जो दिल कहें DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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जो दिल कहें

1.
अपनी उलझन को बढ़ाने की जरूरत क्या है।
छोड़ना है तो बहाने की जरूरत क्या है।

लग चुकी आग तो लाज़िम है धुँआ उठेगा
दर्द को दिल में छुपाने की जरूरत क्या है

उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें
फिर मेरे ख्वाबों में आने की जरूरत क्या है

अजनबी रंग छलकता हो अगर आँखों से
उनसे फिर हाथ मिलाने की जरूरत क्या है।

आज बैठे है तेरे पास कई दोस्त नये
अब तुझे दोस्त पुराने की जरूरत क्या है।

साथ रहते हो मगर साथ नहीं रहते हो
ऐसे रिस्ते को निभाने की जरूरत क्या है.

2.
आहिस्ता चल जिंदगी,
अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है.

रफ्तार में तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए कुछ छुट गए,
रूठों को मनाना बाकी है,
रोतों को हसाना बाकी है,

कुछ रिश्ते बन कर टूट गए,
कुछ जुड़ते-जुड़ते टूट गए,
उन टुटे-छूटें रिश्तों के,
ज़ख्मों को मिटाना बाकी है,

कुछ हसरतें अभी अधुरी है,
कुछ काम भी और जरूरी है,
जिवन की उलझी पहेली को,
पुरा सुलझाना बाकी है,

जब सांसों को थम जाना है,
फिर क्या खोना, क्या पाना है,
मन के जिद्वी बच्चे को यह बात बताना बाकी है,
आहिस्ता चल जिंदगी,

अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है।
पर

3.
वापस न लौटने की ख़बर छोड़ गए हो,
मैंने सुना है तुम ये शहर छोड़ गए हो.
दीवाने लोग मेरी कलम चूम रहे हैं,

तुम मेरी ग़ज़ल में वो असर छोड़ गए हो.
सारा ज़माना तुमको मुझ में दूंढ रहा है,
तुम हो की मुझको जाने किधर छोड़ गए हो..

दामन चुरानेवाले मुझको ये तो दे बता,
क्यों मेरे पीछे अपनी नज़र छोड़ गए हो..

मंजिल की है ख़बर न रास्तों का है पता,
ये मेरे लिए कैसा तन्हा सफर छोड़ गए हो..!!

4.
ज़िन्दगी.

सफर में जब ज़िन्दगी को देखा
जो अनजान राहों पर चलते जा रही थी,

कभी संगीत के स्वर की तरह
मुस्कृरा रही थी.

तो कभी आंखमिचोली खेल
डरा रही थी।

मंजिल तक पहुचने की धुन में
बिना रुके वह चलती जा रही थी,

कभी नदियों की तरह बहती
तो कभी पहाड़ों से टकरा रही थी।

हिम्मत कर एक दिन
मैंने उससे पूछ ही लिया,

"मुझे क्यों इतना सता रही थी
जब देखो तब मुझे आजमा रही थी.

चल तो रहा था तेरी ही शत्तों पर
तो क्यों हर बार इम्तिहान लिए जा रही थी।

5.
मैं छोटा सा इक बच्चा था
तेरी ऊँगली थाम के चलता था

तू दूर नजर से होती थी
मैं आंसू आंसू रोता था...

इक ख्वाबों का रोशन बस्ता
तू रोज मुझे पहनाती थी

जब डरता था मैं रातों में
तू अपने साथ सुलाती थी..

माँ तुने कितने बरसों तक
इस फूल को सींचा हाथों से

जीवन के गहरे भेदों को
मैं समझा तेरी बातों से..

मैं तेरे हाथ के तकिए पर
अब भी रात को सोता हूँ

माँ मैं छोटा सा इक बचचा
तेरी याद में अब भी रोता हूँ..

6.
मैं शहर का शोर शराबा,
तू गांव जैसी शांत प्रिये !

मैं उलझा हुआ सा ख़्वाब कोई,
तू सुलझी हुई सी बात प्रये !

मैं दोपहर की चिकचिक,
तू सुकून भरा रात प्रिये !

मैं दूरियों का पैमाना,
तू हसीन मुलाक़ात प्रिये!

मैं इश्क़ सीखने का आदी
तू इश्क़ की पूरी जात प्रिये !

मैं बिखरा हुआ सा जवाब तेरा,
तू सिमटा हुआ सवालात प्रिये !

मैं थोड़ा अलग इस दुनिया से,
मगर मिलते हैं तुझसे ख़यालात प्रिये !

मैं कागज़ पर गिरी स्याही,
तू तराशा हुआ जज़बात प्रिये !


7. "जो दिल कहें"

जिंदगी में चाहें कोई साथ दे या ना दे,
मगर चलो उसी राह पर, जो दिल कहें ।

ये दुनिया कहेंगी तुम्हें बुरा बोलने को
मग़र हमेशा बोलों वहीं, जो दिल कहें ।

जिंदगी की राह में मिलेंगे कई बहकावी
मग़र सफ़र में सुनो उसकी, जो दिल कहें ।

अभी कई आएंगे तुम्हें बर्बाद करने वाले,
मग़र तुम संभलो उससे ही, जो दिल कहें ।

करने के लिए तो बहुत कुछ हैं, जहां में
मग़र तुम हमेशा करो वहीं, जो दिल कहें ।