उजाले की ओर - - - - संस्मरण
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स्नेहिल सुभोर मित्रो
वह अक्सर दुखों का अंबार सिर पर ढोए घूमता रहता है। पूछो तो किसी के साथ कुछ साझा करना नहीं चाहता। इसी प्रकार साल दर साल गुज़र रहे हैं और हम नहीं जानते कि हम स्वयं से ही अपरिचित हो रहे हैं।
विधाता ने प्रत्येक मनुष्य को अलग अलग शक्लोसूरत, अलग अलग कदकाठी, अलग अलग रूप रंग दिया है। शायद इसमें कोई उनकी सोच ही रही होगी।
या फिर शायद यह सब मनुष्य को अपने कर्मानुसार मिलता होगा। यूँ तो आजकल ज्ञान बाँटने का, गुरुओं का व्यापार इतना विस्तृत हो गया है कि एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं। लेकिन वे प्रश्नों के अंबार हमारे समक्ष छोड़ जाते हैं और हम उनमें से 'ढूंढते रह जाओगे' की स्थिति में कसमसाते रह जाते हैं। अपने जीवन के लक्ष्य को भूल जाते हैं, मार्ग भटक जाते हैं। सोचने की बात है कि यदि मार्ग ही भटक जाएंगी तब हमारे पास आखिर हमारे पास शेष रह क्या जाएगा ?
हम कितने भी दुबले पतले, नाटे या कैसे भी क्यों ना हो, बस इच्छा शक्ति से अद्भुत ओर अकल्पनीय काम कर सकते हैं। दरअसल मानव की मानसिक ताकत अलौकिक है। जिसका हम उपयोग ही नही कर पाते हैं। क्योंकि हम दुविधाओं में घिरे रहते हैं। हम अनुशासन का अनुसरण नहीं करते हैं और एक उम्र गुजर जाती है तब जाकर समझ आता है कि जो उपलब्धि कोई और हासिल कर रहा है वह तो हमारे हिस्से की थी। कमी यही रह गई कि सही समय पर इच्छा शक्ति को जगाया ही नहीं। संतुलन से दूर रहे। सर्वोत्तम के अधिकारी होने के बावजूद भी उससे वंचित रह गए। इस पछतावे से समय रहते बचा जा सकता है, बस जरूरत अपने को पहचानने की, और जीवन मे अनुशासन की है।
तो हम दुखी न हों, ऐसा सुंदर काम करें जो सबको आनंद दे, सबसे पहले हमें स्वयं को ! इसके लिए हमें सबसे पूर्व इसी छोटी किंतु महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखना है - - - आप समझ ही गए हैं कि मैं किस बारे में बात कर रही हूँ।
जी, यह हमारे जीवन का अनुशासन ही है जिसके सहारे हम जीवन के किसी भी मोड पर सफ़ल होंगे।
चलिए मित्रों, जीवन में इसका पालन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं।
आपका दिन शुभ एवं सुरक्षित हो।
आपकी मित्र
डॉ प्रणव भारती