एक थी नचनिया - भाग(३५) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया - भाग(३५)

और अब इस विषय में डाक्टर मोरमुकुट सिंह से बात की गई तो वे बोले....
"क्या शुभांकर के मन में माधुरी के प्रति गलतफहमी पैदा करना ठीक रहेगा? अगर उसने इस बात को दिल से लगा लिया तो फिर तो उसका बुरा हाल हो जाएगा",
"यही तो हम सब चाहते हैं कि शुभांकर का बुरा हाल हो तब तो उस जुझार सिंह की अकल ठिकाने आऐगी,उसे भी तो पता चले कि अपनों को जब कष्ट पहुँचता है तो कैसा लगता है",रामखिलावन बोला.....
"हाँ! जिस तरह से जुझार सिंह ने कस्तूरी जीजी को दर्द दिया है उसी तरह का दर्द उसे भी मिलना चाहिए" माधुरी बोली....
"तुम भी उसी तरह की बातें कर रही हो माधुरी! जब कि तुम्हें ये अच्छी तरह से मालूम है कि शुभांकर तुमसे प्रेम करता है",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले....
"तो क्या करूँ मैं? मैं तो जैसे चक्की के दो पाटो के बीच में पिसकर रह गई हूँ ,एक तरफ शुभांकर का प्यार है तो दूसरी तरफ मेरी जीजी कस्तूरी,लेकिन यहाँ मैं अपनी जीजी को ही चुनूँगी,शुभांकर तो मेरे दुश्मन का बेटा है,उसके साथ कोई भी रियायत नहीं बरती जाएगी,क्योंकि मेरी जीजी को जुझार सिंह ने दर्द देने में कोई भी रियायत नहीं बरती थी,जुझार सिंह ने जो किया था उसका खामियाजा तो उसे ही भरना पड़ेगा", माधुरी बोली...
"हाँ! हम सब भी यही चाहते हैं",रामखिलावन बोला...
"तो फिर आप दोनों कल से ही इसी काम पर लग जाइए",मालती बोली...
"लेकिन ये खबर शुभांकर तक कैसें पहुँचेगी,उसे भी तो ये पता चलना चाहिए कि माधुरी अब उससे प्रेम नहीं करती"मोरमुकुट सिंह बोला....
"वो सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए,मैं कल ही जुझार सिंह के पास जाकर शुभांकर को यहाँ बुलवाने की बात करती हूँ",मालती बोली....
"हाँ! यही सही रहेगा,मालती भाभी ही इस काम को अन्जाम दे सकतीं हैं",मोरमुकुट सिंह बोला....
"तो फिर यही तय रहा कि कल मालती सिनेमाहॉल की साइट पर जाकर जुझार सिंह से शुभांकर को कलकत्ता से बुलवाने की बात करेगी",रामखिलावन बोला....
और फिर दूसरे दिन मालती रुपतारा रायजादा बनकर अपनी बड़ी सी कार में बैठकर सिनेमाहॉल की साइट पर पहुँची,लेकिन इस बार उनके साथ मैनेजर खूबचन्द निगम बने खुराना साहब नहीं जा पाए,क्योंकि उन्हें कोई जरूरी काम आन पड़ा था,इसलिए आज सारी बागडोर मालती को ही सम्भालनी थी और जब मालती अपनी बड़ी सी मोटर से उतरकर साइट पर पहुँची तो सारे लोग उन्हें देखते रह गए,उनके साथ में आज उनका पोता विचित्रवीर रायजादा और माधुरी भी थे,रुपतारा रायजादा को जब जुझार सिंह ने सिनेमाहॉल की साइट पर देखा तो भागकर उनके पास आया,चौकीदार से कहकर जल्दी से तीन कुर्सियों का इन्तजाम किया और बोला...
"चाय मँगवाऊँ आप सबके लिए",
"मैं ऐसी घटिया जगह पर चाय नहीं पीती,मेरी अपनी कोई हैसियत है",रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली...
"तो आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया,जो काम था तो किसी के जरिए कहलवा भेजतीं",जुझार सिंह बोला...
"मैंने सुना है तुम्हारा कोई बेटा भी है",रुपतारा रायजादा बोली...
"हाँ! है तो",जुझार सिंह बोला...
"मुझे उससे मिलना है",रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली...
"लेकिन क्यों? आपको उससे क्या जरूरी काम आन पड़ा",जुझार सिंह ने पूछा....
"जैसे तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं था और तुमने मेरे पोते को विलायत से बुलवा लिया था कि कहीं पूरे सिनेमाहॉल पर वो कब्जा ना कर ले, इसी तरह मुझे भी ऐसा लगता है,इसलिए जल्द से जल्द उसे यहाँ बुलवाकर उससे मेरी मुलाकात करवाओ",रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली...
"ओह...तो आपको मुझ पर यकीन नहीं है",जुझार सिंह बोला...
"क्यों? तूने भी तो नहीं किया था मुझ पर यकीन,मेरा पोता तो तेरे सामने खड़ा है लेकिन तेरा बेटा कहाँ है",रुपतारा रायजादा बोली....
