सैर धरती के जन्नत कश्मीर की Prafulla Kumar Tripathi द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सैर धरती के जन्नत कश्मीर की



मित्रों, नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़कर हम सभी इससमय पहुँच गये हैं कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के खूबसूरत शेख उल आलम इंटरनेशनल एयरपोर्ट। एरपोर्ट के बाहर बर्फ से ढंके पहाड़ों की श्रृंखला साफ-साफ दिखाई दे र है। श्रीनगर का तापमान इस समय 4 डिग्री है... कहाँ लखनऊ की 42-43 डिग्री की तपन और कहाँ वादी-ए-कश्मीर का यह सुहाना मौसम...। यूँ ही थोड़े ना इसे पृथ्वी का स्वर्ग कहा गया है।
गुड मार्निंग कश्मीर...
धुली हुई नई-नई सी सुबह.. बरसों से इसे देखने की प्रतीक्षा पूरी हुई.. चमकते पहाड़, चहकता मन..। मित्रों, हम लोगों की एक पसंदीदा टूरिस्ट एजेंसी है नाम है ट्रैवेल्स सीजन्स। उनके साथ ही हमलोग कश्मीर घूमने आए हुए हैं।
धारा 370 हटने के बाद का यह बदला हुआ कश्मीर है । लेकिन चप्पे-चप्पे पर अब भी सेना की निगहबानी। लोकल लोगों को इस बात की खुशी है कि टूरिस्ट आने से उनकी रोजी रोटी बढेगी लेकिन टूरिस्टों के मन में धुकधुकी लगी हुई है। हमने लगभग एक हफ्ते कश्मीर में बिताए और बावजूद डर के यह यात्रा एक यादगार यात्रा बन कर मन में अंकित हो गई।
मैंने हमेशा की तरह वहाँ घूमते हुए प्रतिदिन की कश्मीर यात्रा डायरी अनेक किश्तों में लिखी और उसे सचित्र सोशल मीडिया पर डालता रहा। लोगों ने मेरे यात्रा संस्मरणों को बेहद पसंद किया था इसलिए उन्हें आपसे भी शेयर कर रहा हूँ।
हम लोग अब आज श्रीनगर से पहलगाम जा रहे हैं.. एक जगह करीम रेजिडेंसी होटल में नाश्ता पानी... सड़क पर जगह जगह सुरक्षा बल की निगहबानी है...लेकिन यह धुली हुई सुबह मानो बीत गई आतंक की रात के लोमहर्षक पलों को भूलने का आह्वान कर रही है... आइए आपका स्वागत है.. पहलगाम में यानि मिनी स्विट्ज़रलैंड में।
इस समय यहाँ के कुछ विशेष दर्शनीय स्थलों का हम दीदार कर रहे हैं।
1.शेषनाग झील -
पहलगाम की शेषनाग झील बेहद ही खूबसूरत है जो अपने नीले-हरे रंग के लिए पर्यटकों के बीच मशहूर है। ये झील हिमालय की पर्वत शृंखला से निकलती हुई बहती है और ये पवित्र नदी उतनी ही स्वच्छ और निर्मल है। यहाँ के बहते पानी में हम लोग पानी के भीतर तैरते कंकड़-पत्थरों को भी साफ़ तौर पर देख पा रहे हैं। यह झील पहलगाम से लगभग 32 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जो अपने तेज वेग से बहने के कारण चाँद के समान भी प्रतीत होती है।
2. ममलेश्वर मंदिर -
पहलगाम का ममलेश्वर मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का संबंध 12वीं शताब्दी के राजा जयसीमा से है। ममलेश्वर मंदिर ममल गाँव में स्थित है जो पहलगाम से लगभग 1 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। लिद्दर नदी के दूसरी ओर बना भगवान् शिव को समर्पित ममलेश्वर मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ यहाँ की मान्यताओं के लिए भी जाना जाता है। इस मंदिर से लिद्दर नदी का सुंदर दृश्य और आस-पास का मनोरम चित्र हम सभी को मोहित करने के लिए काफी है।
3. अरु वैली-
अरु वैली...वाह। बेहद ही खूबसूरत फूलों की यह घाटी है जो पहलगाम से 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इसकी सुन्दरता के कारण ही यह स्थान पर्यटकों के बीच बहुत मशहूर है। लिद्दर नदी, झील, बर्फीले पहाड़ .. इन सबसे घिरा ये स्थान बेहद खूबसूरत है। सभी अपने-अपने मोबाइल में इन खूबसूरत लम्हों को वीडियो में उतारने में व्यस्त हो गए हैं।
यह स्थान पर्यटकों इन खूबसूरत प्राकृतिक मैदानों में कई गेम्स और एक्टिविटीज का मौका प्रदान करता है। आप यहाँ कैम्पेनिंग, ट्रेकिंग और कई अन्य चीजें भी कर सकते हैं। इसलिए आप जब भी कश्मीर आए इस स्थान पर आना बिलकुल न मिस करें।
4. तुलियन झील-
बहती झीलों को तो हम सबने कई बार देखा होगा लेकिन तुलियन झील की खूबसूरती इसी में है कि यह ज्यादातर समय बर्फ से ही ढँकी रहती है। सफ़ेद बर्फ की चादर में झील और भी सुंदर दिखाई देती है। हिमालय की चोटियों से घिरा होने के साथ यह झील समुद्र ताल से लगभग 3353 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। पहलगाम से यह झील लगभग 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस झील के पास-पास घास के हरे मैदान, घाटियाँ और यहाँ की वनस्पतियाँ आपको लुभाने का पूरा काम करती हैं।
गाइड बता रहे हैं कि इनके अलावा आप पहलगाम के अन्य पर्यटक स्थल पर भी घूम सकते हैं जो उतने ही सुंदर और आकर्षक हैं कि आपको बार-बार इस स्थान पर आने को आकृष्ट करते हैं, जिनमें से अवन्तीपुर मंदिर, बैसरन ग्लेशियर, बीटा घाटी, सिंथन टॉप, मार्सर झील आदि उल्लेखनीय हैं। इसके लिए कम से कम दो दिन यहां का स्टे होना चाहिए।
पहलगाम घूमने का सबसे सही समय -
यूँ तो आप इस छोटे से हिल्स स्टेशन की सैर करने कभी भी निकल सकते हैं लेकिन यदि आप मद्धिम सूर्य की किरणों में बर्फीली पहाड़ियों को चमकते देखना चाहते हैं तो जून से सितम्बर तक का समय यहाँ आने के लिए बिलकुल उचित है। यदि आप यहाँ की बर्फ देखने और उसमें इंजॉय करने के शौकीन हैं तो आप नवम्बर से जनवरी फ़रवरी तक के समय भी यहाँ के वातावरण का आनंद लेने आ सकते हैं।
पहलगाम के मशहूर बाजार और प्रमुख खरीदारी की चीज़ें -
पहलगाम कश्मीर आने वाले सभी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है, चाहे अपने वातावरण, प्रकृति से और चाहे अपनी सुंदर-सुंदर लुभावनी चीजों से। पर्यटक भारी मात्र में अपने परिवार, और अकेले यहाँ घूमने आते हैं, हनीमून मनाने आते हैं। इसी तरह से यहाँ के बाजार भी उतने ही आकर्षित करते हैं जिनती यहाँ की प्रकृति। यहाँ के रंग-बिरंगे बाजार आपको अलग ही दुनिया का अनुभव कराते हैं।
आप यहाँ रेशम और कई तरह के सुंदर-सुंदर शॉल, कश्मीरी कपड़े, आर्टिफिशल जूलरी, सूखे मेवे और कई सुंदर और आकर्षक वास्तुकला की खूबसूरत चीजें भी खरीद सकते हैं। यहाँ की कुछ प्रमुख दुकानें इस प्रकार हैं जहाँ जाकर आप इन सब चीजों को देखने और खरीदने का आनंद उठा सकते हैं।
