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दृष्टिकोण - 1

रात की चांदनी रात में श्वेता अपनी नम आंखों से चांद को देख रही थी मन भरा हुआ था और खिड़की के पास रखी हुई स्टडी टेबल पर बैठी हुई थी जिस पर लैंप रखा हुआ था उसके दाएं हाथ में पेन और पेपर था जिससे कुछ लिखने की कोशिश कर रही थी लेकिन अंदर इतना कुछ भरा हु था की उसके हाथ भी साथ नहीं दे रहे थे उसे समझ नही आ रहा था की अपनी भावना केसे बयां करे इसीलिए लगातार चांद को देखे जा रही थी उसकी आंखो से आंसू निकल कर पेपर पर गिर रहे थे पेपर पर जगह जगह बूंदे गिरी हुई थी उसे तब पता ही नही चलता है कि कोई उसे उसके घर के बाहर लगे पेड़ के पीछे से लगातार देख रहा था इतनी देर में पीछे से आवाज मधुर सी आती हैं –दीदी ! क्या कर रही हो ?
श्वेता पीछे की ओर देखती है वहां 8 साल की उसकी छोटी बहन काव्या दरवाजे पर खड़ी हुई थी श्वेता लाइट चालू करती हैं और कहती हैं – अरे.... छोटी! तू वहां क्यों खड़ी हुई हो यहां आओ मेरे पास (अपने हाथो को फैलाते हुए)
काव्या श्वेता के पास जाकर कहती है – दीदी आप यहां क्यो बैठी हुई हो नीचे दादी खाना खाने के लिए बुला रही थी ।
श्वेता – मुझे भूख नहीं लग रही थी इसलिए मैने सोचा बाद में खा लूंगी। तुमने खा लिया ना ?
काव्या – नहीं।
श्वेता – क्यो ?
काव्या (अपनी गर्दन को नीचे झुकाते हुए)– दीदी, आपने भी तो नहीं खाया है इसलिए मेरा आपके बिना खाना खाने की इच्छा ही नहीं हुई।
श्वेता – तुम्हें दादी के साथ खा लेना चाहिए था छोटी ! मेरे लिए इतना इंतजार मत किया कर, ओके ??
काव्या ( एक प्यारी सी स्माइल के साथ )– सॉरी दीदी ! लेकिन मैं तो आपका वेट करूंगी और साथ में ही खायेंगे ।
श्वेता – ओके डियर! अभी चलो खाना खा लेते हैं।
काव्या (अपने पेट पर हाथ फेरते हुए) – हां, मुझे तो बहुत भूख लग रही है अब ओर इंतजार नही होता।
श्वेता – पागल लडकी। और दोनो रूम से बाहर निकल कर सीढ़ियों से होकर नीचे आते हैं और दोनों खाना खाते हैं तभी उसकी दादी आती हैं और दोनों को कहती है – तुम दोनो खाना खा लेना मुझे तो अब नींद आने लगी है मै सोने जा रही हूं ठीक है?
दोनो साथ में – ठीक है दादी, good night.
दादी – शुभ रात्री।
दादी के जाने के बाद दोनो साथ में खाना खाते है और खाना खाने के बाद दोनो जाकर सो जाती हैं
काव्या कहती हैं - दीदी आप अभी सोना मत, मुझे आपसे बहुत सारी बातें करनी है
श्वेता- बहुत रात हो गई है डियर, सो जाओ।
काव्या - नही, अभी नही सोएंगे, आपको पता है दीदी हमारी क्लास में एक बहुत शरारती बच्चा आता है हमेशा मुझे परेशान करता रहता है मेरी चोटियां भी खींचता है आप तो इतनी प्यार से बनाती हो और वो बिगाड़ देता है आप मेरे साथ चलना और उस रॉकी को बहुत डांटना और पंखे के उल्टा लटका देना। फिर वो मुझे कभी परेशान नही करेगा फिर ना दीदी, फिर मैं उसे परेशान करूंगी , बहुत मजा आयेगा ( जोर जोर से हंसने लगती हैं)
श्वेता - हां फिर तू परेशान करना और फिर तुझे रॉकी के घर वाले उल्टा लटका देंगे हना !!
