अगर शब्दों के पंख होते DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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अगर शब्दों के पंख होते

1.

लिखते लिखते बहुत दिन हुए अब गाने की बारी है
हमको जाना है दिल्ली तक हमने कर ली तैयारी है

बाग बगीचा नदिया ‌ पनघट
इस तट से जा पहुंचे उस तट तक
नन्ही बिटिया खाना लाती
देख परछाई दौड़ी सरपट
याद आई बीती बातें तो छाई कितनी खुमारी है

कागज कलम दवात उठा लो
जो सच है वो सब लिख डालो
गिरे हुए को किंतु संभालो
दिल में दया कि लौ तो जला लो
जो ना समझे इन बातों को वो लोग बड़े लाचारी हैं

दृष्टि से देखो सृष्टि को जानो
अपने गुण को खुद पहचानो
दुनिया बड़ी की साहस बड़ा है
बात यह मन की दिल में ठानो
दिखला देती हैं सब करके नहीं अब अबला नारी है

लिखते लिखते बहुत दिन हुए अब गाने की बारी है
हमको जाना है दिल्ली तक हमने कर ली तैयारी है

2.
इन्हें हक दे दिया किसने जो गुल को खार कर डाला
चुभोकर नफरतों का ये नश्तर वतन बीमार कर डाला

तरक्की हो नहीं सकती जहां पर बगावत होती है
गिराकर यतीमों की बस्ती खंडहर घर द्वार कर डाला

मोहब्बत पनप रही थी क्यों देखा गया नहीं उनसे
दिखाकर अपना कद ताकत जुल्म संग वार कर डाला

मेरे इस देश के बच्चों नींद से जागो और देखो
तुम्हारी कलम छीन करके तुम्हें बेजार कर डाला

वतन की आबरू पर जब कभी भी आंच आइ तो
देश के खातिर कुछ वीरों ने खुद जां निसार कर डाला

कदर जब हुनर की होती है भाव के भूखे रहते हैं
दिखाई प्रेम की ताकत और कुछ चमत्कार कर डाला

यहां संतों की वाणी में अजब सी एक छाप होती है
जलाकर ज्ञान का दीपक जग में उजियार कर डाला

3.
एक शख्स मेरे इतने करीब आकर चला गया
जैसे कि मुझको मुझसे ही चुराकर चला गया

उसके बिना मैं खुद को अधूरी सी समझती हूं
डोरी संग पतंग का रिश्ता निभाकर चला गया

कुछ अपने थे खिलाफ तब भी उसने कहा यही
जैसी भी है मेरी है लोगों को बातें बताकर चला गया

गनीमत इतनी ही रही कि बिखरने दिया नहीं मुझे
जख्मों पर मुस्कुराहट के पैबंद लगाकर चला गया

अंधेरों में रहकर खामोशियां मुझे रास आने लगी
अरसे बाद अपने पन की चादर उढाकर चला गया

4.
*देखो बर्फ की उड़ती सी चादर
*शिलाएं भी ओढ़े झीनी सी चादर

*नदियां जमकर खामोश हुई हैं
*सूरज भी उढाये रोशनी की चादर

*आसमान में धुन्ध सी छाई
*धरा पर नजर आए ओस की चादर

*फसलों में फलियां लग आईं
*लताओं में लहराएं फूलों की चादर

*सर्दी ने सबको जकड़ रखा है
*यतीमों ने ओढ़ी मैली सी चादर

5.
धूप से रूप को कुछ हुआ तो नहीं
एसा लगता है कुछ भी हुआ तो नहीं

मेंरी तस्वीर से कुछ बहकते है क्यूं
रोग इनको भी दिल का हुआ तो नहीं

मेरे साथी तुझ पर एक इल्जाम है
औरों से बेखबर कभी हुआ तो नहीं

6.
किसी डाल की साख पे बैठे, हम दोनों एक पंछी है
हवा चले और हम उड़ जाए ,जहां गगन सतरंगी है

नदिया, सागर, झील ,पठारें ,सबके अपने किस्से हैं
याद आना और याद रह जाना, ये सब मेरे हिस्से हैं
मन की चादर मैली ना हो, कभी मन मेरा मकरंदी है
हवा चले और हम उड़ जाएं ,जहां गगन सतरंगी है