पहलगाम का फेमस खाना -
जिस प्रकार जम्मू और कश्मीर की खूबसूरती उसके हर एक स्थान में बसी हुई है ठीक उसी प्रकार यहाँ के खाने का स्वाद और महक भी इसके इसके हर कोने में बसा हुआ है। पहलगाम में भी आपको कश्मीरी स्वाद चखने को मिल सकता है।
जिनमें दम आलव, रोगन जोश, यखनी और कश्मीरी पुलाव जो खुशबूदार बासमती चावलों के साथ चीनी और कई मेवों को डालकर बनाया जाता है। यदि आप लोग खाने के सचमुच शौकीन हैं तो इस स्थान का खाना बिलकुल मिस मत कीजियेगा क्योंकि यहाँ के व्यंजनों का स्वाद आपके मुँह से सीधा दिल तक पहुँचेगा।
पहलगाम को गुड बाय करते हुए देर रात हम लोग वापस श्रीनगर आ गए।
मित्रों, वापसी यात्रा में लोकल गाइड (जो स्वयं भी मुसलमान हैं ) ने जब यह बताया कि अमरनाथ गुफा की खोज पहलगाम के मुस्लिम चरवाहे बूटा मलिक ने की थी तो सहसा विश्वास नहीं हुआ।
उन्होंने यह भी बताया कि यहाँ एक ऐसा मंदिर है जो एएसआई द्वारा संरक्षित है उसका नाम दाता मंदिर है, एनएच 1 पर उरी से 14 किमी पहले शिव मंदिर और वर्तमान में बीएसएफ द्वारा संचालित है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना पांडु पुत्र भीम ने की थी। वहाँ एक मिट्टी का घड़ा दिखाई देता है जो वह 5 फीट गहरा है। कहा जाता है कि भीम प्रतिदिन इस घड़े को अपने कंधे पर उठाकर झेलम नदी में भरने जाते थे। आज बी.एस.एफ.इस पॉट को पोर्टेबल पानी से भरना सुनिश्चित करती है। इसकी खूबसूरती यह है कि यह मंदिर पत्थर से बना है और भीम ने इस मंदिर को बनाने के लिए पहाड़ से इन सभी बड़ी चट्टानों को अपने कंधे पर ढोया था। शुद्ध सनातनी कश्मीर का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है ?
और अब अगली सुबह .. गुड मार्निंग कश्मीर...।
आज होटल से ब्रेक फास्ट लेकर हमलोग एक ख़ास जगह गये जहाँ क्रिकेट के बल्ले बनते हैं। उसकी एक विशेष लकड़ी भी उसी इलाके में सिर्फ मिलती है। हमने बल्ले बनने की फैक्ट्री भी देखी, दुकानदारों से बातचीत भी की और प्रतीकात्मक बैट भी खरीदे। वहाँ पता चला है कि अब उस ख़ास लकड़ी का अभाव होने लगा है।

लौटते हुए आदि शंकराचार्य मंदिर। मुझे इतिहास की बहुत जानकारी नहीं है लेकिन इतना अवश्य पढ़ा हूँ कि आदि शंकराचार्य को कश्मीर में ही शक्ति के स्वरूप का अनुभव और ज्ञान हुआ था। जगद्गुरु शंकराचार्य पर संकलित पुस्तक में दावा किया गया है वह शारदा पीठ (गुलाम कश्मीर में) भी गए। वहाँ भी उनका पंडितों से शास्त्रार्थ हुआ था। इस तथ्य की कल्पना मात्र से हर भारतीय का सिर गौरवान्वित हो उठता है।
शैव दर्शन, शक्ति और भक्ति परंपरा के उल्लेख के बिना कश्मीर हमेशा अधूरा रहता है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के जीवन एवं दर्शन पर भी कश्मीर के भ्रमण का अहम प्रभाव दिखा। शंकराचार्य मंदिर और शारदा पीठ आदि शंकराचार्य के महान ज्ञान व दर्शन के जीवंत गवाह हैं।
बताया जाता है कि कश्मीर में ही जगदगुरु ने शक्ति के स्वरूप और उसकी महानता को प्रत्यक्ष प्रमाण के साथ अनुभव किया। शोधकर्ताओं की मानें तो दक्षिण भारत से वह संपूर्ण भारतवर्ष में सत्य सनातन व शैव दर्शन की विजय पताका लहराकर कश्मीर पहुँचे थे। उनके 32 वर्षों के छोटे और अद्भुत जीवन में कश्मीर कई तरह से प्रासंगिक हो गया।
