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गुलाबो - भाग 16

भाग 16


पिछले भाग में आपने पढ़ा की विजय शहर नही जाता गुलाबो की इस शर्त की वजह से की या तो उसे भी साथ ले जाए या खुद भी नही जाए। गुलाबो की दूसरी बात मान विजय भी नही जाता। अब आगे पढ़े।

समय लगता है पर विजय धीरे धीरे कर के खेती बारी के सारे काम सीख जाता है। नौसिखिए विजय को जगत रानी बताती, समझाती रहती की कब और कितना खाद डालना है, कब किस तरह बीज डालना है, कब कब और कितनी बार सिंचाई करनी है..? सब अम्मा के देख रेख में विजय अच्छे से सीख ले रहा था।

जगत रानी विजय को ये सब कुछ सिखाते हुए सोचती की भगवान जो कुछ भी करते है अच्छे के लिए ही करते है। आखिर कब तक वो ये सब खेत और बाग बगीचे का काम देख पाएंगी..? एक दिन तो आखिर इन बेटों को ही संभालना पड़ेगा। फिर बिना कुछ सीखे जाने वो भला का कैसे संभाल पाएंगे..? अच्छा है एक बेटा बाहर काम कर के रुपए कमाएगा और एक बेटा खेती और घर संभालेगा।

बंबई आने को कुछ महीने तो विश्वनाथ जी ने काम किया। फिर अपनी मेहनत और लगन की बदौलत उनकी तरक्की हो गई। उनके काम को जिम्मेदारी पूर्वक निभाने से मालिक इतना खुश थे की नए बनने वाली फैक्ट्री में उन्हे मैनेजर का पद दे दिया। साथ ही विश्वनाथ जी के ये कहने पर की जय भला अकेला यहां कैसे रहेगा…? तो उसका भी तबादला लखीमपुर की नई फैक्ट्री में कर दिया मालिक ने। अब विश्वनाथ जी के साथ जय और रज्जो भी खूब प्रसन्न थे। सब के अंदर उत्साह था की अब वो अपने घर के पास पहुंच जायेंगे। वहां से घर बस चार पांच घंटे का सफर होगा। जब जी चाहेगा वो घर जा सकेंगे।

सामान बांधने की तैयारी होने लगी। रज्जो और जय मिल कर सब कुछ समेट कर बांध लिए। और लखीमपुर के लिए गाड़ी में बैठ कर रवाना हो गए।

यहां बंबई की तरह छोटी सी खोली नही थी। विश्वनाथ जी मैनेजर थे। तो उन्हे अपने पद के अनुरूप चार कमरों का बड़ा सा घर मिला। उसी के सामने छोटी सी बगिया भी थी। बगिया कंटीले तारों से घिरी थी और लक्तड़ी का एक छोटा सा गेट लगा था। जिससे कोई जानवर अंदर नही आ सके।

रज्जो को इस नई जगह ने ज्यादा परेशानी नहीं हुई। वो जल्दी ही यहां भी रम गई। रज्जो का धीर गंभीर स्वभाव उसे हर माहौल में फिट कर देता था। सुघड़ रज्जो जल्दी ही घर का काम काज निपटा लेती। फिर वो गुलाबी की तरह पड़ोस की औरतों के पास बैठ कर अपना समय बर्बाद नही करती। बल्कि उसने खाली समय का सदुपयोग कर उस पूरी बगिया की गुड़ाई कर डाली और जय से मंगा कर मौसमी सब्जियों के बीज बो दिए।

कुछ महीने में ही तीन लोगो के खाने भर की सब्जियां निकलने लगी। विश्वनाथ जी रज्जो की कार्य कुशलता देख अपनी इस बड़ी बहू से बहुत प्रभावित होते। उन्हे पूरी आशा ही नहीं पूरा विश्वास था की आगे भविष्य में अगर विजय और गुलाबो कोई नादानी या गलती करेंगे तो उनके समझदार बड़े बेटा बहू बात को संभाल लेंगे। बिगड़ने नहीं देगे।

विश्वनाथ जी ने जय से बोल कर जगत रानी को चिट्ठी लिखवा दी। उसमे तरक्की और तबादले की बात भी लिखवा दी। साथ ही ये भी की वो जल्दी ही सब के साथ घर आएंगे।

