सपनों को पंख देती कलम DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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सपनों को पंख देती कलम

1.
अपने लिए भी कुछ समय निकालो,
दुनिया ने तो सारा वक़्त छीन ही लेना है।

2.
सरे - आम ​मुझे, यह शिकायत है ज़िन्दगी से​।
क्यूँ मिलता नहीं, मिजाज़ मेरा किसी से।।

3.
दर्द की तुरपाइयों की नज़ाकत तो देखिय,
एक धागा छेड़ते ही ज़ख्म पूरा खुल गया।

4.
ना चांद की चाहत और ना ही तारों की फरमाइश।
हर जन्म आप ही मिलो मुझे बस यही है मेरी ख्वाहिश।।

5.
पूरे "ब्रह्माण्ड" में, “जुबान" ही एक ऐसी चीज़ है।
जहाँ पर "जहर" और "अमृत" एक साथ रहतें है।।

6.
जो इंसान मन की तकलीफों को नहीं बता पाता ना,
उसे गुस्सा सबसे ज्यादा आता है।

7.
मोहब्बत को जो निभाते हैं, उनको सलाम मेरा हैं।
और जो बीच रास्ते में छोड़ जाते हैं, उनको ये पेग़ाम मेरा हैं।
वादा - ए - वफा करो, तो खुद को फना करो।
वरना खुदा के लिए किसी की, ज़िन्दगी तबाह ना करो।।

8.
शिक्षक और समाज निर्माण
शिक्षक ईश्वर की बनाई हुई वह कृति है। जो अपने छात्र को हाथ पकड़ कर अंधेरे से निकालकर उजाले में ले जाता है। जब शिक्षक किसी भी छात्र को ऊंचा उठाने का सोच लेता है। तो वह पथ में आए हुए किसी भी बवंडर की चिंता नहीं करता है। शिक्षक वह है जो अपनी बुद्धि कौशल से अपने छात्रों को अपने समाज को बहुत आगे तक ले जाकर समाज के हित में कार्य कर सकता है।

9.
सब जानते है चलाना,
वो संभलना सीखता है,
फिरती निगाहों को,
ठहराना सीखता है।
लड़ लेती है दुनिया,
कमजोर से,
एक शिक्षक ही है जो,
परिस्थितियों से लड़ना सीखता है।।

10.
जिंदगी का असली मजा तो तब आता है।
जब दुश्मन भी आपसे हाथ मिलाने को बेताब रहे।।

11.
वक़्त जाया हो रहा है, बेवजह की बात में।
बात ज़ाया हो रही है, इक पुराने वक़्त से।।
रूह जाया हो रही है, मतलबों की चाह में।
चाह जाया हो रही है, ख़ुदगरज़ सी रूह से।।

12.
वह उम्र भर कहते रहे, तुम्हारे सीने में दिल नहीं।
दिल का दौरा क्या पड़ा, यह दाग भी धुल गया।।

13.
लिक्खो!
चाय उबलने की महक तक,
कि ग़म कोई पीने की चीज़ नहीं।

14.
ख़्याल में भी ख़्याल, सिर्फ तुम्हारा रहा।
भटका भी बहुत यह मन, पर तुममें ही अटका रहा।।

15.
वहम था कि सारा बाग अपना है,
तूफान के बाद पता चला,
सूखे पत्तों पर भी,
हक हवाओं का है।

16.
सभी को “साथ" रखो, लेकिन - साथ में कभी “स्वार्थ” मत रखो, गलत सोच और गलत अंदाजा, इंसान को हर रिश्ते से, गुमराह कर देता है।

17.
किसी की पीड़ा, वो क्या समझे, जो भीड़ में चला हो।
यह तो, उनसे पूछो, जो भरी महफ़िल में भी अकेला हो।।

18.
चाय पीनी छोड़ दी, कुल्हड़ बचा के रक्खा।
हाँ वही बचपन मेरा, अल्हड़ बचा के रक्खा।।

19.
पैसा भले ही, शहर मे ज्यादा होगा,
सुकून मगर ,अभी भी गाँव मे मिलता है।

20.
इस जन्म मे ना सही,
पर किसी जन्म मे तो ऐसा होगा।
की मेरे नाम का सिंदूर 'साहिबा',
तेरे माथे पर सज़ा होगा।।

21.
ज़िन्दगी की किताब को, जितना पढ़ते जा रहे हैं।
वह उतनी ही, पेंचीदा होती जा रही है।।

22.
यदि जीवन में लोकप्रिय होना हो तो...
सब से ज्यादा 'आप' शब्द का...
उसके बाद 'हम' शब्द का...
और सबसे कम 'मैं' शब्द का...
उपयोग करना चाहिये...

23.
चलता रहूँगा पथ पर, चलने में माहिर बन जाऊँगा।
या तो मंजिल मिल जायेगी या, अच्छा मुसाफ़िर बन जाऊँगा।।

24.
हम नाराज़ समझ रहे थे,
मगर वो तो 'तंग' थे हमसे।

25.
मोहब्बत को, करीब से जाते हुए देखा है।
जुदाई को, आंखों से बहते हुए देखा है।।

दिनेश कुमार कीर