साथिया - 48 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 48

"मुझे बेहद खुशी है कि तुमने हमारी बात को समझा और हमारी सहमति में ही अपनी सहमति जताई। बाकी फिक्र मत करो हम लोग हमेशा तुम्हारे साथ हैं। और अब तो हमें किसी बात की चिंता ही नहीं है, हमारी बेटी हमेशा हमारी आंखों के सामने इसी गांव में रहेगी।" अवतार सिंह बोले।

नेहा ने एक बार उनकी तरफ देखा और वापस नजरे झुका ली। अवतार ने उसके सिर पर हाथ रखा और फिर बाहर निकल गए।


नेहा वापस से बिस्तर पर गिर गई और आंखों से आंसू निकलने लगे।


"क्या है यह सब?? क्या लगा रखा है इन लोगों ने?

भाग्य विधाता निर्णायक...?? अगर इसी तरीके से हमारे भाग्य का निर्णय लेना था तो क्यों पैदा किया ?? क्यों पढ़ाया लिखाया?? क्यों काबिल बनाया??
पैदा होने से पहले ही मार देते तो आज यह तकलीफ नहीं होती...!! या जन्म लेते से ही मार देते जैसे कि पुराने समय में मार देते थे लड़कियों को पैदा होते ही। जब हमारी खुशी हमारी इच्छा हमारी सहमति का कोई महत्व ही नहीं है तो इस जीवन का भी क्या मतलब है?? इससे तो मौत अच्छी है।" नेहा ने खुद से ही कहा और अचानक से उसके मन में विचार आया कि खुद को खत्म कर ले।

वह चारों तरफ कमरे में कुछ ढूंढने लगी खुद को खत्म करने के लिए...!! फिर अचानक से नजर पंखे की तरफ गई और उसने अपना दुपट्टा उठाया और पंखे की तरफ उछाल दिया।

पर अगले ही पल रुक गई।


"नहीं नहीं मैं नहीं मारुंगी।। नहीं मरना मुझे। मरना तो कायरों की निशानी होती है और नेहा कायर नहीं है। अभी तक मैंने हार नहीं मानी है और ना ही हार मानूंगी। जब कोई भी रास्ता नहीं बचेगा तभी मौत चुनूंगी पर उससे पहले मैं रास्ते ढूढ़ूंगी और अगर रास्ते नहीं है तो रास्ते बनाऊंगी...!!पर इस तरीके की जबरदस्ती बिल्कुल भी नहीं मानूंगी...!" नेहा बोली।



अगले दिन नाश्ते के समय नेहा ने अवतार सिंह की तरफ देखा।

"कुछ कहना चाहती हो क्या तो कह सकती हो...!! तुम्हें अगर कुछ लेना है अपनी पसंद का तो तुम बता सकती हो। तुम्हारी पसंद का सामान हम लोग चलकर तुम्हें दिलवा देंगे। बाकी सारी तैयारी तो मैं और तुम्हारी मम्मी कर चुके हैं। पर तुम्हें अपने लिए कुछ खास कपड़े और गहने लेना हो तो तुम बिल्कुल ले सकती हो, आखिर तुम्हारा विवाह है। तुम्हारा अधिकार है अपनी पसंद के गहने और कपड़े लेने का।" अवतार सिंह बोले तो नेहा के चेहरे पर फीकी मुस्कुराहट आई।

"अपनी शादी का.... किस के साथ करनी है। का करनी है कुछ भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। यहां तक की लड़के को चुनने का भी अधिकार नहीं है अपनी पसंद और ना पसंद बताने का अधिकार नहीं है। और मना करने का अधिकार नहीं है और गहने और कपड़ों में अधिकार बता रहे हैं। जैसे कि गहने और कपड़े ना हुए जिंदगी हो गए।" नेहा ने मन ही मन सोचा और फिर अवतार की तरफ देखा।

