर पर विजय प्राप्त कर लो फिर देखो हल्की-हल्की सी सुबह, सूरज की पहली किरण आपके जीवन में आने के लिए तत्पर है, तैयार है। जब इंशान खुश रहे तब वह अपने आप से, समाज से, देश से बहुत गहराई से जुड़ता है लेकिन इंशान की भौतिकवादी हरकतें उसे अपने जीवन में पीछे की ओर ले जाती है।



आखिर इंंशान को चाहिए क्या जीवन में, वह इस धरती पर किस लिए आया है। कीसकी जरूरत है उसे। जब कुदरत ने ऊपर से भेजा था , तब किसी विशेष प्रकार का कोई सिस्टम बनाकर अपने शरीर मे नहीं लगाया था। आदमी उस जाति का होगा, कोई उसे नीचा बोलेगा। तो कोई ऊँचा बोलेगा। कुदरत ने हमें यह सब नहीं करवाया था। हमने समाज बनाया, और समाज ने यह सभी धारणाओ को अपनाया लेकिन आज इंसान खुद को खुद से प्यार करने लगा है। खुद के बारे में सोचने लगा है।


जिस दिन इंसान ने प्रकृति को समझ लिया, जीवन को समझ लिया, की आखिर इसका जन्म धरती पर किस लिए हुआ है। इस बात को जब जान लेगा ,उस दिन से उसको भौतिक सुविधाओं से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। किसी के आने से, किसी के होने या ना होने से उसकी आत्मा पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।उसे दर्द का एहसास ही नहीं होगा।




वह तो बस हर वक्त मुस्कुराता रहेगा। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान हर वक्त हर किसी के लिए इंतजार करती रहेगी। हर कोई चाहेगा उसके पास आकर बैठने का, उसके अंदर सकारात्मक का वास होगा। ऐसे इंसान के पास हर कोई आकर बैठना चाहेगा। बात करना चाहेगा। जीवन को जीना चाहेगा। उससे जीवन के बारे में सीखना चाहेगा । तो भला हम प्रकृति की दी हुई चीजों से अपना मुंह कैसे मोड सकते हैं।




हमें जैसा कुदरत ने बनाया है। हमें वैसा ही जीना है। हमें समाज की बंदिशें से दूर हटकर अलग सोचने की जरूरत नहीं है। हमें सिर्फ सुधार करना है । तो अपने आप में करना है।



कई बार कई लोगों को यह कहते सुना है की "जीना है तो पीना पड़ेगा" क्यों पीना पड़ेगा, किस लिए पीना पड़ेगा, अगर पीना ही है तो अपने आंतरिक भाग में जो शक्तिया है उसको पी लो वह आपको आनंदित करेगी, जोश से भर देगी, चेहरे पर मुस्कान ला देगी, तो शराब पीकर भला इंसान को क्या मिला है। और आगे भी क्या मिलेंगा।


भरत (राज)