मैं कौन हूँ? DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं कौन हूँ?

1.
ईमानदारी से बड़ा फल

एक सुभाकी नामक गाँव में शान्तनु और उसकी बूढ़ी काकी रहते थे। काकी बहुत ही समझदार थी और शान्तनु को सदैव सच्चाई और ईमानदारी का पाठ पढ़ाती रहती थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि शान्तनु जब थोड़ा बड़ा हुआ तो वह छोटा-मोटा काम करने लगा।
एक दिन वह मेले में गया तो देखा कि रास्ते में एक बड़ा सा पैकेट पड़ा है-, "अरे! ये क्या? लगता है, किसी का गिर गया होगा। चलो पास ही एक घोषणा कर देता हूँ।" ऐसा सोचकर वह जहाँ माइक से घोषणाएँ हो रही थीं, उनके पास जाता है और कहता है-, "सुनिए! ये किसी का पैकेट गिर गया है। क्या आप एक घोषणा करा सकते हैं?"
"अरे.. हांँ.. हांँ.. क्यों नहीं! लाओ ये पैकेट मुझे दे दो और तुम जाओ, मैं जिसका होगा दे दूँगा।" शान्तनु वह पैकेट देकर आगे जैसे ही बढ़ता है, देखता है कि एक बूढ़े दादा जी रो रहे हैं। वह पूछता है कि-, "दादा जी.. दादा जी! क्या हुआ.. आप क्यों रो रहे हैं?" बूढ़े दादा जी बोले-, "आज मेरी पोती की शादी है और मैं अपनी गाय-भैंस बेचकर धन लेकर जा रहा था, लेकिन मुझे अचानक चक्कर आ गया और वह पोटली कहीं गिर गयी।"
शान्तनु ने सोचा कि कहीं ये उसी पोटली की बात तो नहीं कर रहे, जो मुझे मेले में मिली थी। उसने कहा-, "आप एक मिनट रुकिए, मैं अभी आया।" वह दौड़कर घोषणा वाले व्यक्ति के पास जाता है और कहता है कि-, "अंकल! मेरी वह पोटली दे दीजिए।"
"कौन सी पोटली? मेरे पास कोई पोटली नहीं है।" शान्तनु को समझते देर नहीं लगी कि ये बेईमानी कर रहा है। उसने एक उपाय सोचा और कहा कि-, "सुनिए! मुझे उसी तरह की एक पोटली और मिली है, मैं तो देखना चाहता था कि दोनों एक सी हैं क्या?"
उस घोषणा वाले व्यक्ति को लालच आ गया और तुरन्त बोला-, "मुझे माफ करना! मैं भूल गया था। अभी दिखाता हूँ।" जैसे ही उसने वह पोटली दिखायी तो शान्तनु ने वह पोटली उस बूढ़े दादाजी को दे दी। उस बूढ़े दादा जी ने शान्तनु को उसकी सूझ-बूझ और ईमानदारी के लिए बहुत धन्यवाद और आशीर्वाद दिया। तभी एक बहुत बड़ा व्यापारी ये सब देख रहा रहा था। उसने तुरन्त शान्तनु को अपने व्यापार में शामिल कर लिया।

संस्कार सन्देश :- सच! ईमानदारी से बड़ा कोई फल नहीं है।




2. अध्यापिका

अध्यापिकाएं हड़बड़ी में निकलती हैं रोज सुबह घर से
आधे रास्ते में याद आता है सिलेंडर नीचे से बंद किया ही नहीं
उलझन में पड़ जाता है दिमाग
कहीं गीजर खुला तो नहीं रह गया
जल्दी में आधा सैंडविच छूटा रह जाता है टेबल पर
कितनी ही जल्दी उठें और तेजी से निपटायें काम विद्यालय पहुँचने में देर हो ही जाती है
खिसियाई हंसी के साथ बैठती हैं अपनी सीट पर
इंचार्ज के बुलावे पर सिहर जाती हैं
सिहरन को मुस्कुराहट में छुपाकर
नाखूनों में फंसे आटे को निकालते हुए अटेंड करती हैं
काम करती हैं पूरी लगन से
पूछना नहीं भूलतीं बच्चों का हाल
सास की दवाई के बारे में
उनके पास नहीं होता वक्त पान, सिगरेट या चाय के लिए
बाहर जाने का
उस वक्त में वे जल्दी-जल्दी निपटाती हैं काम
ताकि समय से काम खत्म करके घर के लिए निकल सकें.
दिमाग में चल रही होती सामान की लिस्ट
जो लेते हुए जाना है घर
दवाइयां, दूध, फल, राशन
विद्यालय से निकलने को होती ही हैं कि
तय हो जाती है कोई ट्रेनिंग
जैसे देह से निचुड़ जाती है ऊर्जा
बच्चे की मनुहार जल्दी आने की
रुलाई बन फूटती है वाशरूम में
मुंह धोकर, लेकर गहरी सांस
शामिल होती है ट्रेनिंग में
नजर लगातार होती है घड़ी पर
और ज़ेहन में होती है बच्चे की गुस्से वाली सूरत
साइलेंट मोड में पड़े फोन पर आती रहती हैं ढेर सारी कॉल्स
दिल कड़ा करके वो ध्यान लगाती हैं ट्रेनिंग में
घर पहुंचती हैं सामान से लदी-फंदी
देर होने के संकोच और अपराधबोध के साथ
शिकायतों का अम्बार खड़ा मिलता है घर पर
जल्दी-जल्दी फैले हुए घर को समेटते हुए
सबकी जरूरत का सामान देते हुए
करती हैं डैमेज कंट्रोल
मन घबराया हुआ होता है कि कैसे बतायेंगी कैसे मनायेंगी सबको
विद्यालय में सोचती हैं
कितनी बार कहेंगी घर की समस्या की बात
अध्यापिकाएं सुबह ढेर सा काम करके जाती हैं घर से
कि शाम को आराम मिलेगा
रात को ढेर सारा काम करती हैं सोने से पहले
कि सुबह हड़बड़ी न हो
विद्यालय में तेजी से काम करती हैं कि घर समय पर पहुंचे
घर पर तेजी से काम करती हैं कि विद्यालय समय से पहुंचे
हर जगह सिर्फ काम को जल्दी से निपटाने की हड़बड़ी में
एक रोज मुस्कुरा देती हैं आईने में झांकते सफ़ेद बालों को देख
किसी मशीन में तब्दील हो चुकी अध्यापिकाओं से
कहीं कोई खुश नहीं न घर में, न विद्यालय में न मोहल्ले में, फिर भी कोशिश यही रहती है हर समय सबको खुश रख सकें।