चिट्ठी डाकिया ले कर आया तो जगत रानी ने उसे बिठा लिया। बोली, "भईया बैठ जाओ अगर कोई अच्छी खबर हो तो मुंह मीठा कर के जाओ।"

विजय ने चिट्ठी पढ़ कर अम्मा को सुनाया। जगत रानी चिट्ठी समाप्त होते ही खुशी से गुलाबो को आवाज देने लगी, "अरी.. गुलाबो…! कहां है तू..? तेरी तो आदत बदलने से रही। समय पर कभी सुनेगी ही नही। जल्दी से गुड ला सब का मुंह मीठा करवा।"

गुलाबो अंदर बच्चे को सुला रही थी। वो अभी ठीक से सोया नहीं था। कच्ची नींद में ही था की जगत रानी की तेज आवाज सुन कर जग गया और जोर जोर से रोने लगा।

गुलाबो मुन्ने को गोद में लिए लिए ही रसोई में गई और मटके से गुड़ निकाल कर कटोरी में रक्खा और लंबा घूंघट खीच कर बाहर वाले दरवाजे के पास आई। दरवाजे की कुंडी खटका कर विजय को गुड की कटोरी ले जाने का इशारा किया।

मुन्ने के रोने की आवाज से जगत रानी भी उठ कर आई और गुलाबो में मुन्ने को ले लिया।

विजय ने गुड और पानी डाकिया काका को दिया। वो खाने लगे। मुन्ने को दुलारते हुए जगत रानी डाकिए से बोली, "भईया मेरा श्याम बहुत ही भाग्य वान है। देखो इसके आते ही इसके बाबा की तरक्की हो गई। और घर के पास तबादला भी हो गया।"

जगत रानी ने मुन्ने का नाम उसके सांवले रंग के कारण श्याम रख दिया था। फिर शाम को दुलारते हुए बोली,

"क्यों रे ..! बाबा को घर पास बुला लिया अपना जादू चला के। जिससे तुझसे मिलने तेरे बड़े पापा और बाबा जल्दी जल्दी आ सकें।"

श्याम दादी से हिला मिला था इस लिए उनकी गोद में। चिपक कर थोड़ी ही देर में सो गया।

सब व्यवस्थित होने के बाद पहली छुट्टी पड़ते ही विश्वनाथ जी बेटे और बहू को साथ लिवा घर आए। अब श्याम साल भर का हो गया था। पर गुलाबो के शहर जाने के अरमान पर फिर पानी फिर गया। वो फिर से गर्भवती थी। अब तो वो क्या ही जा पाएगी..? इस बात से गुलाबो का हर बात पर चिढ़ना बढ़ता ही गया।

इधर रज्जो में मां बनने की कोई आहट जगत रानी को नही सुनाई, दिखाई दे रही थी। दूसरी तरफ गुलाबो छोटी होते हुए भी दुबारा मां बनने जा रही थी। रज्जो को अपने मां नही बनने का गम जरूर था। पर गुलाबो के मां बनने पर बहुत खुश थी। उसकी इच्छा थी थी इस बार होने वाले बच्चे को वो पाले। दबी आवाज में एक बार अम्मा से अपनी इच्छा व्यक्त की। पर जगत रानी ने उसे झिड़क दिया ये कह कर की, "बिना उस पीड़ा से गुजरे कोई भी औरत मां की ममता किसी बच्चे को नही दे सकती।"

रज्जो ये सुन कर खामोश रह गई और अपनी इस इच्छा का गला वहीं घोट दिया। सबसे ज्यादा दुख की बात तो रज्जो के लिए ये थी की सास जगत रानी श्याम को उसके बिलकुल भी पास नहीं आने देती। गुलाबो तो नाराज पहले से ही थी। जितने भी दिन रज्जो रही गुलाबो अब उसके पास ना ही बैठती उठती, ना ही पहले की तरह हंसी मजाक करती। बस काम भर का बोलती और अपने कमरे में श्याम के बहाने पड़ी रहती।

धीरे धीरे रज्जो ने भी इस स्थिति को स्वीकार कर लिया। अब जब खोट उसमें ही है तो किसी दूसरे को क्या दोष दे।

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