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प्रभु श्रीराम

प्रभु श्रीराम

सालों बाद आज अयोध्या नगरी में प्रभु श्रीराम आए हैं ।
सूनी आँखों ने आज प्रभु श्रीराम के दर्शन पाए हैं ।
बालक - वृद्ध, नर - नारी सभी जश्न मनाते हैं ।
देवगण, ऋषिगण - मुनिगण मंगलगीत गाते हैं ।
मंदिर, घर - द्वार, गलियों को तोरण से सजाते हैं ।
आँगन और गुवाड़ में सभी घी के दीपक जलाते हैं ।
प्रभु श्रीराम के स्वागत में अयोध्या नगरी को दुल्हन - सी सजाते हैं ।
आकाश भी आज वसुंधरा का सजीला रूप निहारते हैं ।
सीता - राम - लक्ष्मण, हनुमान संग अयोध्या नगरी में विराजते हैं ।
बल बुद्धि के दाता हनुमान प्रभु श्रीराम के चरणों में शीश झुकाते हैं ।
निर्मल मन हो सबका जगत् का सब जगत् प्रभु श्रीराम बन जाए ।
'दिनेश' करे बस यही मंगलकामना वसुंधरा में फिर रामराज्य हो जाए।

प्रभु श्रीराम

सालों बाद आज अयोध्या नगरी में प्रभु श्रीराम आए हैं ।
सूनी आँखों ने आज प्रभु श्रीराम के दर्शन पाए हैं ।
बालक - वृद्ध, नर - नारी सभी जश्न मनाते हैं ।
देवगण, ऋषिगण - मुनिगण मंगलगीत गाते हैं ।
मंदिर, घर - द्वार, गलियों को तोरण से सजाते हैं ।
आँगन और गुवाड़ में सभी घी के दीपक जलाते हैं ।
प्रभु श्रीराम के स्वागत में अयोध्या नगरी को दुल्हन - सी सजाते हैं ।
आकाश भी आज वसुंधरा का सजीला रूप निहारते हैं ।
सीता - राम - लक्ष्मण, हनुमान संग अयोध्या नगरी में विराजते हैं ।
बल बुद्धि के दाता हनुमान प्रभु श्रीराम के चरणों में शीश झुकाते हैं ।
निर्मल मन हो सबका जगत् का सब जगत् प्रभु श्रीराम बन जाए ।
'दिनेश' करे बस यही मंगलकामना वसुंधरा में फिर रामराज्य हो जाए।

प्रभु श्रीराम

सालों बाद आज अयोध्या नगरी में प्रभु श्रीराम आए हैं ।
सूनी आँखों ने आज प्रभु श्रीराम के दर्शन पाए हैं ।
बालक - वृद्ध, नर - नारी सभी जश्न मनाते हैं ।
देवगण, ऋषिगण - मुनिगण मंगलगीत गाते हैं ।
मंदिर, घर - द्वार, गलियों को तोरण से सजाते हैं ।
आँगन और गुवाड़ में सभी घी के दीपक जलाते हैं ।
प्रभु श्रीराम के स्वागत में अयोध्या नगरी को दुल्हन - सी सजाते हैं ।
आकाश भी आज वसुंधरा का सजीला रूप निहारते हैं ।
सीता - राम - लक्ष्मण, हनुमान संग अयोध्या नगरी में विराजते हैं ।
बल बुद्धि के दाता हनुमान प्रभु श्रीराम के चरणों में शीश झुकाते हैं ।
निर्मल मन हो सबका जगत् का सब जगत् प्रभु श्रीराम बन जाए ।
'दिनेश' करे बस यही मंगलकामना वसुंधरा में फिर रामराज्य हो जाए।

प्रभु श्रीराम

सालों बाद आज अयोध्या नगरी में प्रभु श्रीराम आए हैं ।
सूनी आँखों ने आज प्रभु श्रीराम के दर्शन पाए हैं ।
बालक - वृद्ध, नर - नारी सभी जश्न मनाते हैं ।
देवगण, ऋषिगण - मुनिगण मंगलगीत गाते हैं ।
मंदिर, घर - द्वार, गलियों को तोरण से सजाते हैं ।
आँगन और गुवाड़ में सभी घी के दीपक जलाते हैं ।
प्रभु श्रीराम के स्वागत में अयोध्या नगरी को दुल्हन - सी सजाते हैं ।
आकाश भी आज वसुंधरा का सजीला रूप निहारते हैं ।
सीता - राम - लक्ष्मण, हनुमान संग अयोध्या नगरी में विराजते हैं ।
बल बुद्धि के दाता हनुमान प्रभु श्रीराम के चरणों में शीश झुकाते हैं ।
निर्मल मन हो सबका जगत् का सब जगत् प्रभु श्रीराम बन जाए ।
'दिनेश' करे बस यही मंगलकामना वसुंधरा में फिर रामराज्य हो जाए।

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