मालिक DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मालिक

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*रोज की तरह कुछ दिन पहले मैं गौशाला में सेवा कर रहा था। मेरे हाथ में चारे का कट्टा था। और मैं एक खोर पर चढकर दुसरी खोर मे चारा डाल रहा था।उन दोनों के बीच में एक लोहे का मोटा सा पाईप था। मेरा पैर फिसला और मैं सीने के बल उस पाईप पर जा गिरा।जिससे मेरी छाती में मामूली सी अंदुरुनी चोट आ गई। मैंने कुछ दिन तक घर पर ही सिकाव और दवाई आदि की परन्तु कोई आराम नहीं हुआ। इसलिए कल मैंने सोचा कि किसी पहलवान से मालिश करवा लेनी चाहिए।*

*यह तो थी मेरी व्यथा। अब सुनिए मेरे ठाकुर की कथा।*

*तो मैं हड्डियों का इलाज करने वाले एक डॉक्टर रूपी पहलवान के पास चला गया।*

*उसने पूछा :- कैसे लगी ?*

*मैंने संक्षेप में थोड़ा सा बताया :- गाय को चारा डालते समय गिर गया।*

*मुझे पता है कि ऐसे डॉक्टर जानबूझकर मरीज को बातों में लगाए रखते है ताकि इलाज करते समय मरीज का उस ओर ध्यान ना जाए।*

*अब आगे।*

*डॉक्टर बोला :- बाबा पट्टी तो बांध रहा हूँ परन्तु इसे ज्यादा हिलाना डूलाना नहीं।*

*मैंने कहा :- गाय को चारा पानी तो करना ही पडेगा।*

*डॉक्टर :- किसी और को बोल देना।*

*मैं :- नहीं। यह केवल मेरी डयूटी हैं।*

*(अब यहाँ से आनंद शुरू होता हैं)*

*डॉक्टर :- बाबा किसी के यहां नौकरी करते हो क्या ?*

*उसका इतना बात कहना हुआ और मेरे सुमिरन मे ठाकुर चलने लगा। अब देखिए यहां वो किसी संसारिक व्यक्ति के बारे मे बात कर रहा है।और मैं अपने ठाकुर के बारे मे सोच रहा हूँ।*

*तो डॉक्टर ने पूछा :- बाबा किसी के यहां नोकरी करते हो क्या ?*

*मैंने कहा :- हाँ ?*

*डॉक्टर :- तो तुम्हारे मालिक के पास और कोई नौकर नहीं है।*

*मैं :- बहुत सारे हैं।*

*डॉक्टर :- तो उनसे नहीं करवाते।*

*मैं :- नही सबका अपना-अपना काम बटा हुआ है।*

*डॉक्टर :- कितनी तनख्वाह मिलती हैं ?*

*मैं :- कभी पुछा नहीं।*

*डॉक्टर :- मतलब ?*

*मैं :- जब भी जरूरत होती है अपने आप दे देता है।कभी मांगना नहीं पडा।*

*डॉक्टर :- अच्छा लमशम मे होगे। फिर तो खाना,पीना,ओढना,रहना सब उनका होगा।*

*मैं :- हाँ सब उनका ही है।*

*बहुत बढिय़ा हैं। (बाहर खडी गाड़ी की ओर इशारा करते हुए बोला) ये गाडी भी तुम्हारे मालिक की है।*

*मैं :- हाँ।*

*डॉक्टर :- परमानेंट तुम्हें ही दे रखी है।*

*मैं :- हाँ।*

*डॉक्टर :- तुम्हारा मालिक तो बहुत बढिया हैं। लगता है बचपन से ही उसके पास काम कर रहे हो।*

*मैं :- हाँ।*

*डॉक्टर :- तभी तो। मैंने अक्सर देखा ऐसे लोगों के मालिक बहुत बढिया होते है। अपने नौकरो का अपने बच्चों की तरह ध्यान रखते हैं। अच्छा बाबा तुम्हारे कितने बच्चे हैं ?*

*मैं :- दो गुडिया हैं।*

*डॉक्टर :- क्या करती हैं ?*

*मैं :- पढती हैं।*

*डॉक्टर :- कौन सी क्लास में ?*

*मैं :- एक अभी 6th मे हैं।और दुसरी 11th मे।*

*डॉक्टर :- 11th वाली को कौन सा सबजेक्ट दिलवाया हैं।*

*मैं :- medical Science.*

*डॉक्टर :- इसमें तो आगे चल के बहुत खर्चा होता है। यह भी तुम्हारे मालिक ने दिलवाई होगी।*

*मैं :- हाँ उन्होंने ही दिलवाई हैं।*

*डॉक्टर :- कौन से स्कूल मे है ?*

*मैंने स्कूल का नाम बताया :- अमुक स्कूल में है।*

*डॉक्टर :- वह तो हमारे क्षेत्र के महंगे स्कूलों में से है। बाबा एक बात तो है। तुझे तेरे मालिक ने तेरी औकात से बहुत ज्यादा दिया है।*

*अब तक मैं पूरे भाव में भर चुका था। और जैसा कि मैंने पहले भी आपको कई बार बताया है कि जब आप भीतर से भावुक होते हैं तो आपकी वाणी मौन हो जाती हैं।*

*परन्तु मेरे भाव का बांध तो टूटा जब चलते समय उसने कहा :- बाबा देखना जब तेरे बच्चों की शादी होगी तो तेरा मालिक उनके खाते में लाखों रुपया डाल देगा। तू तो बस ऐसे ही लगा रह। ऐसे मालिक को कभी मत छोडियो।*
*मैंने हामी मे सिर हिलाया। और मन ही मन कहने लगा :- कभी नहीं छोडूंगा, कभी नहीं छोडूंगा।