2. एक गिलास पानी

एक सरकारी कार्यालय में लंबी लाइन लगी हुई थी। खिड़की पर जो क्लर्क बैठा हुआ था, वह तल्ख़ मिजाज़ का था और सभी से तेज स्वर में बात कर रहा था।

उस समय भी एक महिला को डांटते हुए वह कह रहा था, "आपको ज़रा भी पता नहीं चलता, यह फॉर्म भर कर लायीं हैं, कुछ भी सही नहीं। सरकार ने फॉर्म फ्री कर रखा है तो कुछ भी भर दो, जेब का पैसा लगता तो दस लोगों से पूछ कर भरतीं आप।

एक व्यक्ति पंक्ति में पीछे खड़ा काफी देर से यह देख रहा था, वह पंक्ति से बाहर निकल कर, पीछे के रास्ते से उस क्लर्क के पास जाकर खड़ा हो गया और वहीँ रखे मटके से पानी का एक गिलास भरकर उस क्लर्क की तरफ बढ़ा दिया।

क्लर्क ने उस व्यक्ति की तरफ आँखें तरेर कर देखा और गर्दन उचका कर 'क्या है?'
का इशारा किया।

उस व्यक्ति ने कहा, "सर, काफी देर से आप बोल रहे हैं, गला सूख गया होगा, पानी पी लीजिये।"

क्लर्क ने पानी का गिलास हाथ में ले लिया और उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो।

और कहा, "जानते हो, मैं कडुवा सच बोलता हूँ, इसलिए सब नाराज़ रहते हैं, चपरासी तक मुझे पानी नहीं पिलाता!"

वह व्यक्ति मुस्कुरा दिया और फिर पंक्ति में अपने स्थान पर जाकर खड़ा हो गया।

अब उस क्लर्क का मिजाज बदल चुका था, काफी शांत मन से उसने सभी से बात की और सबको अच्छे से सेवाए देनी शुरू की।

शाम को उस व्यक्ति के पास एक फ़ोन आया, दूसरी तरफ वही क्लर्क था, उसने कहा,भाईसाहब, आपका नंबर आपके फॉर्म से लिया था, शुक्रिया अदा करने के लिये फ़ोन किया है।

मेरी माँ और पत्नी में बिल्कुल नहीं बनती, आज भी जब मैं घर पहुंचा तो दोनों बहस कर रहीं थी, लेकिन आपका गुरुमन्त्र काम आ गया।"

वह व्यक्ति चौंका, और कहा, "जी? गुरुमंत्र?"
जी हाँ, मैंने एक गिलास पानी अपनी माँ को दिया और दूसरा अपनी पत्नी को और यह कहा कि गला सूख रहा होगा पानी पी लो। बस तब से हम तीनों हँसते-खेलते बातें कर रहे हैं। अब भाईसाहब, आज खाने पर आप हमारे घर आ जाइये।"

"जी! लेकिन , खाने पर क्यों?"
क्लर्क ने भर्राये हुए स्वर में उत्तर दिया,

"गुरू माना है तो इतनी दक्षिणा तो बनेगी ना आपकी और ये भी जानना चाहता हूँ, एक गिलास पानी में इतना जादू है तो खाने में कितना होगा?"

दूसरो के क्रोध को प्यार से ही दूर किया जा सकता है। कभी कभी हमारे एक छोटे से प्यार भरे बर्ताव से दूसरे इंसान में बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाता है और प्यार भरे रिश्तो की एकाएक शुरूआत होने लगती है जिससे घर और कार्यस्थल पर मन को सुकुन मिलता है।