मेरी मुस्कान तुम से है दिनेश कुमार कीर द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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मेरी मुस्कान तुम से है

1.
मैं लिखना चाहती हूं एक ख़त,
इन हवाओं के ज़रिए,
मैं पंहुचाना चाहती हूं तुम तक,
अपने एहसास,अपने जज़्बात सारे,
सुनो,
क्या मेरी तरह तुम्हे भी ,
हर और दिखाई देता है अक्स मेरा,
क्या मेरी आवाजे,
गूंजती है तुम्हारे आस पास भी हमेशा?
क्या शाम की ठंडी ठंडी हवाएं,
मेरे होने का एहसास कराती है तुम्हे,
क्या तुम्हारी बेचैनी भी बढ़ा देती है,
ये काली ,लंबी रातें स्याह रातें ?
क्या धड़कने तुम्हारी भी,
कभी कभी मद्धम हो जाती हैं,
मेरा चेहरा याद आने पर ,
क्या तुम्हारी भी पलकें ,
गीली होती हैं मेरे ज़िक्र पर कहीं,
क्या रुक जाती है तुम्हारी निगाह भी,
अपनी चौखट पर मेरे इंतजार में,
क्या तुम्हे भी मेरे लिए ,
मर मिटने की चाह होती है..?
मैं पूछना चाहती हूं तुमसे कि,
क्या तुम भी महसूस करते हो वो सब,
जो मैने महसूस किया और,
महसूस करती हूं तुम्हारे लिए..!

2.
अगर आप सच में किसी को पसंद करते हैं ,
या किसी का साथ आपको काफी पसंद है,
या फिर किसी से कोई रिश्ता है खास सा,
तो उनकी महज़ एक दो खामियों पर उनका साथ न छोड़े,
क्योंकि खामियां लगभग सभी में होती हैं,
ऐसा कोई नही जिसमे कोई कमी न हो,
हां मुझमें भी हैं खामियां,मैं इस बात से इंकार नहीं कर सकती,
इंसान हूं भगवान नही तो कमी या खामी होना स्वाभाविक है,
मगर कुछ तो अच्छाई भी होंगी न,
खैर..
अगर वो खामियां कोई गलत लत या आदत है तो,
आप उसे प्यार से,अपनत्व से,और सहजता से,
दूर करने की कोशिश भी कर सकते हैं,किसी को पूरी तरह से बदलना ,हमारा उद्देश्य नही होना चाहिए..!
और न छोटी छोटी बातों पर रिश्ते खत्म करना,
कई अच्छाइयों पर एक दो बुराई को तवज्जो न दें,
आप सामने वाले से अपनी बात कह सकते हैं,उन्हे समझा सकते हैं मगर छोड़ देना सही नही,
उन्हे मौका दीजिए क्योंकि कोई भी आदत आसानी से नही छूटती,समय लगता है हर आदत को छोड़ने के लिए ..!
खैर....बाकी आप सब लोग खुद ही काफी समझदार हैं

3.
बचपन भी ढंग से कहां जी पाते हैं,
लड़के उम्र से पहले ही बड़े हो जाते हैं,
मन की बातें अक्सर पिता से छिपाते हैं,
मां के आंचल की महक भूल नही पाते हैं,
छीन लेती है मजबूरियां मुस्कान अक्सर ही,
लड़के कहां फिर जी खोल के हंस पाते हैं,
घर छोड़ने का रिवाज़ नहीं था इनका,
मगर हालातो से हो मजबूर घर कहीं पीछे छोड़ आते हैं,
न चाहत न इश्क न कोई शौक रखते हैं,
जिम्मेदारियां थामे जब अपने घर से निकल आते हैं,
नही दिखाते ये अपने आंसू किसी को,
लड़के यूं हीं नहीं जिम्मेदार मर्द कह लाते हैं...!

4.
मैं आवाज दूं और
तुम चले आओ,
कशिश ऐसी
मेरी आवाज़ में
ए काश हो पाती,
भेजती तुम्हे,
पैगाम हवा के जरिए मैं,
ये खामोश हवाएं,
काश तुमसे,
मेरे अल्फाज़ कह पाती,
बंद करती मैं ,
ये पलकें अपनी,
तुम्हे तलाशने के लिए,
खुलते ही निगाह,
काश तुमसे ,
मुलाकात मेरी हो जाती..!

5.
कभी कभी यूं हीं,
छू जाते हैं मन को,
वो बीते लम्हे
प्यार के ,
कभी कभी उदासी,
की गहरी चादर,
ढक देती है मन के,
उन मद्धम उजालों को,
शांत सी हो जाती है,
सांसे, चलते चलते,
और कभी कभी,
महसूस होती है ,
एक ठंडक सी अंतर्मन में,
जो देती हैं एक सुकून,
मानो चंद्रमा की शीतल
छाया सीधा पड़ रही है,
हमारे ही तन पर ...!

6.
मन की बातों में भी बहुत बोझ होता है,कभी कभी।
तभी तो कुछ लोग उस बोझ तले अपनी जिंदगी तक खत्म कर लेते हैं,जब रास्ता नही दिखाई देता कोई ,
जब लगता है कि कोई हमे सुनेगा नही तो मन फिर खुद ही अंधकार में खोने लगता है ये वो वक्त है जब एक इंसान को
किसी सुनने वाले की जरूरत होती है जो उसे कुछ समझा सके ,बता सके ।
कम से कम उसे एक बार सुने तो सही, क्यूंकि किसी के पास वक्त ही नही,कोई किसी को सुनना भी नही चाहता।
तभी तो लोग मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं,तभी लोगो को जिंदगी से अलगाव होने लगता है,यहां तक की अपना परिवार भी ये नही समझ पाता कि उस इंसान पर क्या गुजर रही है?
ख़ैर....
अगर आपके मन में भी कोई ऐसी बात हो तो हम से शेयर कर सकते हैं, हम नही कहते की हमारे पास समस्याओं के कोई हल हैं, हम बस ये कहेंगे की उन सब बातों का बोझ मन से खत्म कीजिए जिंदगी बहुत कीमती है ,उसे यूं हीं जाया न करें ,क्योंकि समस्याओं से जूझते हुए आगे बढ़ने को ही जिन्दगी कहते हैं।
खुश रहे सभी..