उसकी बात सुन काव्या उसकी दीदी की ओर गुस्से से देखती है लेकिन उसके गुस्से से भरे हुए चहरे में भी वो बहुत प्यारी लग रही थी उसे देख श्वेता उसे जोर से गले लगा कर कहती है - गुस्सा क्यो करती हैं मैं तुझे पंखे से वापस उतार दूंगी।
काव्या ( खुश होते हुए) - सच्ची!!!!
श्वेता - पागल, सो जा अब । बातें तो ऐसी कर रही हैं जैसे सच में उल्टा लटका ही देंगे।
काव्या ( मासूमियत से) - नही लटकाते है क्या !
श्वेता - नही
काव्या - इसका मतलब आप भी मुझसे हमेसा झूठ बोलती थी की तुझे पंखे से लटका दूंगी मै तो डर जाती थी जो, अब ध्यान रखूंगी की दीदी तो झूठ बोलती है ऐसे ही डराती है बस।
श्वेता - अरे ! कितनी बातें करती हैं रॉकी से ज्यादा तो तू शैतान है, केसे भी करके बात निकला ही लेती है। अब सो जा चुप चाप।
काव्या - ठीक है दीदी , गुड नाईट
श्वेता - गुड नाईट
अगले दिन.....
श्वेता को तेज बर्तनों की आवाज सुनाई देती हैं जैसे कोई नीचे बर्तनों को गिरा रहा हो उस आवाज से दोनों को सोने में बहुत परेशानी होती हैं श्वेता उठ कर नीचे जाकर देखती है वो आवाजे रसोई घर से आ रही थी जहा उसकी चाची सब्जी बना रही थी उनकी आंखों में तेज गुस्सा था उसे देख श्वेता जल्दी से उनके पास जाकर कहती है - माफ करना चाची , पता नहीं क्यों आज टाइम का कुछ पता ही नही चला इसलिए उठने में देरी हो गई अगली बार ध्यान रखूंगी। ( और श्वेता उनकी मदद करने लगती हैं)
मीना ( गुस्से से) - ये रोटियां बना दे ।
गूथे हुए आटे को देख श्वेता कहती है - चाची, ये आटा तो कम लग रहा है थोड़ा सा और लगा देती हूं।
मीना - नही, जितना भी है काफी है
श्वेता - जी ।
श्वेता सारा काम खत्म करके कॉलेज के लिए तैयार हो जाती हैं और काव्या को भी तैयार करती हैं और दो चोटियां बनाती हैं तब काव्या कहती है - दीदी, आप बहुत अच्छी चोटियां बनाती हो, मेरी मेम बोल रही थी की मै दो चोटियां में परी जैसी लगती हूं ।
श्वेता - वो तो लगेगी ही, तुम हो ही परी जैसी।
काव्या (धीरे से) - दीदी ?
श्वेता - हां ??
काव्या - दीदी, अपने मम्मी पापा कब आयेंगे, अब तो स्कूल भी स्टार्ट हो गए , अभी तक नहीं आए ?
काव्या की सवाल का श्वेता के पास कोई जवाब नही था उसे समझ नही आता है की कैसे कहे कि अब हमारे मम्मी पापा वापस नहीं लोटेंगे। बहुत दूर जा चुके हैं। इतने में नीचे से उसकी दादी की आवाज आती हैं - बेटा आ जाओ नाश्ता कर लो।
काव्या - हां दादी, हम आ रहे है चलो दीदी चलते हैं।
श्वेता काव्या को खाने के लिए बैठा कर रसोई घर से खाना लेकर आती हैं और काव्या के रखते हुए कहती हैं तू जल्दी से खा ले जितने मे मै तेरा बैग लेकर आती हूं।
काव्या - ठीक है।
कुछ देर मे श्वेता काव्या के पास आकर एक रोटी लेकर खाती है और दोनो उठ कर जाने लगते है तभी उसकी दादी पास आकर कहती हैं - और ले ले, इतना ही खाएंगी क्या?
श्वेता - दादी, काफी है मुझे ज्यादा भूख भी नहीं है अब हम जाते है।
दादी - ठीक है जाओ, अच्छे से जाना।
उनके जाने के बाद दादी रोटियां देखती है वहां कुछ नहीं था खाना खत्म हो चुका था दादी गुस्से से आवाज लगाती हैं - बहु.........!!!!!
अपने कमरे से आते हुए - हां??
दादी - तुमने दोनो बच्चों के लिए पूरा खाना भी नहीं बनाया ?
