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गुलाबो - भाग 18


भाग 18


जगत रानी रज्जो को बांझ समझती थी। पर इस तरह सामने से कभी बांझ का संबोधन नही दिया था। सास जगत रानी के आदेश पर गुलाबो ने जेठानी रज्जो के हाथ से भोग की थाली ले ली।

गुलाबो के भोग की थाली हाथ से लेते ही रज्जो बुत बन गई। जगत रानी गुलाबो और बच्चों को साथ लेकर पूजा करवाने मंदिर चली गई। साथ ही रज्जो को आदेश दिया की गेंहू रक्खा है शाम के खाने के लिए आटा नही है। जाता (घरेलू आटा पीसने की चक्की) में वो गेंहू पीस डाले।

जगत रानी गुलाबो और बच्चों को ले कर मंदिर चली गई। और रज्जो गेहूं ले कर उसे जातें पर पीसने बैठ गई। रज्जो से सोच कर आई थी की शीतला माता की दिल से आराधना करेगी और अपनी गोद भरने की मन्नत करेगी। उसे यकीन था की मईया उसे संतान का सुख जरूर देंगी। पर अब क्या..? वो तो मंदिर भी नही जा पाई। रज्जो की आंखों से अनवरत आंसू की धार बह रही थी। वो अपने हाथो से आसू पोछे जाती और जांता चलाती जा रही थी। बांझ का संबोधन उसके कानो में बार बार गूंज रहा था। जितना ही वो कोशिश करती की सास की बात को ध्यान न दे, भूल जाए। उतना ही बार बार याद आता।

जय के स्कूल के समय का एक दोस्त पास के गांव में रहता था। उसका नाम रतन था। दोनो दोस्त स्कूल साथ साथ ही जाते थे। जय का घर स्कूल के रास्ते में पड़ता था। पहले रतन जय के घर आता फिर उसे साथ ले कर स्कूल जाता। दोनो ने साथ साथ पढ़ाई की थी। पढ़ाई पूरी होने पर जय तो नौकरी करने बाहर चला गया। पर रतन अपनी मां की इकलौती संतान था। उसके पिता की मृत्यु तभी हो गई थी जब वो साल भर का ही था। उसके घर में परिवार के नाम पर सिर्फ मां बेटे ही थे। खेती, बाग बगीचे बहुत ज्यादा थे। वो मां को अकेले नहीं छोड़ सकता था। इस कारण वो यहीं रह कर खेती का काम संभालने में अपनी मां का सहयोग करने लगा।

अब जब उसने सुना की जय आया है तो सुबह सुबह ही जय से मिलने चला आया।

रतन ने बाहर से ही "जय… जय..! " आवाज दी।

जय उस वक्त अंदर सो रहा था। जातें की घरर्र घर्र की आवाज में रतन की पुकार दब के रह गई। ना रज्जो सुन पाई ना ही जय।

कुछ देर तक तो रतन बाहर के दरवाजे पर खड़ा रहा। थोड़ी देर तक इंतजार कर रतन अंदर चला आया। वो जय का अभिन्न मित्र था इस कारण वो रज्जो से बात चीत करता था। रतन के आने से बेखबर रज्जो रोए जा रही थी और गेहूं पिसती जा रही थी। रतन ठिठक कर देखने लगा। रज्जो की आंखों से बहते आंसू रतन को दुखी कर रहे थे। वो समझ नही पाया की आखिर रज्जो भौजी को ऐसा कौन सा दुख है जो वो इस तरह दुखी हो कर रो रही हैं..?

