नयी सुबह DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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नयी सुबह

1.
किसी ने मुझसे पूछा,
सच सबसे गहरा क्यों ?
आखिर उस पर इतना पहरा क्यों ?
मेने बस इतना कहा,
क्युकी सच सबसे सुन्दर है

2.
सर्द घने कोहरे में
लिपटी हुई भोर
कोयल की कूक
दरख्तों मैं दुबके
परिंदों का शोर,
धरा पर बिखरी हुई
ओस की चमकती बूँदे
मासूम फूलो की
कोमल पंखुड़ियाँ चूमें

3.
दर्दों में तों तुम्हारे और हमारे कोई अन्तर ही नहीं था
हमें तुमसे मिलें थें तुमको किसी और से।

4.
ख़्वाब अधूरे धड़कन अधूरी सांस भी ना होती पूरी है।
तेरे बग़ैर ज़िंदगी की सहर-ओ-शाम भी अधूरी है।।

5.
न कुछ आलिम समझते हैं न कुछ जाहिल समझते हैं
मोहब्बत की हक़ीक़त को बस अहल-ए-दिल समझते हैं

6.
सभी में हूँ मैं किसी में नहीं हूँ
गमों में हूँ मैं खुशी में नहीं हूँ,
मुझे तू ना को शिश कर खोजने की
मैं तिमिर में हूँ ज्योति में नहीं हूँ
7.
इतनी मुश्किल भी ना थी ये जिंदगी
जितना मुश्किल हमने इसको बनाया!!
बंदिशे तोड़ आया था खुल्द से आदम
जमीं को उसूल से फिर हमीं ने सजाया!!

8.
बंद कर दिए थे दरवाज़े सारे,
छोड़ी ना मिलने की सूरत कहीं,
जब रहना चाहिए था संपर्क में मेरे,
तब थी मिलने की फुर्सत नहीं,

9.
मेरा पूरा वक्त तेरे साथ गुजरा,
अच्छा साथ गुजरा, बुरा याद में गुजरा।

10.
तहरीर मेरी कुछ हमने कही कुछ अपनी मेरी उसने भी सुनाई।
कट गया पहर दोपहर
शाम बीता जब
वो रात आयी।
यादों के आगोश में
ठहरी हुई रात
पास बैठी वो और तन्हाई।

11.
दिल की कुछ बात कही होती!
एक ख़त तुझको लिखा होता!
नहीं मालूम के क्या होता!
नहीं मालूम के क्या होता!

12.
मुद्दा हो न हो फ़िर भी बात होनी चाहिए।
सफ़र ज़रूरी नहीं पर साथ होना चाहिए।
रात तो आख़िर करवटों में गुजर जानी है,
तुम्हारे साथ ख़ुशनुमा शाम होनी चाहिए।

13.
मत दिखाओ हौसले तूफ़ाँ गुज़र जाने के बाद
मर गया है आदमी दुनिया में डर जाने के बाद

14.
भारत कण कण में जाग उठा,
दुनिया ने हमें प्रणाम किया।
वसुधैव कुटुंबकम रीति रही,
सुंदर विचार को मान दिया;
है ऋषि मुनियों का देश मेरा,
जग को जीरो का ज्ञान दिया।

15.
मेरे मन की पीड़ा को
कौन समझ सकता है
क्या क्या खोया
और खोने पर अब कैसा लगता है
कौन समझ सकता है ।
बहुत सरल है कहना
जो है अच्छा है
लेकिन जो है उसी में जीना कैसा लगता है,
कौन समझ सकता है।

16.
चुप रहने से क्या होगा ?
कुछ तो बोलना होगा”
आँखों पर पट्टी बाँधे रहने से
तो हर युग में
दुर्योधन ही पैदा होगा

17.
डर-डर कर भी
बिटिया
इतना तो जान चुकी हूँ
अपने दम पर कि
तुझे बीज की तरह
उगना पड़ेगा
अपने बूते ही
अपने हिस्से की धूप,
हवा और नमी पर हक़ जमाते…

18.
ज़िद है बेख़ौफ़ डूब जाने की
वज़ह नहीं अब लौट आने की,
क्यूँ तलाश भला उस मंज़िल की
जंहा नहीं कोई राह जाने की...

19.
बेसबब रोने का शोर
ना जाने किस बात का शोर,
वो चुप हैं जो सब गँवा बैठे
पर क्यूँ लुटेरों में लूटने का शोर

20.
तेरे नाम की तख्ती थी मगर खुद का नाम लिख आया हूँ,
मैं आज तेरी मौत से हाथ मिला आया हूं।

21.
बे-तहाशा उसे सोचा जाए
ज़ख़्म को और कुरेदा जाए
हम ने माना कि कभी पी ही नहीं
फिर भी ख़्वाहिश कि सँभाला जाए
आज तन्हा नहीं जागा जाता
रात को साथ जगाया जाए
बे-तहाशा उसे सोचा जाए

22.
जो दार्शनिक है, सिर्फ वह लिख सकता।
मुझे लिखना सिखाने के लिए आप कौन होते हैं,
मैं बिलकुल जानना नहीं चाहता।

23.
हसरतों का महल एक दिन बिख़र कर टूट जाएगा।
मैं तुझसे तू मुझसे एक दिन आगे निकल ही जाएगा।।

24.
हर चेहरे पर कुछ ना कुछ नया रोज़ लिखा मैं पाती हूँ।।
चलती हूं राहों में जब भी चेहरों की रंगत में घिर जाती हूँ।।

25.
पहन लूँ वो नक़ाब छुप जाऊं अब कंही,
ना ढूंढ पाये नज़रे छुप जाऊं अब कंही,
पाना तू चाहे अगर मुझे
क्यों अंधेरों का डर तुझे,
मैं रौशनी भी रात भी
दिलों की अनकही बात भी...

26.
हाँ मैं आज़ाद हूँ,
दरिन्दों से नहीं, परिंदों से ।
हथियारो से नहीं, विचारो से ।
हाँ मैं आज़ाद हूँ,
धर्म से नहीं , कर्म से ।
व्यापारों से नहीं, ख्यालो से ।
हाँ मैं आज़ाद हूँ...!

27.
जब अहसास मचलते हैं
फिर मुहिब कहां रुकते हैं
बेशक भीतर दर्द होता है
दर्द को तोहफा समझते हैं

28.
वक्त की साजिश कुछ ऐसी हुई
भूलने चला था मै तुम्हे वक्त ने
फिर से मिला दिया

29.
थोड़ी सी घुटन, थोड़ी सी ज़िन्दगी रख ली
मतलबी लोगों से दुश्मनी हमने रख ली,
किनारे मिले या, ना मिले अब फ़िक्र किसे
हमने तो समन्दर से दोस्ती रख ली...

30.
सुनो, वापस जा रहे हो?
तो फिर लौटना मत।
क्योंकि टूँट के बिखरने की आदत जा चुकी है मेरी।

31.
अलाव की गर्मी में छिपा गहरा राज़ है
ठंड का अलाव से खास सा लगाव है
पिघल जाए सुलग के ठंडे रिश्तों की बर्फ सी
आ पास बैठ अलाव के इसमें इतनी ताव है ।

32.
शायरों का किस्सा कुछ अजब होता है
खाक होने पर ये और जवां हो जाते हैं