मीना - बनाया तो था, दोनों खा कर तो गए हैं ।
दादी - इतना सा ही था की बस पेट खाली न रहे।
मीना - घर में जितना है उतना ही बनाऊंगी ना, घर की जितनी आमदनी हैं उससे ज्यादा तो खर्चे है ( उनकी आवाज में गुस्सा और रूखापन था लेकिन नजर झुकायी हुई थी )
दादी- रवी खर्चा भेजता तो है।
मीना - हां, भेजते हैं ना , उतना ही भेज पाते हैं जितना यहां का गुजारा हो सके अब घर के सदस्य बढ़ गए हैं तो मैं क्या करू, सबका ख्याल मैं ही रखूं ! वैसे भी आज कल तो एक की कमाई से बस घर ही चलते हैं।
दादी - अरे !!! वो अकेले है एक महीना ही हुआ है, उनके मम्मी पापा को गुजरे हुए तो क्या हम भी उन्हें अकेला छोड़ दे।
मीना - अब इसमें मेरा क्या कसूर है अगर भैया भाभी नही है तो, वैसे भी मैने कोनसा उन्हे घर से निकल दिया है रह तो रहे हैं दोनों और जितना हो रहा है कर तो रही हूं। फिर भी सबको प्रोब्लम है तो खुद ही सब कर ले ।
मीना की बातें सुन दादी की आंखे भर आती हैं लेकिन उनके चेहरे में पछतावे का कोई भाव नहीं था , मीना अपना पर्स लेकर घर से बाहर निकल जाती हैं और अपनी स्कूटी को बाहर निकालने लगती हैं तभी दूसरी ओर से एक लड़का अपनी साइकिल मे सीधा मीना की ओर आते हुए आवाज लगा रहा था - हटो चाची हटो , वरना मारी जाओगी फालतू मे !!
मीना का ध्यान उधर जाता ही उतने में वह पास आ गया था और स्कूटी के टक्कर लगा दी थी दोनो नीचे गिर जाते है मीना उठते हुए गुस्से में जोर से कहती हैं - अवि, तू अपनी बाइक से मुझे ही क्यों टक्कर मारता है
अवि - सॉरी चाची , ये बाइक ही सिर्फ आपके पास ही आती है।
मीना - हमेशा तुझे मैं ही मिलती हूं टक्कर मारने के लिए पूरे मोहल्ले में।
अवि - नही चाची, ऐसी कोई बात नही है
मीना - तो मेरे से कोई दुश्मनी है क्या?
अवि - अरे, चाची आप भी कैसी बातें करती हो दुश्मनी होगी तो भी सीधा आके टक्कर तो नहीं मार सकता ना ?? वो तो अचानक से ही बार बार बाइक आपकी ओर आ जाती हैं , इसमें मैं कुछ नहीं करता हूं
मीना - ब्रेक तो लगा सकता है ना?
अवि ( मजाकिया अंदाज मे) - हां यार, मै तो भूल ही जाता हूं अब याद रखूंगा पक्का ! वैसे आप अपना गुस्सा थोड़ा शांत करो और बताओ की श्वेता कहां है ??
मीना - वो गई है कॉलेज !!
अवि - ओके, चाची !
श्वेता काव्या को स्कूल छोड़ कर कॉलेज जाती हैं वो और उसकी फ्रेंड ( रावी) कॉलेज में प्रवेश करती ही हैं की उसके पीछे से कोई कंधे पर हाथ रखता है श्वेता अचानक से पीछे देखती है और शांत होकर कहती हैं - तुम हो क्या ???
अवि - तुम्हे क्या लगा ?
श्वेता - कुछ नहीं .... वैसे ये बताओ की तुम तो आने वाले ही नहीं थे ना?? , गर्लफ्रेंड से मिलने जाने वाले थे !!!
अवि - क्या यार!! वो मेरी गर्लफ्रेंड थोड़ी है हम तो सिर्फ फ्रेंड्स है, तुम्हे तो पता ही है मुझे तुम अच्छी लगती हो।
श्वेता - बस, बस ! मजाक मत करो वो तुम्हारा इंतजार कर रही होगी जल्दी जाओ, तुम दोनो मूवी देखने जाने वाले थे ना।
अवि - हां यार! मै तो भूल ही गया था बाद में मिलता हू वरना वो मुझे जिंदा खा जायेगी। वहा से निकलते हुए पीछे से आवाज करते हुए कहता है - मै सच बोल रहा हूं, मुझे तुम ही अच्छी लगती हो।
श्वेता - अब जाओ भी ।
उसके पास खड़ी हुई रावी कहती हैं - गजब है, आज फिर भूल गया।
श्वेता - हां, हमेशा ही ऐसा ही करता है।
रावी - श्वेता ??
