गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 17 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 17

घण्टे पर घण्टे बीत रहे थे।लेकिन पत्नी की डिलीवरी नही हुई।बाहर मैं और माँ परेशान थे।अंदर कोई जा नही सकता था।दर्द और पीड़ा से औरते कराह रही थी।लेकिन पत्नी दर्द को सहन करके पड़ी थी।जब तक चीखो चिल्लाओ मत कोई सुनने वाला नही था।
और मैं और माँ पूरी रात ठंड में बाहर बरामदे में खड़े रहे।खड़े खड़े सुबह हो गयी लेकिन पत्नी की डिलीवरी की खबर नही मिली।सुबह होते ही मैं घर चला गया था।नहा धोकर तैयार होकर बाबू लालजी के घर गया था।
बाबू लाल झा मझले कद के पतले दुबले शरीर के थे।उनका रंग काला था।वह मेरे से काफी सीनियर थे।उन दिनों हम छोटी लाइन बुकिंग में मेरे अलावा बाबूलाल शान्ति लाल, धर्म पाल, डोगरा, जगदीश, मंगला काम करते थे।
बाबू लाल लेडी लॉयल अस्पताल की एक नर्स से परिचित था।बाबू लाल ने नर्स से बात की और तब मेरी पत्नी की तरफ ध्यान गया था।पूरी रात किसी ने ध्यान ही नही दिया था।पत्नी की पानी की थैली फट गई थी।तुरन्त ऑपरेशन की जरूरत थी।और पत्नी को ऑपरेशन थियर्टर में ले जाया गया।
चिकित्सा विज्ञान ने तरक्की कर ली थी लेकिन आज जितनी नही।ऑपरेशन से डर
और पूरा दिन हो गया।शाम ढल गयी तब पत्नी को बाहर लाया गया था।मेजर ऑपरेशन हुआ था।ऑपरेशन थियेटर से बाहर आई तब पत्नी बेहोश थी।मैं बरामदे में घूमता रहा।और जब उसे होश आया तब मैं अंदर गया था।और काफी देर बाद जब होश मे आयी तब माँ ने मुझे आकर बताया था।और मैं अंदर गया था।उसने मेरी तरफ देखा था।
वैसे उन दिनों में भी ऑपरेशन से बच्चा होने पर 8 या 10 दिन में छुट्टी मिल जाती थी।लेकिन पत्नी के साथ ऐसा नही हुआ क्योंकि 2 या 3 टांके टूट गये थे।कई दिन तक यह decide नही कर पाए कि टांके फिर से लगाये ग।फिर यह तय किया कि पट्टी और दवा से सही करेंगे।और रोज पट्टी होने लगी।पत्नी परेशान हो गयी थी।वह एक ही बात कहती
"मुझे घर ले चलो
और पूरे सवा महीने बाद अस्पताल से बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिली थी।पट्टी करने के लिए दवा व अन्य सामान खरीद कर ले गया था।
"पट्टी में खुद कर लूंगी।"पत्नी बोली थी
"तुम कैसे करोगी।मैं करूँगा
उन दिनों रावली में किराए के मकान में रहता था।तीसरी मंजिल पर कमरा था।और शौचालय नीचे।ऐसी सिथति में भी नीचे आना पड़ता था।
और धीरे धीरे पत्नी की तबियत सही हुई थी।उस मकान में बेटा होने के बाद ज्यादा दिन नही रहे।केवल एक कमरा और आगे थोड़ी जगह थी।बाद में दूसरे किराये के मकान कि तलाश शुरू कर दी थी।और एक दो जगह देखने के बाद जे सी ने भोजीपुरा में किराये का मकान दिला दिया था।पहले वाले मकान से यह ज्यादा बड़ा था।इसमें चार किरायेदार थे।मेरे अलावा तीन और
मेरी पत्नी व्यहार कुशल है।हर एक से अछे सम्बन्ध बना लेना।उस मकान के मकान मालिक थे उमा शंकर कुलश्रेष्ठ
वह निसन्तान थे।उनके साथ उनकी विधवा भाभी भी रहती थी उनके भी कोई संतान नही थी।अंग्रेजो के समय उनके पुरखे अच्छे ओहदे पर रहे थे।इसलिए काफी अचल सम्पति थी।स्कूल,धर्मशाला, दुकाने मन्दिर आदि
उमा शंकर जिन्हें हम चाचाजी कहते थे मृदु भाषी और सहयोगी परवर्ती के थे।वह गगो यानी को बहू के नाम से बुलाते थे