पहली आस्की - भाग 5 SR Daily द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पहली आस्की - भाग 5

रख दिया।
इसकी शुरुआत एक और 'तो' से हुई।
'तो, ' अमरदीप ने इस बार हैप्पी की ओर देखते हुए कहा।
क्या?' हैप्पी ने अपनी कुट्ी उठाते हुए पूछ्ा।
*अगली खास बात क्या है? अमरदीप ने पूछा
तुम्हारा मतलब डिनर से है?' एमपी बीच में बोल पड़ा।
नहीं, मेरा मतलब जिंदगी की अगली महत्वपूर्ण चीज़ से है। स्कूल की पढ़ाई हो गई। इंजीनियरिं
की पढ़ाई भी हो गई। अच्छी-खासी नौकरी भी मिल गई। विदेश भी हो आये। वैंक में पैसा जमा
होता जा रहा हैं। मील का अगला पत्थर क्या है?
'हाँ! मैं समझ गया कि तुम क्या बात कर रहे हो,' अपनी पहले से उठी हुई टुट्वी मेरी तरफ घुमाते
हैप्पी ने हाँ में हाँ मिलाई, "इससे पूछो,' हुए उसने कहा।
सब मेरी ओर देखने लगे ।
'मुझे पता नहीं कि तुम लोगों के जीवन में, घर में क्या हो रहा है, लेकिन मेरे मम्मी-पापा तो जैसे
पागल हो रहे हैं। वे मेरे पीछे किस तरह पड़े हैं कि तुम सोच भी नहीं सकते। क्या मैं अकेले अच्छी
तरह से नहीं रह सकता?" अमरदीप ने कहा।
'तो क्या तुमने या तुम्हारे परिवार ने कुछ तय कर लिया,' मैंने उससे पूछा
'नहीं, मेरी कहानी भी तुम लोगों की तरह ही है। लेकिन सच्चाई यह है कि एक दिन हम लोगों को
अपने-अपने जीवनसाथी के साथ घर बसाना होगा। कब तक हम लोग अपने माता-पिता के सवाल
को टाल सकते हैं? हमको लेकर उनकी भी कुछ उम्मीदें हैं, कुछ सपने हैं।
'मैं जानताहूँ कि तुम क्या कहना चाह रहे हो अमरदीप । लेकिन क्या तुम सचम्च अपनी पूरी
जिंदगी किसी के साथ विताने के लिए तैयार हो? मेरा मतलब है कि होस्टल में 4 साल के दौरान ऐसे
कई मौके आए जब हमें एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाना पड़ा..यह तो जीवन भर के लिए होगा,
हैप्पी ने कहा।
'लेकिन देर-सबेर हमें यह करना होगा, समझे?' अमरदीप बोला।
'अगर हम इसी तरह से रह गए तो क्या होगा?' एमपी बोला।
'ज़रा कल्पना करो कि 60 साल की उम्र में तुम अकिले रह रहे हो। जीवन इतना आसान नहीं है, मे
दोस्त। यह एक यात्रा है और जीवन साथी के साथ इसे सबसे आसानी से पूरा किया जा सकता है।
अमरदीप बोला।
उस रात नदी-किनारे हम चारों ने इस मसले पर बड़ी गंभीरता से चर्चा की, पहली बार । शायद
पहली बार हमने महसूस किया कि हम इतने बड़े हो गए हैं कि इसके बारे में बातें कर सकें। अनेक
तरह के सवाल, किंतु-परंतु उठे और हमने उनके जवाब भी दिए। अनेक तरह के पहल्ओं को लेकर
चर्चा हुई। हम में से कोई भी शादी के खिलाफ नहीं था लेकिन हम उसके फ़ायदों को अच्छी तरह
परखना चाहते थे। अमरदीप और मैं तो शादी को लेकर काफ़ी हृद तक तैयार थे। और इस चर्चा ने
हैप्पी और एमपी को इस मसले में गंभीरता से सोचने पर मजबूर किया, हालॉकि इस चर्चा से वे राज़
नहीं हुए थे । (जिससे मुझे एक टी-शर्ट पर लिखा यह नारा याद आता है: अगर तुम उसे राज़ी नहीं क
सकते तो बस थोड़ा-सा भ्रम में डाल दो)।
फिर और बातों को लेकर भी चर्चा हई। प्रेम विवाह या अरेंज मैरेज? माँ-बाप की पसंद से या
अपनी पसंद से?' हैप्पी बोला।
"अब यह तो निजी पसंद का मामला है । अब चूँकि हम अपने पैरों पर खड़े हैं मुझे नहीं लगता कि
हमारे माता-पिता हमारे फैसले पर किसी तरह का एतराज़ करेंगे, अमरदीप ने कहा।
हैप्पी इसे सुनकर च्प रहा।
लेकिन अमरदीप, हमारी ज़िंदगियों को देखो। हम सभी उत्तर भारतीय हैं, दूर-दूर के राज्यों में
काम कर रहे हैं। इसलिए ऐसे में कोई जीवन संगिनी मिल जाए, इसकी संभावना बहुत कम दिखती
। उससे भी बढ़कर, जिस तरह की नौकरी में हम हैं, यह हमें इसके अवसर नहीं देती कि हम अलग-
अलग तरह के लोगों से मिल-जूल सकें। और सबसे बदतर बात यह है के हम में से कोई भी अपने
मम्मी-पापा द्वारा च्नी गई लड़की से शादी नहीं करना चाहता, अगर मैं गलत नहीं कह रहा हूँ तो,
एमपी बोला।
'मुझे पता नहीं कि तुम्हारा आखिरी वाक्य सही है या नहीं, लेकिन वाकी चीज़ें तो तुम्हारे अपने
हाथ में हैं, अमरदीप ने जवाब दिया।

To be continued.. in part 6