श्वेता - हां ??
रावी - वैसे अवि हमेशा तेरे साथ ही फ्लर्ट करता है
श्वेता - हां, ऐसे ही करता रहता है हम बचपन से एक दूसरे को जानते है पास पास में ही घर है तो साथ ही बड़े हुए है। इसलिए बहुत अच्छी तरह जानते है इसलिए मजाक करता रहता है।
रावी - गजब है !!
श्वेता - क्या ??
रावी - मुझे नही लगता है की वो मजाक करता है
श्वेता - क्यो ??
रावी - पता नहीं, लेकिन वो जब तेरे साथ रहता है तब वो बिल्कुल अलग लगता है नॉर्मल सबके साथ उसका व्यवहार अलग होता है।
श्वेता उसे रोकते हुए कहती है - हो गया तुम्हारा ?? अब क्लास में नही चलना है क्या ??
रावी - हां, चलते हैं।
कुछ देर बाद जब फर्स्ट क्लास खत्म होती हैं तो सभी बच्चे बाहर निकल जाते है रावी कहती है - चल बाहर चलते हैं
श्वेता - नहीं, तू जा मैं यहीं ठीक हूं ।
रावी ठीक है कहकर बाहर चली जाती हैं अब क्लास में वो अकेली बैठी हुई थीं अपनी बुक निकल कर खोलती है उसमे एक फोटो होती हैं जिसे खोल कर देखती है इस फोटो में उसके मम्मी पापा , काव्या और श्वेता थी उसे देख श्वेता बहुत भावुक हो जाती हैं और आंखे भर आती हैं तब अचानक से बोलती है - मम्मा.........!!!!!! , पापा.......!!!!!
और लगातार उस फोटो को देखे जा रही थी और आंसू उसकी गोदी मे गिर रहे थे उस समय कमरे के बाहर खिड़की से एक लड़का खड़े हुए उसे ही देख रहा था वो यश था जो उसके आंसू को देख रहा था लेकिन पास नही जाकर बस वहीं से देख रहा था श्वेता का ध्यान भटकता है और फोटो से नजर हटा कर जल्दी से अपने आंसू साफ करती है और बुक को बंद कर देती हैं और बाहर निकलने लगती हैं और दरवाजे पर उसकी नजर यश पर जाती हैं लेकिन वो उसे नजर अंदाज करके चली जाती हैं। कॉलेज खत्म करके श्वेता काव्या को स्कूल से लेकर आती हैं जहां मीना सिलाई कर रही थी दोनो को देख मीना का चेहरा गुस्से से भर जाता है और तीखी आवाज में कहती हैं - आओ, और घर के काम में मदद करवा दो , बहुत काम रह रहे हैं कपड़े भी धोने है धुलवा दोगी या फिर से दादी से जाके शिकायत करोगी
श्वेता - मै ऐसा क्यों करूंगी, मै कपड़े धुलवा देती हूं जल्दी खत्म हो जाएंगे।
श्वेता घर का सारा काम खत्म करके शाम के खाने की तैयारी करती हैं श्वेता काव्या को बुलाने छत पर कमरे में जाती हैं काव्या स्कूल वर्क कर रही थी श्वेता को देख वह कहती है - दीदी!!!
श्वेता - हां डियर, क्या हुआ ?
चाची हमेशा आपसे ऐसे बात क्यो करती है मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है
श्वेता - ऐसी कोई बात नही है, उनकी आवाज ही तीखी हैं हर इंसान की फितरत अलग अलग होती हैं सब एक जैसे नहीं होते है उनकी बस आवाज ही गुस्से भरी है मन से साफ है
काव्या - हमारे मम्मी पापा कब आयेंगे ??
श्वेता - याद आ रही है उनकी???