पीएन मैगजीन नामक लेखक ने शंकराचार्य मंदिर पर लिखी पुस्तक में बताया कि आदि शंकराचार्य कश्मीर में वैदांतिक ज्ञान प्रसार करते हुए पहुँचे थे। उस समय कश्मीर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत था। लोग शिव और शक्ति में अटूट आस्था रखते थे। शंकराचार्य और अन्य महात्माओं व शिष्यों ने श्रीनगर शहर के बाहर डेरा डाला। ठहरने और खाने का साधन नहीं था। स्थानीय लोगों ने एक कन्या को उनके पास भेजा। शंकराचार्य को इसी कन्या में शक्ति के दर्शन हुए।
उनके कश्मीर में ठहरने को लेकर मतभेद हैं। कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि शंकराचार्य और उनके शिष्य श्रीनगर के विचारनाग में ठहरे थे। विचारनाग के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के प्रांगण में विद्वान, संत-मुनि उपस्थित रहते थे। कश्मीर से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर इसी जगह चर्चा होती थी। यह मंदिर वर्तमान में शेर-ए-कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान सौरा के पास है। विचारनाग में ही जगद्गुरु का कश्मीरी पंडितों के साथ शास्त्रार्थ हुआ था।
एक और रोचक तथ्य .....शंकराचार्य अडिग थे कि मूर्ति सिर्फ ईश्वर का प्रतीक है। कश्मीरी विद्वानों का मत था कि देवता की मूर्ति देवता की अभिव्यक्ति है। अपना पक्ष सत्य ठहराने के लिए उन्होंने वहाँ रखी देवी शक्ति की मूर्ति के मस्तिष्क पर जोर से हाथ मारा तो उससे रक्त बहने लगा। आदि शंकराचार्य ने एक कपड़े से शक्ति के मस्तक पर पट्टी बांधी। कहा जाता है कि इसके बाद आदि शंकराचार्य ने अपने माथे पर पट्टी बाँधनी शुरू कर दी थी। .......इसे कश्मीर में तरंग कहा जाता है। तब से पंडित समुदाय की महिलाओं के पारंपरिक परिधान का यह अहम हिस्सा बन गया। वह माथे पर इसे बाँधती हैं।
जगद्गुरु शंकराचार्य पर संकलित पुस्तक में दावा किया गया है वह शारदा पीठ (गुलाम कश्मीर में) भी गए। वहाँ भी उनका पंडितों से शास्त्रार्थ हुआ। शारदा पीठ के सभी द्वार उनके शास्त्रार्थ से प्रभावित होकर खुल गए। प्रवेश के समय जैन, बौद्ध, सांख्य, योग से जुड़े विद्वान पंडितों से शास्त्रार्थ हुआ और वह विजयी घोषित हुए। बताते हैं देवी शारदा ने स्वयं उन्हें आशीर्वाद दिया। कश्मीरी पंडितों के अनुसार वहाँ से लौटते वह चंदन की लकड़ी पर बनी माँ शारदा की मूर्ति लेकर लौटे। उनके साथ कश्मीरी ब्राह्मणों का दल भी था। उन्होंने माँ शारदा की प्रतिष्ठा की और श्रृंगेरी मठ में प्रतिष्ठापित कर कश्मीरी ब्राह्मण सुरेशानंद को शंकराचार्य नियुक्त किया। श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है।
हमें अब यह भी उत्सुकता जगी कि आख़िर कहाँ ठहरे थे शंकराचार्य? कश्मीर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अग्निशेखर ने कहा है कि हम पूर्वजों से सुनते आए हैं कि शंकराचार्य मंदिर के नीचे दुर्गानाग मंदिर के पास आदि शंकराचार्य ठहरे थे। वह शक्ति स्वरूप को नहीं स्वीकारते थे। पंडितों ने उनकी कोई आवभगत नहीं की। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक जगद्गुरु भूख प्यास के कारण शक्तिहीन हो गए। वहाँ से महिला पानी का घड़ा लेकर निकली। उसे देखते शंकराचार्य ने पानी पिलाने को कहा। उस महिला ने जिसमें देवी शक्ति आ गई थी, ने कहा कि पुत्र मेरे पास आकर पी लो। शंकराचार्य ने कहा कि मैं नहीं आ सकता, मैं उठ नहीं सकता, मैं शक्तिहीन हूँ। इस पर महिला ने कहा कि तुम तो शक्ति को मानते ही नहीं हो, फिर शक्ति क्यों चाहिए ? शंकराचार्य ने शक्ति को स्वीकार किया और उन्हें साक्षात आदि शक्ति के दर्शन हुए।
शंकराचार्य पर्वत पर उन्होंने फिर देवी शक्ति की स्तुति में सौंदर्य लहरी की रचना की। बताते हैं कि शंकराचार्य का कश्मीरी महिला के साथ ही शास्त्रार्थ हुआ जो 17 दिन चला। शंकराचार्य ने कश्मीरी विदुषी के समक्ष पराजय स्वीकारने के साथ शक्तिवाद की महानता को स्वीकारा और सौंदर्य लहरी की रचना की। उन्होंने इसकी रचना डल झील किनारे स्थित गोपाद्री पर्वत पर की थी। अब इस मंदिर को ही शंकराचार्य मंदिर कहा जाता है।
उत्सुकता ज्ञान की जननी है।
शंकराचार्य और कश्मीर के प्रसंग में मुझे यह भी जानकारी मिली कि डल झील किनारे गोपाद्री पर्वत के शिखर पर भगवान शंकर का एक मंदिर है। मंदिर को राजा संधिमान ने 2605 ईसा पूर्व में बनाया था। मंदिर को जेष्ठस्वर और गोपाद्री पर्वत को संधिमान पर्वत पुकारा जाने लगा। आदि शंकराचार्य ने जेष्ठस्वर मंदिर के प्रांगण में डेरा डाल शिव की साधना की। उनके ज्ञान व साधना से प्रभावित होकर कश्मीरी विद्वानों, संत-महात्माओं ने सम्मान स्वरूप संधिमान पर्वत और मंदिर का नामकरण शंकराचार्य पर्वत और शंकराचार्य मंदिर कर दिया। यह तो सभी जानते हैं कि शंकराचार्य का जन्म केरल में कालड़ी नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। 6 वर्ष की अवस्था में ही वह प्रकांड विद्वान हो गए तथा आठ वर्ष की उम्र में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। 32 वर्ष की अल्प आयु में, केदारनाथ के समीप उनका स्वर्गवास हुआ।
हम मंदिर से लौट रहे हैं और सोचते जा रहे हैं कि आतंकवाद और मजहबी उन्माद ने इस स्वर्ग जैसे कश्मीर को क्या से क्या कर दिया है? आज़ादी के लगभग सत्तर वर्ष बाद अब जाकर कोई भी भारतीय इस जन्नत को सुकून से घूमने आ सकता है। लेकिन इस लम्बे अंतराल ने इस वादी को गहरे जख़्म दे डाले हैं। लमहों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।
इतनी यात्रा के बाद भी कश्मीर पर अभी भी बहुत कुछ अनकहा, अनजाना, अनदेखा रह गया है। कुछ दिनों पहले ही फ़िल्म “कश्मीर फ़ाइल” देखी थी। घाटी में वहशीपन के उस लंबे और खतरनाक दौर से सहम गया था। लेकिन वह डर अब धीरे- धीरे गायब हो रहा है.... सुनते हैं केरल के बाद कश्मीर में शिक्षित लोगों की संख्या ज़्यादा है। आश्चर्य है कि ऐसे में पढ़े लिखे लोग ही अपने पैरों में क्यों कुल्हाड़ी चलाते रहे हैं?
