Ramayan ki Katha Bhajan ke Madhyam se Mere Shabdo me - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

रामायण की कथा भजन के माध्यम से मेरे शब्दों में - 3






अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया,
निष्कलंक सीता पे प्रजा ने,
मिथ्या दोष लगाया,
अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया।

इस लाइन में कहा गया है की अवध में एक ऐसा दिन आया निष्कलंक यानी बेदाग या जिस पर कोई कलंक ना हो ऐसी सीता पे प्रजा ने मिथ्या यानी जूठा दोष लगाया।अवध में ऐसा एक दिन आया।

चल दी सिया जब तोड़ कर,
सब नेह नाते मोह के,
पाषाण हृदयों में,
ना अंगारे जगे विद्रोह के।

इस में कहा गया है की जब सिया मोह के सभी रिश्ते नाते छोड़कर कर चली गई तब पाषाण हृदय यानी जिसका हृदय अत्यंत क्रूर बन गए हो ऐसे व्यक्ति,फिर कहा है कि ना ही अंगारे जगे विद्रोह के यानी किसी के दिल नहीं पिगले।

ममतामयी माँओं के आँचल भी,
सिमट कर रह गए,
गुरुदेव ज्ञान और नीति के,
सागर भी घट कर रह गए।

तत्पश्चात कहा गया है कि ममता से भरी माताओं के आँचल भी सिमट कर रह गए यानी वो भी कुछ नहीं कर पाई और गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर माने जाते है वो भी चुप बैठे सब कुछ देखते रहे कोई कुछ नही बोला।

ना रघुकुल ना रघुकुलनायक,
कोई न सिय का हुआ सहायक।
मानवता को खो बैठे जब,
सभ्य नगर के वासी,
तब सीता को हुआ सहायक,
वन का इक सन्यासी।

फिर कहा है कि ना रघुकुल और ना ही रघुकुलनायक यानी प्रभु श्री राम कोई भी सीता की सहायता करने नहीं आया।सभी लोग मानवता खो कर बैठे जब सभ्य नगर यानी अच्छे नगर के वासी तब सीता की सहायता की एक वन के संन्यासी ने।


उन ऋषि परम उदार का,
वाल्मीकि शुभ नाम,
सीता को आश्रय दिया,
ले आए निज धाम।

रघुकुल में कुलदीप जलाए,
राम के दो सुत सिय नें जाए।

इस लाइन में कहा गया है की वे ऋषि बहुत उदार दिल के थे और उनका शुभ नाम वाल्मीकि है जिन्होंने सीता माता को आश्रय यानी सहारा दिया और अपने आश्रम लेकर आये।

फिर कहा गया है की वहा रघुकुल के कुलदीप यानी परिवार के चिराग जन्मे प्रभु श्री राम के दो सुत यानी पुत्र सिया ने जाए यानी जन्म दिया।

( श्रोतागण ! जो एक राजा की पुत्री है,
एक राजा की पुत्रवधू है,
और एक चक्रवर्ती राजा की पत्नी है,
वही महारानी सीता वनवास के दुखों में,
अपने दिन कैसे काटती है,
अपने कुल के गौरव और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए,
किसी से सहायता मांगे बिना,
कैसे अपना काम वो स्वयं करती है,
स्वयं वन से लकड़ी काटती है,
स्वयं अपना धान कूटती है,
स्वयं अपनी चक्की पीसती है,
और अपनी संतान को स्वावलंबी बनने की शिक्षा,
कैसे देती है अब उसकी एक करुण झांकी देखिये )

फिर कहा गया है की हे श्रोतागण यानी प्रजाजन! जो एक राजा की पुत्री है,एक राजा की पुत्रवधु है,और एक चक्रवर्ती (पृथ्वी का अधिपति)राजा की पत्नी है वही महारानी सीता वन में रह कर अपने दुखो को कैसे काटती है यानी बिताती है अपने कुल के गौरव यानी अपने पुत्रों और खुद के स्वाभिमान की रक्षा करते हुए,किसी से सहायता मांगे बिना कैसे वो अपना काम स्वयं यानी खुद करती है खुद ही वन से लकड़ी काटती है,खुद ही अपना धान कूटती है,खुद ही अपनी चक्की पिसती है और अपने संतान को स्वावलंबी यानी आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा कैसे देती है अब एक करुण झांकी यानी संक्षिप्त में देखिए।



🙏🙏🙏 "Rup"

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