काव्या - हां दीदी, अगर वो होते ना तो हम अपने घर में होते और बहुत खुश होते यहां मेरा मन नही लगता है
श्वेता - काव्या, तुझे कुछ बताना हैं।
काव्या - क्या ??
इतने में दादी की आवाज आती हैं जो खाने के लिए नीचे बुला रही थी श्वेता कहती है - काव्या तू जा ओर खाना खा जितने मे मुझे कुछ काम है खत्म करके आती हूं
काव्या - ठीक है दीदी !
काव्या, दादी, मीना और उसका बेटा ( आरव) खाना खा रहे होते है तब काव्या मीना से कहती है - चाची आप हमेशा दीदी पर गुस्सा क्यों करती रहती हो जब हमारे मम्मी पापा आयेंगे तब हम दोनो अपने घर चले जायेंगे ।
मीना - कहां से आयेंगे??
काव्या - वो अभी पैसे कमाने गए हैं आ जायेंगे तब हम भी चले जाएंगे।
मीना - ठीक है, अभी खाना खा लो
काव्या कुछ नहीं बोलती है और चुप चाप खाना खाने लगती हैं कुछ देर बाद श्वेता काव्या को सुला कर खाना खाने आती है वहा कोई नही था वो प्लेट मे खाना लेकर खाना खाने लगती हैं की उसके सामने कोई आकर खड़ा होता है वो उसकी चाची थी श्वेता कहती है - हां चाची!!
मीना - काव्या को सच क्यो नही बता देती हो की अब तुम्हारे मम्मी पापा नही आयेंगे दोनो मर चुके हैं और जहां वो जाने की बात करती हैं वो घर खाली है। कोई नहीं आने वाला।
उनकी बातें श्वेता को बहुत चुभती है वो उनसे नज़रें भी नहीं मिला पाती हैं और लगातार आंसू गिरते रहते हैं अपने आप को संभालते हुए धीरे से कहती हैं - उसे बहुत दुख होता इसलिए नही बताया, अब बता दूंगी।
सीढ़ीयो पर खड़ी काव्या ने उनकी बाते सुन रही थी और रोते हुए उनके सामने से घर से बाहर की तरफ भाग जाती है श्वेता उसे आवाज लगाती हैं - काव्या रुको!
लेकिन तब तक बाहर जा चुकी थी श्वेता भी उनके पीछे जाती है कुछ देर बाद श्वेता उसके पीछे पीछे उसके पास पहुंच जाती है काव्या अपने घर के बाहर खड़ी हुई थी छोटा सा घर था उसके बाहर छोटा सा गार्डन था जिसके पौधे मुरझा गए थे और लगातार उसे देख रही थी
श्वेता उसे गले लगाकर कहती हैं - तू बिन बोले अचानक से भाग कर क्यो आई यहां! कुछ हो जाता तो।
काव्या लगातार रो रही थी श्वेता उसके आंसू पोंछ कर कहती हैं तुम्हे ऐसे किसी की बाते नही सुननी चाहिए थी। और रोना बंद कर मै तो हु ना, मैं हमेशा तेरे साथ रहूंगी वैसे मम्मी भी तो हमेशा बोलती थी की तेरी बहन हमेशा तेरे साथ रहेंगी और मम्मी पापा भी हमेशा हमारे साथ है ( काव्या के गले में पहने हुए लॉकेट को बताते हुए) तुझे ऐसे रोते देख उन्हे कितना बुरा लगेगा वो मुझे डाटेंगे की तू अपनी बहन का ख्याल भी नहीं रखती हैं इसलिए अब रोना बंद कर और अपने घर चलते हैं।
श्वेता उसका हाथ पकड़ कर जाने लगती हैं की काव्या एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाती हैं और हाथ को खींचते हुए कहती है - ये ही तो अपना घर हैं, मम्मी पापा भी तो यही रहते थे। मैं भी यही रहूंगी।
श्वेता कुछ नहीं बोलती है और गर्दन को हिला कर हां कर देती हैं दोनो साथ में दरवाजे को खोल कर अंदर जाते है। अंदर जाते हुए मीना दोनो को पीछे से देखती है और कुछ देर इंतजार करने के बाद अंदर जाती हैं दोनो साथ में सो रहे थे मीना चुप चाप दोनो के पास जाती हैं और पास ही रखे कंबल को ओढ़ाते हुए धीरे से सॉरी बोलकर वहा से चली जाती हैं।


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