बहर हाल अपनी कश्मीर यात्रा जारी है। ब्रेक फ़ास्ट के बाद आज का दिन कश्मीर की ख़ूबसूरत घाटी सोनमर्ग के नाम। ..
वाह! कितना खूबसूरत नजारा है यहाँ का ? चारों ओर पहाड़ और उसकी पिघलती बर्फ़ से घिरा मनोरम दृश्य जो अक्सर पेंटिंग में देखते रहे हैं। ज़ीरो प्वाइंट तक नहीं जा सके क्योंकि लैंडस्लाइड हो गया है....
अभी-अभी श्रीनगर के अपने होटल लौटे हैं .. मोबाइल हाथ में है और मैंने सोचा क्यों न कुछ चित्र शेयर किये जायें.....
मित्रों, कश्मीर यात्रा का आज पाँचवां दिन है। आज हमने अपनी घुमाई बारामूला के गुलमर्ग की मनोरम घाटी में ख़ूब जम कर की है। घाटी गुलमर्ग उर्फ़ गुल्लो ने आनन्दित कर दिया है। यहाँ ठंडक इतनी कि स्वेटर पहनना ही पड़ा। श्रीनगर से 50 km दूर... पीर पंजाल पर्वत श्रंखला पर स्थित गुलमर्ग कश्मीर का सबसे खूबसूरत हिल स्टेशन है। गुलमर्ग के मायने होते हैं फूलों का मैदान...लोग बताया रहे हैं कि मुगल बादशाह जहाँगीर ने यहाँ 21 किस्म के फूलों का बाग़ बनवाया था इसी से इसका नाम गुलमर्ग पड़ा। गुलमर्ग में ही दुनिया का सबसे बड़ा गोल्फ कोर्स भी है। गुलमर्ग में ही भारतीय सेना का सबसे आखरी कैम्प है...जिससे थोड़ी दूरी LOC शुरू हो जाती है।14 हज़ार फीट की ऊँचाई पर गुलमर्ग सेकेंड फैज पर जाने के लिए आपको केबल कार यानी "गंडोला" का इस्तेमाल करना होगा।

मित्रों, बदल रहे इस कश्मीर यात्रा की यादें तो बहुत ले जा रहा हूँ, धीरे- धीरे शेयर करता रहूँगा। फ़िलहाल तो फोटो, वीडियो शेयर कर रहा हूँ.. घर बैठे 44 डिग्री तापमान में रहकर 7 से 10 डिग्री तापमान का एहसास कीजिए। यहाँ बर्फ से बिछी पहाड़ियों पर ए. टी. वी.( आल टेरेन वाहन )ऑफ रोड वाहन जैसी ख़ास सवारी का भी पर्यटक आनंद उठा रहे हैं। हमने उड़न खटोले(गंडोला) पर उड़ना पसंद किया और उस पर तो आनंद ही आ गया। गुलमर्ग गान्डोला एशिया की सबसे ऊँची केबल कार परियोजना है और दुनिया में सबसे बड़ी और दूसरी सबसे ऊँची केबिल कार मानी जाती है। इसे फ्रांसीसी फर्म के सहयोग से बनाया गया है।
अपनी कश्मीर यात्रा डर के आगे जीत है स्टाइल में जारी है ...हम लोगों ने आज सोनमर्ग का भी आनंद लिया लेकिन बर्फ़ विहीन सोनमर्ग में गर्मी ने बेड़ा गर्क कर डाला।
यात्रा का अंतिम दिन ..