"ऐसी तो कोई भी इच्छा नहीं है मेरी । जब आप लोगों ने इतना सब कुछ अपने हिसाब से कर लिया है तो गहने और कपड़े भी अपनी पसंद के ले लीजिए। जब लड़का आपकी पसंद का है, परिवार आपकी पसंद का है, रिश्ता आपकी पसंद का है तो गहने और कपड़े वैल्यू ही क्या रखते हैं? " नेहा ने कहा तो अवतार सिंह का चेहरा कठोर हो गया और उन्होंने भावना की तरफ देखा।

भावना ने नेहा के कंधे पर हाथ रखा।

"मेरा मतलब है कि मेरी ऐसी कोई खास चॉइस नहीं है..!! एक्चुअली में मैंने अभी शादी के बारे में सोचा नहीं था इसलिए मुझे समझ नहीं आ रहा? आप और मम्मी जाकर जो लेना है ले लीजिये। बस आपसे एक बात पूछनी थी। " नेहा ने कहा।


"हां बोलो ना क्या पूछना है? "अवतार सिंह ने कहा...!!

"क्या मैं अपने दोस्तों को बुला सकती हूं मुंबई से यहां पर शादी के लिए? शादी के प्रोग्राम अटेंड करने के लिए उन्हे बोल दूं? क्या है कि इतने सालों उनके साथ रही हूं तो बुलाना तो बनता है।" नेहा ने कहा।

अवतार सिंह कुछ समय सोचते रहे फिर नेहा की तरफ देखा।


"अब वह लोग मुंबई के रहने वाले हैं....!! यहां गांव में आकर क्या करेंगे? उन्हें अच्छा नहीं लगेगा और हो सकता है तुम्हारा मजाक भी बनाएं कि किस तरीके का विवाह हो रहा है तुम्हारा? और शायद यहां आकर कुछ बखेड़ा भी खड़ा कर दें इस तरीके का माहौल देखकर। इसलिए बेहतर होगा कि तुम उन्हें ना बुलाओ।

बाकी तुम्हारे और निशांत के शादी के बाद मुंबई जाने का इंतजाम में खुद कर दूंगा। दोनों वहां पर जाकर घूम कर आना और किसी अच्छे से होटल में अच्छा सा खाना अपने दोस्तों को खिला देना। चाहे तो और कुछ भी करना हो तो कर देना और साथ ही साथ अपने साथ निशांत को भी उन लोगों से मिलवा देना। पर गांव में मुंबई के लोगों का आना ठीक नहीं है। हम तो देखते हैं फिल्मों में किस तरीके का रहन-सहन है मुंबई में लोगो का? और वह तो हमारी किस्मत अच्छी है कि मुंबई में जाकर भी तुम इतनी नहीं बदली और अभी भी गांव के तरीके का रहन-सहन है तुम्हारा। सलीके के कपड़े पहनती हो, सलीके से बातचीत करती हो ।

और सबसे बड़ी बात अपने मां-बाप की इज्जत करती हो।और उनकी बातों का मान रखती हो।" अवतार ने कहा।

नेहा ने गर्दन हिला दी।

उसने सोचा था कि इसी बहाने वह आनंद को यहां बुला लेगी पर आज अवतार सिंह ने उसकी यह वाली उम्मीद भी खत्म कर दी और अब नेहा को समझ नहीं आ रहा था कि आगे वो क्या करें और कैसे करें? किस तरीके से आनंद को यहां बुलाए और कैसे यहां से निकले? किस तरीके से इस शादी से खुद को बचाएं और किस तरीके से अपने सपनों को पूरा करें यहां से जाकर?"

सांझ को अब तक इस बात की खबर नहीं थी कि नेहा की शादी निशांत के साथ ते हो गई है।

इन सबसे अनजान सांझ ने भी अपनी छुट्टी के लिए अप्लाई कर दिया और गांव जाने की तैयारी में लग गई। वह अपना बैग जमा ही रही थी कि तभी अक्षत का फोन आया।



क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव