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काव्य लता

1.
मेरी यादें मेरा चेहरा मेरी बातें रुलायेंगी
हिज़्र के दौर में गुज़री मुलाकातें रुलायेंगी
दिनों को तो चलो तुम काट भी लोगे फसानों मे
जहाँ तन्हा मिलोगे तुम तुम्हे रातें रुलायेंगी

2.
मैं फिर से, ठीक तेरे जैसे की तलाश में हूँ...
गलती कर रही हू लेकिन होशोहवास में हूँ…

3.
बहुत मशरूफ हो शायद, जो हमको भूल बैठे हो
न ये पूछा कहाँ पे हो, न ये जाना कि कैसे हो ?

4.
हो गये है जो खिलाफ अपनी ही हवा के हम
क्यू बैठे हैं गैर दर पर यू दिया जला के हम

सुबह में जागते ही दुखने लगता है बदन मेरा
जाते हैं कही क्या रात खुद को सुला के हम

इश्क था उससे मगर अपनाने का हौसला न था
सो छोड़ आये उसे अपनी मजबूरियॉ गिना के हम

5.
ख़ामोशी टूटेगी तो हलचल सी मच जाएगी
आंसुओं की दास्ताँ पर फिर न हंसी आएगी
पलकें बंदकर कोई कब तलक पिएगा आंसू,
एक दिन तो ये बारिस भी थम ही जाएगी
रूह शरीर के दामन में सिमटी रहेगी कबतक,
मौत की दस्तक पर वह भी उड़ ही जाएगी
टूटे हुए सितारे से कोई मुराद मांगता है क्यूँ,
उजड़े हुए गुलशन से कैसे खुशबू आएगी

6.
भूली नहीं हूँ तुमको पर जानो मेरी मजबूरी
मैं बस तुमको चाहती हूँ कहना नहीं ज़रूरी
मैं तेरी दो बाहों में अब चाहे ना सिमट पाऊँ
रूहों के बीच में तो कभी होगी ना कोई दूरी

7.
हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे,
कभी चाहा था किसी ने तुम ये खुद कहोगे
ना होंगे हम तो, ये आलम ना होगा
मिलेंगे बहुत से लेकिन, कोई हम सा पागल ना होगा

8.
क्या कहूँ की अब तुझे मोहब्बत नहीं रही,
तेरे प्यार में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही…
या तो तेरी वाफाओं का मौसम गुज़र गया,
या ये कहूँ की तुझे अब मेरी ज़रूरत नहीं रही

9.
देख कर उसको अक्सर हमे एहसास होता है,
कभी कभी गम देने वाला भी बहुत ख़ास होता है,
ये और बात है वो हर पल नही होता हमारे पास,
मगर उसका दिया गम अक्सर हमारे पास होता है

10.
बिखरी-बिखरी सी ये जिंदगी अब सिमटना
चाहती हैं तेरी पनाहों में,
धूप ही धूप रहीं ये जिंदगी अब लेटना चाहती हैं तेरी घनी छांवो में

11.
मेरी खामोशी में सन्नाटा भी है शोर भी है
तुने देखा ही नहीं मेरी आँखों में कुछ और भी है

12.
शरमाईं मेरी नज़रें और बयां हो गए,
लफ्ज़ भी क्या बोलते बेजुबां हो गए,

तुमसे मिलने से पहले थे हम आग,
आज कल बस धुँआ धुँआ हो गए,

फ़ासलें कुछ ऐसे बढ़ा दिये वक्त ने,
हम धरती तो तुम आसमां हो गए,

हमारी उम्र नहीं थी इश्क़ करने की,
बस देखा एक नज़र तुझे और जवां हो गए

13.
कर लेती हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ
की खुदा नूर भी बरसाता है आज़माइशों के बाद

14.
झूठ पर मैं तेरे, ऐतबार करती हूँ
एक बार नहीं, दो बार नहीं... हर बार करती हूँ
और अपने ही आईने में तुझे देखती हूँ मैं
झूठा सा है यकीं मगर सौ बार करती हूँ

15.
तुम को तो जान से प्यारा बना लिया;
दिल का सुकून आँख का तारा बना लिया;
अब तुम साथ दो या ना दो तुम्हारी मर्ज़ी;
हम ने तो तुम्हें ज़िन्दगी का सहारा बना लिया

16.
तुमको छुपा रखा है इन पलको में
पर इन को यह बताना नही आया,
सोते में भीग जाती है पलके मेरी,
पलकों को अभी तक दर्द छुपाना नही आया

17.
एक सपने की तरह तुझे सज़ा के रखूं,
चाँदनी रात की नज़रों से छूपा के रखूं,
मेरी तक़दीर में तुम्हारा साथ नही,
वरना सारी उमर तुझे अपना बना के रखूं

18.
पास आ जरा दिल की बात बताऊँ तुझको,
कैसे धड़कता है दिल आवाज़ सुनाऊं तुझको

आकर तू देख ले दिल पे लिखा है नाम तेरा,
अगर कहे तो दिल चीर के दिखाऊ तुझको।

जितना जलाया है तुमने प्यार में मुझको,
दिल तो करता है कि मैं भी जलाऊं तुझको

अजनबी होता तो ऐसा कर भी लेता शायद ,
मगर तू तो अपना है कैसे सताऊं तुझको

19.
मोहब्बत हाथ में पहनी हुई चूड़ी के जैसी है,
संवारती है, खनकती है, खनक कर टूट जाती है

20.
वो कह के चले इतनी मुलाक़ात बहुत है
मैंने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत है

आँसू मेरे थम जाएं तो फिर शौक से जाना
ऐसे मैं कहाँ जाओगे बरसात बहुत है

वो कहने लगे जाना मेरा बहुत ज़रूरी है
नहीं चाहता दिल तोडू तेरा पर मजबूरी है

गर हुई हो कोई खता तो माफ़ कर देना
मैंने कहा हो जाओ चुप इतनी कही बात बहुत है

समझ गए हों सब और कुछ कहो ज़रूरी नहीं
बस आज की रात रुक जाओ,जाना इतना भी ज़रूरी नहीं है

फिर कभी न आऊँगी तुम्हारी ज़िन्दगी में लौट के
सारी ज़िन्दगी तन्हाई के लिए, आज की रात बहुत है

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