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दृष्टिकोण - 4

कॉलेज से बाहर निकल श्वेता काव्या की स्कूल की ओर जाती हैं उसके साथ रावी होती हैं जो अभी भी यश की ही बाते कर रही होती हैं कुछ दूर जाने पर वो अलग होकर अपने घर चली जाती हैं और श्वेता अकेले ही पैदल पैदल आगे बढ़ती है सड़क पर काफी गाड़िया चल रही होती हैं और श्वेता सड़क के किनारे किनारे चुप चाप चले जा रही थी तभी उसकी नज़र सड़क किनारे कॉफी शॉप पर जाती है जहां एक परिवार बैठा हुआ था उसमे एक औरत थी जिसकी गोदी मे छोटा बच्चा था और उसका पति और उसका लगभग 5 साल का छोटा बेटा कॉफी शॉप में बैठे थे वो छोटा सा लड़का अपने पास से जिद कर रहा था की पापा मुझे नया खिलौना चाहिए
उसके पापा कहते है - तुमने कल ही तो लिया था घर जाते ही उससे थोड़ी देर खेले होंगे और फिर उसे फेक फेक कर तोड़ दिया।
फिर वो बच्चा कहता है - नही पापा मुझे वो चाहिए देखो ना मम्मी पापा मुझे दिला ही नही रहे हैं आपको पता है ना मेरे पास वो वाला नही है
उसकी मम्मी कहती हैं - दिला दो ना , कितना मन है उसका।
उसके पापा कहते है - रोज कुछ ना कुछ तोड़ता रहता है इसे भी घर ले जाकर तोड़ देगा।
उसकी मम्मी - बच्चा है, खेलने दो हम से नही मांगेगा तो किससे मांगेगा।
उसके पापा - ठीक है दिला दूंगा पर तोड़ना नहीं है।
बच्चा खुश हो जाता है। उस परिवार को देखते देखते श्वेता की आंखे भर आती हैं वो उन्हे ही देखे जा रही थी और उन्हें देख उसे अपने मम्मी पापा को याद आ जाती हैं और श्वेता से रहा नहीं जाता है और रोते रोते जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगती हैं तेजी से चलने से रास्ते में पत्थर से ठोकर लगने से गिर जाती हैं और वही बैठ कर रोने लगती हैं कुछ देर में बिल्कुल उसके सामने एक लड़का आकर खड़ा हो जाता है और अपना हाथ आगे बढ़ाता है श्वेता अपनी ओर बढ़ते हुए हाथ को देख अपनी नजर ऊपर करती हैं वो यश था उसे देख श्वेता अपने आंसू साफ करती हैं लेकिन फिर भी लगातार गिर रहे थे और वो उसका सहारा ना लेकर खुद ही खड़ी हो जाती हैं यश अपना हाथ पीछे कर लेता है श्वेता नजरे चुराते हुए सॉरी बोलती है और उसके पास से होकर जाने लगती हैं तभी यश कहता है - तुम ठीक हो ना ?
श्वेता उसके सामने आकर कहती है - हां ???
यश दुबारा कहता है - तुम ठीक हो ना??
श्वेता - हां में ठीक हु, तुम मुझे जानते हो।
यश - हां........... मतलब नहीं !
श्वेता - हां या ना ???
यश कुछ नहीं बोलता है तो श्वेता दुबारा पूछती हैं - सॉरी लेकिन मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है कि मैं तुम्हे जानती हूं या नहीं क्या तुम मुझे जानते हो।
यश फिर से कही खो सा जाता है कोई जवाब ना सुन श्वेता बाय बोल आगे बढ़ जाती हैं और यश पीछे ही खड़ा रह जाता है और दर्द भरी आवाज में प्यार से उसके मन से सिर्फ एक आवाज आती हैं- श्वेता .........! लेकिन वो भी उसके होठों तक नही आता है।
थोड़ा सा दूर जाने पर श्वेता को आवाज आती हैं जैसी किसी ने उसे पुकारा हो वो मुड़ कर यश से कहती हैं - तुमने मुझे आवाज लगाई ??
यश सिर हिला कर ना में जवाब दे कर अपनी कार की ओर बढ़ जाता है।
कुछ दूर चलने पर यश श्वेता के पास कार को रोकता है और श्वेता से पूछता है की मैं तुम्हे आगे छोड़ दू।
श्वेता - नही मुझे पास में ही जाना है मैं चली जाऊंगी थैंक यू
यश - ठीक है।
यश चला जाता है श्वेता काव्या को लेकर घर आ जाती है। घर आकर श्वेता देखती है कि अब उसके पास खाने का सामान बहुत कम बचा हुआ है और फिर अपना पर्स खोल कर देखती है जिसमे बहुत कम पैसे बचे होते हैं जो घर खर्चे में खीच कर कुछ दिनो तक ही चल पाएंगे। श्वेता दुखी हो जाती हैं की अब वो क्या करेगी ।
पीछे से काव्या आती हैं - क्या हुआ दीदी !
श्वेता अपने चेहरे पर मुस्कान लाकर काव्या की ओर देखती है और कहती हैं - कुछ नहीं हुआ स्वीटी , तुमने अभी तक अपनी ड्रेस चेंज नहीं की ??
काव्या - हां अभी करती हु काव्या वापिस अपने रूम की ओर बढ़ती है तभी श्वेता की नजर उसके जूतों पर जाती हैं जो फट चुके थे वो उसे रोकते हुए कहती है - रुको डियर !! तुम्हारे जूते फट चुके हैं तुमने मुझे बताया क्यो नही। काव्या कहती हैं - दीदी, मैं बताने वाली थी लेकिन मुझे लगा की अभी बताऊंगी तो फालतू के पैसे खर्च होंगे वैसे भी हम अकेले रहते हैं ना तो बहुत खर्चे होते होंगे ना, और रही बात जूतो की तो मै इन्हे चिपका दूंगी फिर से नए हो जाएंगे आप बस गोंद लेकर आ जाना।
श्वेता कुछ नहीं बोल पाती हैं लेकिन बहुत दुखी होती हैं।

