आई डोंट केयर Prafulla Kumar Tripathi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आई डोंट केयर

"हाय ! आई एम नीहारिका !"
अपनापरिचय देती हुई एक खूबसूरत महिला ने आगंतुक को हग कर लिया और उसको हाल में ले गई। शहर के कैंट एरिया में स्थित उस मशहूर क्लब में ढेर सारे सेलेब्रेटीज की उपस्थिति में हर इतवार की तरह इस बार भी रेट्रो नाईट पार्टी शबाब पर थी। रेट्रो नम्बर्स पर धमाल मचा हुआ था और ऐसा लग रहा था कि 1970-80 के दशक के सारे फ़िल्मी हीरो और हीरोइनें एक साथ सामने आ गए हों। वे नाच रहे थे , गा रहे थे एक दूसरे को बांहों में भर कर चूम रहे थे। नीहारिका ने मुमताज का लुक पसंद किया था और वह आज इस पार्टी में असली मुमताज से भी ज्यादा खूबसूरत अदाएं बिखेर रही थी। अच्छा शहर हो और आपके पास संसाधन हों तो आजकल सभी चीजें आसानी से मिल जाया करती हैं। निहारिका की खूबसूरत अदाओं को लोग बाग अपने अपने कैमरे में क़ैद भी किये जा रहे थे। देर रात तक यह पार्टी चलती रही और डिनर लेकर घर आते आते नीहारिका को देर हो गई। वह थक चुकी थी। उसकी मेड भी उसके इंतज़ार में अलसाई हुई "गुड नाईट मैंम " बोलते हुए सर्वेंट क्वार्टर में चली गई। नीहारिका ने ड्रेस चेंज करके धडाम से अपना शरीर डबल बेड के हवाले कर दिया।

पूरे शहर में हाई क्लास लेडीज़ अच्छी तरह से नीहारिका को जानती हैं। आजकल फैशन में कौन कौन से स्टाइल का ट्रेंड चल रहा है यह वह बखूबी जानती थी। उन दिनों में जब महिलाओं को स्कर्ट और जींस पहनने पर लोग बाग़ नाक भौं सिकोडा करते थे निहारिका ने उसे अपना लिया था। उसकी साफ़ साफ़ राय थी कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं यह उनकी मर्जी पर छोड़ दिया जाना चाहिए। अब भला समाज के ठेकेदार उन्हें बताएँगे कि उनके लिए क्या पहनना उचित है और क्या अनुचित ?अभी कल ही तो मधुलिका ने जब उसे बताया कि ड्रेस कोड के नाम पर अब उससे कहा गया है कि तुम जल्दी से जल्दी कान्टेक्ट लेंस लगवा लो क्योंकि कम्पनी ने दफ्तर में महिलाओं के लिए चश्मा बैन कर दिया है तो वह भड़क उठी थी। उसने तुरंत रिएक्शन दिया था कि यह तो जेंडर को लेकर सीधे सीधे पक्षपात है। कल तूं ले चल मुझे अपने बॉस के पास ...,मैं करूंगी उससे बात !लेकिन मधुलिका यह बात बखूबी जानती है की अब ज़माना लिबरल मार्केट का है। यहाँ यह बताया जाता है कि सेल्स प्रमोशन के लिए क्या सुटेबुल ड्रेस कोड रहेगा। अब यह प्राइवेट सेक्टर की मजबूरी कहें या आवश्यकता। ज्यादा बहस करो तो निकाल दिए जाओगे।

हाँ तो बात हो रही थी नीहारिका की ड्रेस सेन्स और स्टाइल की। उसने यह जान लिया है कि आजकल पफ स्लीव का फैशन लौट आया है इसलिए वह अपने टेलर को ताकीद कर चुकी है कि उसको अगली पार्टी के वही चाहिए। निहारिका इमोशनल एकदम नहीं रह गई है। अब वह प्रक्टिकल होकर जीना चाहती है। उसकी इमोशन से लोगों ने अभी तक खूब खूब खेल खेला है। वह इन बीते कुछ सालों से खुद की दोबारा खोज करने में जुटी हुई है। उसकी फिजिकैलिती उसका बिहेवियर उसकी फैशन इस्टाइल ..सब कुछ नए नए प्रयोगों से होकर गुजर रही है। उसका डर अब उससे दूर हो चला है और अलबत्ता उससे लोग डरने लगे है।

