बंदर को मोबाइल की लत DINESH KUMAR KEER द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बंदर को मोबाइल की लत

बन्दर को मोबाइल की लत


एक बार की बात है। एक बरगद के बड़े से पेड़ पर बन्दर अपने परिवार समेत रहता था। माता - पिता, पत्नी और चार छोटे बच्चे। इधर बन्दर और बन्दरिया, छोटे बन्दर को लेकर खाने - पीने के इन्तज़ाम में निकल जाते, उधर बाकी बच्चे दादी - बाबा के पास दिन - भर उछल - कूद, हास - परिहास के माहौल में मज़े करते। बतियाते, गुदगुदाते चैन सुकून से प्यार भरे दिन गुज़र रहे थे।

एक दिन बंदर एक बड़े घर में घुस गया। मालिक कमरे में सो रहा था। रसोई में कुण्डी लगी थी। फ्रिज में ताला पड़ा था। उसे खाने को कुछ नहीं मिला तो खिसियाकर चुपचाप कमरे में घुसा और मेज से मालिक का टच स्क्रीन मोबाइल फोन लेकर नौ दो ग्यारह हो गया।

वह फोन लेकर पेड़ पर पहुँचा। उसे टटोला तो किस्मत से यूट्यूब पर बन्दर वाली कविता बजने लगी, जो शायद फोन के मालिक के बच्चे ने चलाई होगी। बन्दर को बड़ा मज़ा आया। तरह - तरह के वीडियो देखकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा।

जैसे - जैसे दिन बीतने लगे। बन्दर को चस्का बढ़ता ही चला गया और लत लग गई । धीरे - धीरे उसने खाने के इन्तज़ाम पर जाना बन्द कर दिया। मोबाइल स्विच ऑफ हो जाने पर उसे फेंककर दूसरे की तलाश में निकल पड़ता। बेचारी बंदरिया! उसके ऊपर घर की देखभाल करने और सबके खाने के इन्तज़ाम का बोझ आ गया। बच्चे फोन के पास आते तो बंदर उन्हें डाँट - मार कर भगा देता। बंदरिया कुछ मदद को कहती तो उस पर गुर्रा पड़ता। बंदर के माता - पिता भी बेटे के सुख को देखकर खुश होते और बहू को घर ठीक से न सम्भालने का ताना मारते।

बंदरिया ऐसी ज़िन्दगी से तंग आ गयी। एक दिन वह भी लाग लगाकर किसी घर से बच्चे के हाथ से मोबाइल फोन छीन लायी। उसने भी फोन में टिपर - टिपर करना शुरू कर दिया। अब वह भी सब बच्चों के साथ थोड़ी देर को काम पर जाती बाकी समय फोन पर बिताती।

बंदर को जब बिना हाथ - पैर हिलाये भरपेट खाना मिलना बन्द हो गया तो बरगद का पेड़ युद्ध का मैदान बन गया। बंदरिया कमज़ोर पड़ गयी। उसके गुस्से का उतारा बच्चों पर होता। बच्चे सहम गए। अब न बरगद की डालियों पर कलाबाज़ी होती, न ही चैन - सुकून की बातें।

बंदरिया एक दिन परेशान होकर छोटे को पेट से चिपकाकर आंसू बहाते हुए अपने मायके चली गयी। अब बंदर और उसके माता - पिता को दाल - आटे का भाव पता चला। जब बच्चे भिनक - भिनक कर रोने लगे तो बंदर को बंदरिया की याद आई।

एक दिन वह पके आम सा मुँह लटकाये अपनी ससुराल पहुँच ही गया और बंदरिया से घर चलने के लिए गिड़गिड़ाया। बंदरिया ने मोबाइल फोन को हमेशा के लिए फेंक देने का वादा लिया, तब वापस आने को राजी हुई। बंदरिया ने कान पकड़े और कभी मोबाइल फोन न देखने का वादा किया। अब फिर से दोनों गृहस्थी को साथ लेकर चलने लगे। धीरे - धीरे फोन की पकड़ से निकलने से बरगद के पेड़ पर फिर से चहक बढ़ गयी। बंदर ने मोबाइल की लत छोड़ी तो फिर से बंदर के घर में खुशियाँ महकने लगीं।


सीख : - मोबाइल के कारण हमें अपने कर्त्तव्य और कर्म को नहीं भूलना चाहिए।