एक गाँव की कहानी
"अहा! इतने लम्बे - चौड़े खेत। धन्य हो! हमारे पितरों ने कैसे कब इनका निर्माण किया होगा? जब धरती काटने या जमीन समतल करने की आजकल जैसी कोई मशीनरी उपलब्ध नहीं थीं।" कहते हुए सोहन लाल अपने घर से लगे सीढ़ीदार खेतों को निहारे जा रहे थे।
"अरे यार! तब गाँव में लोगों के बीच एकता, सहयोग, समर्पण व इस भूमि के प्रति आत्मिक लगाव था। लोग गाँव में ही मस्त रहकर खेतीबाड़ी, पशुपालन करते। शुद्ध हवा पानी लेते खूब मेहनत करते और सामूहिक रूप से कार्य कर कठिन से कठिन कार्यों को पल में निपटा देते।" कहते हुए उसके साथ बैठे साथी हेमराज ने गुड़ के साथ चाय का घूँट लेते हुए कहा। "सही कहा तुमने, अब जल्दी ही इन बंजर पड़े खेतों में छोटे ट्रेक्टर से जुताई कर फसलें उगायेंगे। फलदार पेड़ पौधे लगायेंगे।"
"बिलकुल यार जैसे मकान बनाकर, हम तो उजड़ चुके अपने इस पैतृक गाँव को फिर से आबाद कर दिया है। है ना।" गरम - गरम चाय की चुस्कियों के साथ बहस जारी थी कि तभी तेज कदमों के साथ मोहन उधर आता हुआ दिखाई दिया। 'जय माता दी' कहते हुए उसने बताया कि- "शहरों व मैदानों में बसे लगभग सभी परिवार अब यहाँ गाँव में भी मकान बनाने जा रहे हैं। सुनकर सभी के चेहरों पर मुस्कराहट तैर गयी और नजरें आस्था के साथ अपने इष्ट देवी मन्दिर की ओर लग गयीं।
अस्सी से नब्बें के बीच का दौर था वह, जब नौकरी पैसा व समृद्ध लोगों ने सुविधाओं की दुहाई दे एक - एककर गाँव छोड़ना शुरू किया था। तराई - भावर क्षेत्र व शहरों में मकान बनाकर वहीं के होकर रहने लगे थे। शेष एक - दो गरीब परिवार भी निकटवर्ती सड़क से जुड़े कस्बों व बाजारों में चले गये और पूरा गाँव जन शून्य होकर उजाड़ हो चला था।
बीस - पच्चीस सालों के इस दौर में अनेक बुजुर्ग चल बसे थे और एक नयी पीढ़ी भी जवान हो गयी थी। विडम्बना यह रही कि गाँव के कुल देवी (इष्टदेवी) का पूजन करने लगभग हर परिवार साल - दो साल में गाँव आते और मन्दिर के निकट टैंट बना शीघ्र पूजा पाठ निपटाकर मैदानों को निकल जाते। मगर टूटे हुए मकान बंजर पड़े खेत व उजाड़ पड़ी इस धरती की टीस उन्हें अन्दर से बेंधते रहती।
अब अलग राज्य बन जाने से पहाड़ के लगभग हर गाँव सड़क से जुड़ने लगे थे, तभी कोरोना ने भी दस्तक दे दी। शहरी क्षेत्रों से लोग भाग - भागकर पहाड़ अपने घरों में आने लगे। शुद्ध आबो - हवा, खान - पान तथा स्वाभाविक दूरी के चलते यहाँ बहुत कम जनहानि हुई और लोगों की अपने स्थानीय इष्टदेवी के प्रति आस्था में भी इजाफा हुआ। वे इसे उनकी कृपा भी मानते।
लोगों का मन अब पुन: गाँव की ओर दौड़ने लगा। गाँव तक काफी सुविधाएँ पहुँच चुकी थीं। समृद्ध परिवारों में से सोहन लाल व हेमराज का परिवार ने शीघ्र ही गाँव में अपने लिए नये मकान बना लिए और अन्यत्र बसे गाँव के लोगों से सम्पर्क कर चन्दा इकठ्ठा करते हुए भव्य इष्टदेवी मन्दिर का निर्माण भी कर दिया। इस वर्ष लगभग प्रत्येक परिवार का अब नया घर बनने जा रहा था तथा इस बीच मन्दिर में पूजा आयोजन के लिए इकट्ठा हुए प्रत्येक व्यक्ति के आँखों में अब खुशी के आँसू सहज ही प्रकट भी हो रहे थे।
संस्कार सन्देश :- गाँव का जीवन सहज और प्राकृतिक होता है। यहाँ निरन्तर शुद्ध हवा और संस्कारों का संगम है।