आज फिर तारिक है। Bharat(Raj) द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आज फिर तारिक है।

कोर्ट के वकीलो के काले लिबाज मे, कुछ तो काला जरूर है वरना, इतनी भी कमजोर नही हमारी न्याय प्रणाली। इतनी भी लचीली नही हमारी न्याय प्रणाली की इतनी तारीख पर तारीख दे। इन काले कोर्ट पहने वकीलो को न्याय के लिए कम, अन्याय के साथ खड़े देखा है बहुत।


बैंक से लिए कर्ज को अगर किसान चुकाना भी चाहे तो मन मेला लिये साथ वकील खड़ा मिलता । दावा कैसे लंबा चले यही आरजू पाले बैठा है। गरीब को न्याय दिलाने का भरोसा देकर खिलवाड गरीबो के जज्बातो से करता ।


मानो शर्म हया किसी कोटे पर बेचकर दलाली करने बैठा हो। न्याय की उम्मीद लगाये बैठा जन मानस हर तारीख पर ठगा जाता ।


जन मानस की संवेदना कैसे कोर्ट की सीड़ियों पर दम तोड़ती है यह भला किसी को समझाने की जरूरत नही है। वकील साहब का तो धंधा है। कुछ वकील अपने पैसे के साथ जरूर न्याय करते है। बिना फीस के गरीबो का दावा लड़ते । ऐसे मेरे वकील भाईयो को दिल की गहरायो से मेरा चरण वंदन है।


कोर्ट मात्र एक हॉल, वकील , जज, कटगहरा और तारीख पर तारीख भर नही है । यह न्याय का मंदिर है। जहाँ सबूतो के आधार पर जीवन और मरण का फ़ेसला सुनाया जाता है।


जब जब राजनीति ने न्याय प्रणाली को दूषित करने की नाकाम कोशिश की, तब तब न्याय प्रणाली ने न्याय के चाबुक से राजनीति को तमासा जड़ा है। तब जाकर आम जन मे विश्वास बड़ा है। तब जाकर भरोसा बड़ा है।
तब जाकर न्याय पर उम्मीद बड़ी है। हा तब जाकर न्याय मिलेगा वो सवेरा आँखों मे चमका है।


एक बड़ा सवाल आज मन मे उफान मार रहा है क्यों आखिर क्यों किसी को न्याय के लिए कोर्ट जाना पड़ता है? आखिर ऐसा क्या है की लोग गुनाह करते है? आखिर लोगो के बीच विवाद क्यों होते है? जब की गीता मे कहा गया है की" खाली हाथ आये है और खाली हाथ ही जाना है " पर इंशान क्यों गुनाहों की, छल कपट की, विश्वासधात की,चीडीया बुनता है और आखिर उसमे फँसता है फिर कोर्ट की तारीख पर तारीख शुरू करता है।


क्यों नही प्यार, प्रेम, सद्भाव से हर किसी के साथ रहता है। कई बार को कोर्ट की दहलीज पर हमे हमारा क्रोध पहुँचाता है।


आखिर क्या चाहिए इंशान को? पैसा, कार, बड़ा घर, विदेश यात्रा, आलिशान जिंदगी इन सब को हासिल करने के चक्कर मे वो गुनाह करता है खुशी पाने निकला था पर जिल्लत भरी जिंदगी बनाकर बैठ गया।


दोस्तो बचपन मे पैसो की चाहत नही थी तो मानो गुनाह हमसे हजारो कोश दूर था जब से पैसों का लालस जगा है हम अंधो की दोड़ मे शामिल होकर गुनाह किये जा रहे है। कभी कभी सोचता हु की इंशान के जीवन मे बचपन कभी खत्म ही ना हो तो शायद हमे कोर्ट की जरूर ही न पड़े।


तो दोस्तो पैसों की दोडसे अलग होकर खुले मन से एक बार नही, हर बार नही ,हर पल हर घडी बोलो लव यू जिंदगी को शायद आप गुनाह करने और कोर्ट के चक्कर से बच जाओगे। तो बोलो लव यू जिंदगी।

भरत (राज)