उसे उसका बचपन अब भी कभी -कभी याद आने लगता है। कितना भयावह, .कितना डरावना था। उसे अब भी सोते - सोते रात में अपनी माँ की चीख सुनाई दिया करती है। उसका बड़ा भाई बोर्डिंग स्कूल में पढाई करने के लिए जा चुका था। वह अभी आठवीं में थी। पापा एयरफोर्स में थे और पार्टियों के बेहद शौकीन। उनकी हर शाम पार्टियों के नाम होती थी। मम्मी भी उनका साथ दिया करती थीं। अब जबसे नीहारिका का भाई हरीश बोर्डिंग में चला गया है पापा कुछ ज्यादा ही ड्रिंक करने लगे हैं और मम्मी ........मम्मी भी तो अब पापा के साथ ड्रिंक लगी थीं। उस रात क्लब में जाने क्या हुआ कि घर आते ही मम्मी और पापा में बहुत ज़्यादा नोंकझोंक और फिर मारपीट की आहट उनके बेडरूम से जब सुनाई दी थी तो नीहारिका जाग गई थी और जोर - जोर से मम्मी - मम्मी पुकारने लगी थी। अपनी अधखुली नाइटी सँभालते संभालते उसकी मम्मी उसको आकर गोद में उठा कर और जोर जोर से रोने लगी थीं। पापा की बडबडाहट और गन्दी गंदी गालियाँ अब भी सुनाई दे रही थी। मैं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर हुआ क्या जो दोनों आपस में लड़ बैठे थे।

अगली सुबह सब कुछ नार्मल था लेकिन राख में दबी आग की तरह मम्मी अभी भी नार्मल नहीं लग रही थीं। मैं जब स्कूल जाने लगी तो मम्मी बहुत उदास लग रही थीं। अगले दिनों में मम्मी ने क्लब जाना एकदम छोड़ दिया था। पंद्रह - बीस दिनों बाद मम्मी और पापा में एक बार फिर किसी बात को लेकर उसी तरह का झगड़ा हुआ। इस बार मम्मी अगली सुबह मुझे साथ लेकर नानी जी के घर चली गईं। बाद के दिनों में मैंने उनको अपने जीवन में असमय आते हुए पतझड़ को देखा और निकट से महसूस भी किया था। आपसी सहमति से तलाक़ लेकर पापा और मम्मी अलग हो चुके थे। मम्मी ने नौकरी ज्वाइन कर ली थी और ननिहाल में उन्हें और मुझे भी ससम्मान एक सदस्य की तरह स्थान मिल चुका था।

अपनी यूनिवर्सिटी की पढाई खत्म करते करते मैंने यह महसूस किया कि मेरा एक क्लासमेट अनवर मुझसे अन्तरंग होता जा रहा है। नोट्स की अदला बदली से निकटता की जो शुरुआत हुई वह फिर शाम को पिक्चर और डिनर तक ले गई।
मैंने अपनी मम्मी और पापा के दाम्पत्य जीवन की खुशियों और असमय आये पतझड़ को बहुत ही निकट से देखा और शिद्दत से महसूस किया था। वैवाहिक बंधन को जनम जनम का बंधन मानने वाले जाने किस अंधी गली में खोते जा रहे हैं। अगले जनम की कौन कहे एक ही जनम में वैवाहिक जीवन का निभना अब मुश्किल हो चला है। आत्म केन्द्रित होते जा रहे लोगों के लिए स्वार्थ और पैसा ही अब सब कुछ होता जा रहा है। दाम्पत्य जीवन में बच्चे पैदा होना अब कोई पवित्र संस्कार नहीं रह गया है ,अब महज़ एक एक्सीडेंटल गिफ्ट के रूप में ट्रीट किया जा रहा है। लड़की हो या लड़का अब यह मायने नहीं है क्योंकि नव विवाहिता अव्वल तो अब नौ महीने की लाइबिलिटी ढोने के मिजाज में नहीं लगती हैं आजकल और अगर होना भी है तो अधिक से अधिक एक ही सन्तान होने वाली हैं। और शादी ?......नो क्युश्चेन ऐट ऑल।

उस दिन मधुलिका ने जब मज़ाक में उससे पूछा था की वह कब गुड न्यूज देगी तो अपने माथे से चेहरे पर झुक आई जुल्फों को झटकते हुए नीहारिका ने साफ़ साफ़ बताया था कि उसने और अनवर ने बिना शादी किये लाइफ पार्टनर बनकर रहने का फैसला ले लिया है।

"और पैरेंट्स ? पैरेंट्स की इजाजत का क्या होगा ? " मधुलिका ने आगे फिर अगला सवाल पूछा था।

"आई डोंट केयर ".......दबाव देकर बोले गए इन तीन छोटे से शब्दों से नीहारिका ने मधुलिका को चुप करा दिया था।