हम साथ - साथ हैं DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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हम साथ - साथ हैं

1.
शौक तो नहीं था हमें भी इश्क करने का
मगर नजर तुमसे मिली तो शौकीन हम भी हो गए
मानते थे इश्क में अक्सर लोग बर्बाद हो जाते हैं
पर जब से तुमसे हुआ हम आबाद हो गए
सुना है बे रंग सी हो जाती है जिंदगी इश्क के बिना
लेकिन जब से तुमसे हुआ हम और भी रंगीन हो गए
लोगों को पागल होते देखा है हमने
दिन को रात और रात को दिन कहते सुना है हमने
पर जब से तुमसे मिले हम और भी हसीन हो गए

2.
चुभती ज़िन्दगी मे एक मीठा एहसास है इश्क
जागती आंखों का एक अधूरा ख्वाब है इश्क
जो बयां ना हो सके जुबां से, वह आंखों से छलकता इकरार है इश्क
जो मुझमे बस कर तुझमे धड़के वह सांझी सांस है इश्क
मिलने को मन मचले और मिल ना पाए,
वह सुलगती आग है इश्क
एक दूजे को जी भर कर देखने की अनबूजी प्यास है इश्क
दर्द हो मुझे महसूस हो तुझे, वह मीठा करार है इश्क
आँखे जब भी मेरी भरे, आँसू तेरी आँख से बहे
वो अनकहा एहसास है इश्क
जो राधा को ना मिल सका और मीरा ना पा सकी
वह अधूरी ख्वाहिश है इश्क
दूर रहकर भी जो पास होने का एहसास कराये वो है इश्क

3.
मैं कहीं गुम हो भी जाऊं गर तो
मुझे तलाश लेना

मेरा वजूद आज भी, है तो
बस थोड़ा मुझे निखार लेना

लाखो की भीड़ मे मैं भी शामिल हुँ
बस मुझे पहचान लेना

रह गई हुँ कहीं मैं पीछे खड़ी
बस मुझ पर अपनी निगाह रखना

हुँ मगर मैं यहीं कहीं तेरे पास
बस मुझे एक बार आवाज दे लेना

4.
नादान सी मोहब्बत है मेरी निभा लेना
कभी तुम नाराज हुए तो हम झुक जाएंगे
कभी हम नाराज हुए तो तुम गले से लगा लेना
गलतियां भी होती बहुत है मुझसे
नासमझ,समझ के समझा देना
जो कभी रूठ जाऊं तुमसे तो आकर मना लेना
कोशिश पूरी करूंगी निभाने की मैं
मगर कभी डगमगाऊं तो संभाल लेना
हाथ छोडूगी ना यह वादा करती हूं
मगर कभी छूटने लगे तो थाम लेना
जिंदगी बिताना तो चाहती हूं, तुझ संग
पर अगर दूर जाने लगूं तो रोक लेना
नादान सी मोहब्बत है मेरी निभा लेना

5.
सुनो यूं "चुप" से ना रहा करो
यूं जो खामोश सी हो जाती हो
तो धड़कनें रुक जाती है
दिल घबराता है सांसे थम सी जाती हैं
की कहीं "खफा" तो नहीं हो
तुम मुझे बोलती हुई अच्छी लगती हो
तुम मुझसे लड़ लिया करो
मन की सब कह लिया करो
लेकिन सुनो "खामोश "मत रहा करो
तुम "हंसती "हुई मुझे अच्छी लगती हो
सुनो यूँ " चुप "से ना रहा करो

6.
जब तूने देखा था मुझे पहली बार
और मुझे जताया था अपना प्यार
मैंने भी किया था तब लाख इनकार
मगर तू भी ना माना था और किया इजहार
उस वक्त यह ख्याल आया था मुझे
क्यों मैं ही पसंद आई थी तुझे
हसीन तो और भी है बहुत इस जमाने में
क्यूँ मुझसे ही पहल की तूने इश्क फरमाने में
देखो यूं देखते ही प्यार नहीं होता
किसी से पहली मुलाकात में ऐतबार नहीं होता
वक्त लगता है अपना बनाने में
किसी भी रिश्ते को निभाने में
तू तो फिर भी अनजान है
क्या पता सच्चा है या बेईमान है
वक्त दे मुझे यह दिल का मामला है
तुझ में और मुझ में बहुत फासला है
यह दिल्लगी कोई खेल नहीं
हां माना तेरा मेरा कोई मिल नहीं
फिर भी रुक जरा सब्र कर
जब मुझको भी होगा तुझे से प्यार
मैं खुद आकर तुझे करूंगी उसका इजहार