श्रीनगर के निशात और शालीमार गार्डन घूम कर हम अब विश्व प्रसिद्ध डल झील में शिकारा राइडिंग के लिए पहुँच गए हैं और फिर इसके बाद शॉपिंग होगी। डल झील में कुछ यादगार घंटे हमने बिताए। चल रहे हमारे शिकारे के बगल में सबसे पहले एक छोटी सी नाव आ कर लगी। झील में दोनों नौकाएँ साथ-साथ चल रही थीं। बगल वाली नौका में मौजूद एकमात्र व्यक्ति ने दरयाफ़्त की कि क्या हम लोग कश्मीरी परिधान पहन कर फ़ोटो खिंचवाना पसंद करेंगे। श्रीमती जी के नकारात्मक जवाब के पश्चात उन महोदय ने अपनी नौका की दिशा दूसरी ओर मोड़ दी। शिकारे में बैठे हुए हमें मुश्किल से पाँच मिनट हुए थे। लेकिन जो सिलसिला फ़ोटोग्राफ़र साहब ने शुरू किया, वह फिर लगातार बरक़रार रहा। पहले आइसक्रीम वाले, फिर ज्वैलरी बेचने वाले, फिर फ्रूट चाट, फिर हैंडीक्राफ्ट, फिर water skiing के लिए हमारे नाविक साहब का प्रस्ताव। सामने एक रुकी हुई बोट पर सींक कबाब पकते हुए तो दूसरी बोट पर मैगी, चाय, काफी, सूप, कश्मीरी कहवा का बोर्ड।
यहाँ तो पूरी एक दुनिया आबाद दिखाई पड़ रही थी डल झील में। अंततः अब हमको डल झील के मीना बाज़ार में ले आया गया है जहाँ ढेरों दुकानें झील में अपना वजूद बनाए हुई हैं। उत्सुकता पूर्वक एक दुकान के भीतर हमने भी प्रवेश किया। चारों तरफ करीने से सूखे मेवों और विभिन्न जड़ी बूटियों के डिब्बे सजे हुए थे। हमें नमकीन चाय पेश की गई। चाय पीकर जब पुनः हमने अपनी यात्रा शुरू की तो अगला पड़ाव एक हाउस बोट थी। हाउस बोट के भीतर पहला कमरा किसी मध्य वर्गीय परिवार का ड्राइंग रूम नज़र आ रहा था तो अंदर सुव्यवस्थित तरीक़े से सजे कमरे जहाँ पर्यटक आकर रुकते हैं। डल झील में सैकड़ों परिवार अपना जीवन यापन बड़े आराम से करते हैं। हर एक के पास एक शिकारा है जिससे इधर उधर आ जा कर वह दैनिक जीवन के काम भी निबटाते हैं। पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी बड़ी सहजता से शिकारा चलाती नज़र आ जाएँगी। पूरी एक दुनिया जैसी पानी में इंसानों की ऐसी बस्ती देश के केरल को छोड़कर अन्य हिस्से में कम ही देखी जा सकती है।
आ अब लौट चलें...
और अब हमारी कश्मीर यात्रा सम्पन्न हो चुकी है। अब मैं सपत्नीक स्पाइस जेट के विमान संख्या SG162 से जम्मू होते हुए दिल्ली और फिर गो एयर के विमान संख्या 6E 682 से दिल्ली से लखनऊ की उड़ान भरने की तैयारी में हूँ।