"जी! अगर यही बात है तो थोड़ा वक्त दे दीजिए,मैं टेलीफोन करके दो चार दिनों में उसे यहाँ बुलवाएं लेता हूँ",जुझार सिंह बोला...
"हाँ! यही ठीक रहेगा,दो चार दिन में वो यहाँ हाजिर हो जाना चाहिए,मुझे कोई बहाना नहीं चाहिए समझे!" रुपतारा रायजादा बोलीं...
"जी!ठीक है! आप फिक्र ना करें,वो आ जाएगा दो चार दिनों में,",जुझार सिंह बोला...
"तो अब मैं चलती हूँ,यही कहने आई थी",रुपतारा रायजादा कुर्सी से खड़े होकर बोली...
"माँफ कीजिएगा,आप बुरा ना माने तो आपसे एक बात पूछूँ",जुझार सिंह बोला...
"हाँ! जल्दी पूछो,मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है",रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली..
"ये लड़की क्या आपकी बहू है?,पोते की शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं",जुझार सिंह ने कहा...
रुपतारा रायजादा बनी मालती तो इसी फिराक में थी कि जुझार सिंह उससे कोई ऐसा सवाल पूछे और वो उसका सटीक जवाब देकर उसकी बेइज्जती कर सके,इसलिए वो सवाल का जवाब देते हुए उससे बोली...
"नहीं! ये लड़की मेरी बहू नहीं है,पोते की शादी कर लेती और तुम्हें न्यौता ना देती,ऐसा कहीं हो सकता है भला! तुझे अपने खानदान की शान-ओ-शौकत दिखाने तो जरूर बुलाती,ताकि तुझे तेरी औकात पता चल जाती,खानदानी रईस क्या होतें हैं अभी तुझे पता नहीं है"
"तो फिर ये कौन है?",जुझार सिंह ने पूछा...
"ये एक ड्रामा कम्पनी में काम करती है,मेरे पोते की दोस्त है",रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली....
तब माधुरी बोली....
"अंकल! आपने शायद मुझे पहचाना नहीं! मैं एक बार मैं आपके घर आई थी"
"हाँ! याद आया,तुमने कहा था कि तुम यामिनी की सहेली हो",जुझार सिंह बोला....
"हाँ! अंकल! आपने ठीक पहचाना",माधुरी बोली....
उन सभी के बीच बातें चल ही रहीं थीं कि तभी उसी समय उन सभी के सामने से रागिनी सिर पर तसला रखकर वहाँ से गुजरी तो जुझार सिंह उससे बोला....
"ऐ...रामकली! मालकिन को राम राम तो बोलती जा!",
"ऐ...सेठ! रामकली किसी ऐरे-गैरे को राम राम नहीं बोलती,मालकिन होगी तो अपने घर की होगी,जी तोड़ मेहनत करती हूँ तब कहीं जाकर पगार मिलती है,किसी का मुफत का नहीं खाती,रामकली भगवान के सिवाय किसी के आगें नहीं झुकती"
और ऐसा कहकर रामकली उन सभी के सामने से गुजर गई तो जुझार सिंह रुपतारा रायजादा के आगे खीसें निकालते हुए बोला....
"बड़ी बतमीज है,देखो तो आपके पोते का लिहाज भी नहीं करती,जिसने उसे यहाँ काम पर लगवाया है,"
"कुछ भी हो,लेकिन लड़की मुझे बड़ी स्वाभिमानी लगी",रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली...
"आजकल ऐसी स्वाभिमानी लड़कियांँ ही मारी जातीं हैं,जुझार सिंह बोला.....
"तेरी अकल पर पत्थर पड़ गए हैं क्या? जो तू ऐसी गँवारो वाली बातें कर रहा है,स्वाभिमान ही तो लड़की का गहना होता है,जिसमें स्वाभिमान नहीं तो कुछ भी नहीं,सच! लेकिन तुझे देखकर तो ऐसा लगता है कि तेरे भीतर तो स्वाभिमान का स भी नहीं है,तभी तो तू बेशर्मों की तरह मेरी जी हजूरी करने लग जाता है" रुपतारा रायजादा बोली....
"ऐसी बात नहीं,आप मुझे गलत समझ रहीं हैं",जुझार सिंह बोला....
"मुझे अब कुछ नहीं समझना,अब हम सभी चलते हैं"रुपतारा रायजादा बनी मालती बोली...
"हाँ! चलिए दादी! जल्दी से कार में बैठिए",विचित्रवीर रायजादा बना मोरमुकुट सिंह बोला....
"हाँ! और दो चार दिन में तुम्हारा बेटा यहाँ हाजिर हो जाना चाहिए",
और ऐसा कहकर रुपतारा रायजादा,विचित्रवीर और माधुरी के संग मोटर में जा बैठी और मोटर जुझार सिंह के सामने से धूल उड़ाती हुई उसकी आँखों से ओझल हो गई...

क्रमशः....
सरोज वर्मा...