कश्मकश ज़िन्दगी की DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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कश्मकश ज़िन्दगी की

1.
ये फिजा़, ये मौसम, ये नजारे रहे ना रहे
मगर मैं चाहुँ बस इतना तेरा मेरा साथ रहे
ना बिछड़े कभी हम एक दुजे से
हमारा प्यार युँ ही कायम रहे
साथ मे ना सही तो यादो में रहे
तु मुझे याद करे मैं तुझे याद करूँ
ये यादों का सिलसिला बस युँ ही चलता रहे

2.
तुझे टुट कर चाहना भूल थी मेरी
तेरा इंतजार करना भूल थी मेरी
मैं ये मान कर बैठी थी कि कभी तो तु भी चाहेगा मुझको
लेकिन तुझे चाहना ही तो मेरी सबसे बड़ी भुल थी

3.
बदनाम होने से अच्छा हम गुमनाम ही सही
कोई नाम अगर ले हमारा बदनामी मे
तो इससे अच्छा वो नाम हमारा जाने ही नही
नाम कमाने मे जमाने बीत जाते है साहिब
और गवाने मे एक पल ही
गुमनामी मे जीना मंजुर है हमे
लेकिन बदनामी मे जीना नहीं
क्युँ अक्सर अपने नाम के साथ खेल जाते है लोग
उन्हें नहीं पता क्या खो जाते है लोग

4.
यदि आप अपने मन को पूरी तरह से वश मे कर लेेते है तो इससे बड़ा आपका कोई मित्र नही हो सकता, वही यदि आपका मन आपके वश मे नही है तो इससे बड़ा आपका कोई शत्रु नही हो सकता

5.
अब थक चुकी हुँ मैं
अब क्या और कितना सोचुँ मैं
जो थी पहले कभी, अब ना रही
खुद को कहाँ खोजुँ मैं
ना तो मेरी खुशी रूकती है
और ना ही मेरा गम जाता है
क्या करूँ जब कोई पूछता है, मेरे हाल को मुझसे
तो चाह कर भी इन आँसुओ को रोक नहीं पाती मैं

6.
मेरी हालत पर हँसे जमाना ये हमे मंजुर नहीं
मैं तुझे अपना कहती रहुँ और तु किसी और को, ये मुझे मंजुर नहीं
माना वास्ता नहीं तेरा मुझसे कोई, लेकिन किसी और से भी मुझे मंजुर नहीं

7.
अब तो आईना भी मुझसे कुछ खफा सा लगता है
मुझे मेरी ही उम्र से बड़ा सा दिखाता है
मैं लाख कोशिशे कर लु खुद को सँवारने कि
लेकिन ये है कि मुझे मेरी हकिकत बँया करता है

8.
आज कुछ निराशा सी छाई है
जो आस थी लगाई, वो टुटती नजर आई है
कोशिशे आज सब बेकार हो गई
जो उम्मीदें थी फतेह पाने की वो टूट गई
जज्बा पूरा था, कुछ कर जाने का
देश का झंडा लहराने का
आशा आज टूटी जररूर है,पर छोडी़ नही
रोहित तुम इस हार पर रोना नही
वो दिन भी जरूर आयेगा
जब देश का झंडा फतेह मे लहराएगा
उम्मीदे ना छोड़ो तुम, फिर से खडे़ होने का रखो दम
जो आज नहीं हुआ, वो कल जरूर होगा
विश्वकप हमारे नाम एक दिन होगा
देश का परचम लहराएगा
हमारा नाम भी विजयघोष मे लिया जायेगा

9.
गुलाबी ठंड के एहसास जैसी है तु
जाडे़ मे जो गरमाहट पहुँचाए, वो धुप जैसी है तु
आँखो को जो राहत पहुँचाए, वो सुकुन जैसी है तु
बिन पिये ही जो मदहोश कर जाए, वो मदिरा जैसी है तु
और क्या लिखुँ तेरी तारिफ मे, इस कायनात कि हर खुबसुरत चीज जैसी है तु

10.
मेरा मुक्ददर जुड़ जाए तेरे मुक्ददर से, ऐसा मुक्ददर नहीं है मेरा
तेरी तू जाने पर मुझे पता बस इतना, कि तु नहीं है मेरा
अब क्या इल्जाम दुँ मैं तुझे, जब तुझ पर कोई हक ही नहीं है मेरा
गैरो से हम बात करते नहीं, और अब यहाँ कोई नहीं है मेरा

11.
जो नहीं था मेरे बस मे, उसे छोड़ दिया मैंने
जो नहीं था मेरा, उसे अपना कहना छोड़ दिया मैंने
कयुँ किसी से मिन्नते करूँ, अब लोगो को मनाना ही छोड़ दिया मैंने
जिसे जरूरत हो वो आये, अब सबके पास जाना छोड़ दिया मैंने
सबने बहुत रूलाया है मुझे, इसलिए अब दूसरो को हंसाना छोड़ दिया मैंने
जख्मों को कुरेदने वाले देखे है हमने, इसलिए अब अपना हाल सुनाना छोड़ दिया मैंने
तु क्या मुझे छोड़ कर जाएगा, जा तुझ ही को छोड़ दिया मैंने

12.
मैं देखती हूँ अक्सर अपना अक्स उसके अक्स मे
वो बसता है, मेरी रूह मे, मेरी नस - नस मे
माना बेखबर है वो मेरे जज्बातों से
मगर फिर भी शामिल है वो मेरे एहसासो मे
ना ये ना सोचना शिकायत है मुझे तुझसे कोई
क्योंकि अब तो वो भी नहीं है मेरे बस मे