1. शुभ प्रभात-
कितना अपनापन लिए लगती थी प्रातः काल की वह बेला, जब सूर्योदय से पूर्व ही नित्य अमित गाँव से शुभ प्रभात सन्देश सुबह - सुबह शहर में अमन को मिल जाता। उसे लगता कि वह चाहे तन से शहर में है लेकिन मन से अब भी अपने उन साथियों के साथ ही गाँव में है, जिनके संग खेलकर उसका यादगार बचपन बीता था। वो लमकटिया की धार, गरुड़िया गधेरा और लुटाणी के बंजर खेत सहज ही मानस पटल पर छा जाते। जहाँ वे दोनों निश्छल दोस्त जानवर चराते हुए मस्ती किया करते। हर छ: महीने में ग्वाल देवी पूजा करते और प्रसाद रूप में बनी टिन के डिब्बे में पकायी खीर तिमुल के पत्तों में परोसकर एक साथ चाटकर खाते। लीसे के खाली गमले में घूँट - घूँट पानी पिया करते। सब सहज ही दिलो - दिमाग पर उभर आता और उन सुहानी यादों के सहारे सारा दिन शुभ - शुभ बीत जाता।
मगर कुछ समय पूर्व से अमित शुभ प्रभात सन्देश के साथ रूपयों की माँग करने लगा। कभी पत्नी का इलाज करने, कभी गाँव में मन्दिर की मरम्मत आदि - आदि। अमन उसके खाते में राशि डाल दिया करता, जिसे वह झटपट एटीएम से निकाल लेता। अब अमित की डिमाण्ड शुशील के मुँह की तरह खुलने लगी। वह अब अधिक रूपयों की माँग करते हुए दोपहर - शाम हो या रात, शुभ प्रभात सन्देशों को भेजने लगा। उसके व्यवहार में हुए परिवर्तन पर सन्देह होकर अमित ने गाँव के रतन चाचा से अमित की जानकारी चाही तो उन्होंने बताया-, "अरे वो तो अब भयंकर शराबी हो गया है। लोगों को ठगकर रूपये ऐंठता है। फिर दिन - भर भुत्त हो सारे गाँव को गाली बकता है। तुम उसके झाँसे में मत आना। वो तुम्हें भी ठग लेगा।" कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया। सुरेश को काटो तो खून नहीं। वह रतन चाचा की बातें सुनकर सन्न रह गया। उधर उसके मोबाइल पर अमित का बार - बार शुभ प्रभात मैसेज धपधपा रहा है।
संस्कार सन्देश : - हमें शराबी - कबाड़ी लोगों से सदैव दूर रहने का प्रयास करना चाहिए।
2. राजा की समझदारी
एक दिन एक किसान अपने खेत के लिए पानी की तलाश कर रहा था, तभी उसने अपने पड़ोसी से एक कुआँ खरीदा। हालांकि पड़ोसी बहुत चालाक था। अगले दिन जैसे ही किसान अपने कुएँ से पानी खींचने आया, तो पड़ोसी ने उसे पानी लेने से मना कर दिया। जब किसान ने पूछा कि - " क्यों?" तो पड़ोसी ने जवाब दिया- “मैंने तुम्हें कुआँ बेचा है, इसका पानी नहीं।” और कहकर चला गया। दु:खी होकर किसान न्याय मांगने के लिए राजा के पास गया और उन्हें पूरी बात बताई।
राजा ने उस किसान के पडोसी को भी बुलवा लिया। राजा ने पड़ोसी से सवाल किया - " जब तुमने किसान को अपना कुआँ बेच दिया है तो फिर तुम किसान को कुएँ से पानी क्यों नहीं लेने देते? पड़ोसी ने जवाब दिया- "महाराज! मैंने किसान को कुआँ बेचा लेकिन उसके भीतर का पानी नहीं। उसे कुएँ से पानी खींचने का कोई अधिकार नहीं है।" राजा उस धूर्त पड़ोसी की चालाकी समझ गए। राजा उसे आदेश भी दे सकते थे, पर यह राजा का इंसाफ नहीं माना जाता।
राजा ने उस पडोसी से कहा- "देखो! जब से तुमने कुँआ बेचा है, तुम्हें किसान के कुएँ में पानी रखने का कोई अधिकार नहीं है।’ या तो तुम किसान को किराया देते रहो, या अपने पानी को तुरंत निकाल लो।" यह जानकर कि उसकी योजना विफल हो गई, पड़ोसी ने माफी माँगी। उस दिन से किसान ख़ुशी - ख़ुशी अपने खेतों को पानी देने लगा।
संस्कार संदेश :- कभी किसी के साथ धोखेबाजी नहीं करनी चाहिए।