सबका आना जाना तय है, मुश्किल रह जाना सबको
ईमानी चेहरे घट रहे मुश्किल, है पढ़ पाना सबको
दया धर्म सब त्याग रहे, कुछ लोगों की अक्लमंदी है
हवा चले और हम उड़ जाएं ,गगन जहां सतरंगी है

भाई से भाई क्यों लड़ता है, इसका जिम्मेदार है कौन
मां के तो सब बच्चे होते हैं, पर मां क्यों रहती है मौन
अपना फर्ज निभाना है हमको, लगे जितनी पाबंदी है
हवा चले और हम उड़ जाएं, गगन जहां सतरंगी है

7.
चल रही आंधियां तो शैलाब क्या करें
जिन्हें जाना है तो जाए दिल बेताब क्या करें

उल्फत के रास्तों से गुजरना जरूरी था
जो लौट के ना आए तो हिसाब क्या करें

8.
अंधेरा डसने लगता है हर एक बीमार शख्स को
अगर हो सके तो कुछ चिराग मोहब्बत के जलाए रखिए

दर और दीवारों से ना पूछना पड़े पता तुम्हारा
अपनों से अपने नए आशियाने का पता बताए रखिए

9.
*मुझको तुम अपना बना लो मेहरबा बनके
*तेरी सांसो में समा जाऊ हमनवा बनके

*मुझको यादों में ना लाओ तो कोई बात नहीं
*तेरे ख्वाबों में चली आऊंगी कहकशा बनके

*हमने एक तरफा ही प्रीत निभाई हैं
*वो क्या जानेंगे जो रहते हैं अक्सर बहके

*उनको देखूं तो अब मुझको करार मिले
*लौट आए हैं जो मुझसे दगा करके

*अब वो क्यों रोते हैं खुद पर बीती जो
*अच्छा लगता था क्या उनको खुदा बनके

*मुझको तुम अपना बना मेहरबा बनके
*तेरी सांसो में समा जाऊ हमनवा बनके

10.
मिट्टी के आंगन में पाल पोष बड़ी हुई
दादी जी की उंगली पकड़ खेलने को जाती थी

सांझ बेरा खेतों से जब आए मेरे बाबू जी
तो फिर पीतल के पतीले में चाय बनवाती थी

सारा दिन काम करती तनिक ना आराम करती
रोज सुबह उठकर मां मेरी चकिया चलाती थी

फिर उसी आटे से हाथ से पोकर के
बिना परथन की मां रोटियां बनाती थी

मोटी रोटी देख मेरी सखियां जो हसे तो
सखियों से छुपके अपने टिफिन में खाती थी

इत्ते से भी बात ना बने तो मैं परम थी
टिफिन में लेकर के दाल भात जाती थी

11.
*दिलों की दास्तान हमको सुनाएं कोई
*ये आरजू है की महफिल में बुलाए कोई

*जी तो लेते हैं लोग अक्सर जुदा होकर
* बाद मुद्दत की मोहब्बत को भुलाए कोई

* तलाश हमको भी पल भर सुकून की है
*कहां आती हैं बाहारे ये अब बताएं कोई

*यकीं है हमको कि अंधेरे छठ ही जाएंगे
*बस उम्मीदों के दिए फिर से जलाए कोई

*जहां की भीड़ में अगर मैं कभी खो जाऊं
*ये जुस्तजू है वहीं अपना नजर आए कोई

12.
नारी तुम जब भी हंसती हो
मदमस्त बहार सी लगती हो

एक पेड़ लगा हो आंगन में
तुम हर सिंगार सी दिखती हो

जो सच है उसको कहकर ही
तब मौन को धारण करती हो

नित आशाओं के दीप जलाकर
तुम अंधकार को डसती हो

कभी नैंनौं से कभी चितवन से
कभी अल्हड़ पन से ठगती हो

तुम बिरह वेदना में जलकर
आंखों में अंगारे भी भरती हो

देना पड़े यदि बलिदान तुम्हें
तुम किन्तु ना पीछे हटती हो

तुम्हें वेद पुराण में लिखा गया
तुम पल पल धीरज रखती हो

13.
भेजे थे तुमने जो हमें वो कागज के फूल थे
खुशबू कहां थी इनमें फिर भी तोहफे कबूल थे

शबनम की इक छुअन से ये भीग जाएंगे
रहते हो वादियों में तुम सब चर्चे फिजूल थे

बातें घुमा फिरा कर बहाने बना गए
क्यों इस तरह के आखिर तुम्हारे उसूल थे