रतन वही जाते के पास बैठ गया और झुक कर रज्जो से मजाक करने लगा अरे.. भौजी क्या जय से लड़ाई हो गई है..? जो इतना रो रही हो.? बताओ तो अभी उसके कान खींचता हूं। और बाकी सब कहां है..? ना अम्मा दिख रही है ना बच्चे।"

जांता रुकने से जय को किसी के बात करने की आवाज सुनाई देने लगी और वो जाग गया। रतन की आवाज पहचान कर जय भी बाहर आ गया।

रज्जो के कोई जवाब नही दिया। तभी जय को देख उसने यही सवाल जय से भी पूछा।

जय बोला, "बात क्या होगी..? अम्मा ने फिर आज कुछ बच्चे को लेकर कहा होगा। इसमें नया क्या है..? जो तुम इस तरह रो रही हो।"

रज्जो बिसूरते हुए बोली, "पर आज अम्मा ने मुझे बांझ कहा है..? और मैं बांझ हूं इस कारण मैं शीतला माता के थान पर पूजा में उनके साथ नही जा सकती।"

रतन ठठा कर हंस पड़ा। वो बोला, "बस इतनी सी बात भौजी। देखना तुम्हारे तीन बेटे होंगे। और तुम उन्हे पालते पालते थक जाओगी। इसी शीतला माता के आशीर्वाद से एक दिन तुम्हारा घर तुम्हारे नाती पोतों से भर जाएगा। प्रसाद खाने को कसोरा (मिट्टी का बर्तन) नही पूरा पड़ेगा।"

रज्जो को लगा की उसकी इस स्थिति का रतन भी मजाक उड़ा रहा है।

वो अपने स्वभाव के विपरीत नाराज़ होते हुए बोली, "हां हां ..! भईया आप भी उड़ा लो मेरा मजाक। मेरे तीन बेटे होंगे। खाने को कसोरे पूरे नही पड़ेंगे…? अब आप मेरा उपहास नही करोगे तो कौन करेगा..?"

रतन फिर उसी मस्त अंदाज में हंसा और बोला, "हां भौजी आपके ही तीन बेटे होंगे। मेरी बात गांठ बांध लो।"

फिर रज्जो का हाथ पकड़ कर बोला भौजी आप इसी बात पर ताली मारो और वादा करो की आपके बेटा होगा और मेरी बेटी तो हम दोनों का ब्याह कर समधी समधिन बन जायेंगे। और मैं मजाक नहीं कर रहा। मेरी बात सोलह आना सच साबित होगी एक दिन देखना आप सब।"

रतन के दो बेटे ही थे। उसकी और उसकी मां की दिली ख्वाहिश थी की घर में एक बेटी हो जिसे वो प्यार दुलार दे सके। सजा संवार सकें।

निराशा के भंवर में डूबी रज्जो ने रतन के हाथो पर उनके कहने पर ताली तो दे दी। पर उसे रतन की इस बात पर बिलकुल भी यकीन नही हुआ की वो तीन बेटों की मां बनेगी।

जय कभी भी रज्जो के सामने बच्चे को ले कर कभी कुछ नहीं कहता था। रज्जो को दुखी देख वो अपने दोस्त रतन से बोले, *यार रतन मैं तो जानता हूं अम्मा का स्वभाव। इसी कारण आना नही चाहता था। मुझे अंदेशा था इस बात का को कोई ना कोई बात जरूर ऐसी होगी जो रज्जो को दुख देगी। पर इसी ने जिद्द की शीतला माता की पूजा में शामिल होने की। अब देख लो… हो गई शामिल…?"

इन सब गंभीर बातों के बीच रज्जो को रतन को चाय पानी देना याद ही नहीं रहा। जय रतन से कुछ बातें करना चाहता था। इसलिए वो रज्जो से बोला, "क्या रज्जो..? आज रतन को ऐसे ही सूखा सूखा विदा कर दोगी, बिना कुछ खिलाए पिलाए..?"

रज्जो कभी मौका नहीं देती थी की कोई टोके उसे किसी की खातिर दारी के लिए। वो झेंप गई और तुरंत उठ कर रसोई में चली गई।

रज्जो, रतन के लिए चाय पानी का बंदोबस्त करने उठ गई।


आखिर जय रतन से क्या बात करना चाहता था..? जो रज्जो के सामने नहीं कर सकता था। क्या रज्जो मां बन पाएगी.…? क्या कभी उसके सपने पूरे होंगे….? जानने के लिए पढ़ते रहे "गुलाबो…..?


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