कुछ देर बाद

श्वेता घर के बगीचे में चुप चाप बैठी हुई थी अवि उसके पास आता है और कहता है- क्या हुआ श्वेता, तुम इतनी परेशान क्यों हो ?
श्वेता कुछ नहीं बोलती है पर उसकी आंखे भर आती है
यश उसके पास बैठ कर कहता है - श्वेता, मम्मी पापा की याद आ रही है , कुछ हुआ है क्या ?
श्वेता - अवि, मै काव्या का बचपन छीन रही हु क्या, उसकी उम्र में बच्चे अपनी हर इच्छा पूरी करते हैं बिना कुछ सोचे जो उन्हें चाहिए ले लेते हैं शैतानी करते हैं जिद करते हैं खेलते कूदते है बेफिक्र रहते हैं आगे क्या होगा ये तो कभी नही सोचते है लेकिन ....
अवि - लेकिन क्या ?
श्वेता - काव्या वक्त से पहले बड़ी गई। अगर मम्मी पापा होते तो काव्या अपनी हर इच्छा उन्हे बता रही होती।
अवि - इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं है , तुमसे जो हो रहा है जो सब कुछ तो तुम कर रही हो ना।
श्वेता - तुम्हे पता है अवि,मम्मी पापा ने कभी हमे ये अहसास ही नही होने दिया की जिस चीज की हम जिद कर रहे हैं उस जिद को वो किस मुस्किलो से गुजर कर पूरा कर रहे हैं आज जब मैं काव्या के लिए एक जोड़ी जूते लाने में ही समर्थ नही हु तब पता चल रहा है कि मेने तो उनसे बहुत सी फालतू की फरमाइशें की थी लेकिन फिर भी उन्होंने सारी पूरी की वो मेरी खुशी में ही खुश हो जाते थे लेकिन मै काव्या की जरूरत ही पूरी नही कर पा रही हूं।
अवि - श्वेता, तुम इतना दुखी मत होओ , तुम भी काव्या की हर इच्छा पूरी करोगी उसे किसी की कमी महसूस नही होने दोगी।
श्वेता - अवि ......, पापा की बहुत याद आ रही है।
श्वेता के आंसू देख अवि की भी आंखे भर आती हैं।
अवि - श्वेता, प्लीज रोना बंद करो सब ठीक हो जायेगा और हम दोनों कोई ना कोई सॉल्यूशन ढूंढ लेंगे। खुद को अकेला मत समझो, मै हमेशा तुम्हारे साथ हु हर समय हर जगह और हर समस्या मे !! अब प्लीज रोना बंद करो।
श्वेता अवि को देखती रह जाती है
अवि - ऐसे मत देखो, ऐसे देखती रहोगी तो मै भी रोने लगूंगा तुम्हारे सामने। और लाइफ में पहली बार एक लड़की के सामने रोऊंगा इसलिए ऐसे देखना बंद करो।
श्वेता फिर भी देख जा रही होती हैं
अवि - बस भी करो यार, अब उधर देखा ।
अवि को ऐसे मचलते हुए देख श्वेता मुस्कुराने लगती है और हसने लगती हैं
अवि - तुम भी ना श्वेता ।
ओर दोनो हसने लगते है।

क्रमश: ............

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