रजोगुण लक्षण सार
इंसान के शरीर में तीन मुख्य गुण होते हैं- रजोगुण, तमोगुण और सत्वगुण। ये गुण इंसान के हाव-भाव, बोल-चाल, व्यवहार और स्वभाव पर असर करते हैं। जिसका जो गुण प्रभावी है, उसका जीवन उस अनुसार चलता है। समय के साथ, परिस्थिति अनुसार ये गुण कम-ज़्यादा होते रहते हैं। इन तीन गुणों में तमोगुण हीन है, रजोगुण सबल यानी शक्तिशाली है और सत्वगुण शुद्ध एवं सबसे उत्तम गुण है।
समर्थ रामदास ने दासबोध में तीनों गुणों के सटीक लक्षण बताए हैं। इन्हें हम एक-एक करके समझेंगे और उनसे ऊपर उठेंगे। अगर आप तमोगुणी हैं तो रजोगुणी बनने का प्रयास करें और रजोगुणी हैं तो उससे ऊपर उठते हुए सत्वगुणी बनें। क्योंकि जीवन का असली उद्देश्य है, तीनों गुणों के पार गुणातीत अवस्था प्राप्त करना। एक-एक भाग के साथ हम तीनों गुणों के लक्षण समझेंगे।
जब हमारी चाहतें, हमारी कामनाएँ, महत्वाकांक्षाएँ हमसे कार्य करवाती हैं तो यह रजोगुण प्रभावी होने का लक्षण है। रजोगुण, इंसान से अंधी दौड़ करवाता है और सांसारिक बातों से परे सोचने नहीं देता। समर्थ रामदास कहते हैं, रजोगुणी इंसान जन्म-मृत्यु के फेरे में अटक जाता है। जिसे आध्यात्मिक विकास करना है, उसे रजोगुण काबू में लाना आवश्यक है। रजोगुण लक्षण बताते हुए समर्थ रामदास कहते हैं
* 'मेरा घर, मेरा संसार, मेरा परिवार' इतना ही जो सोच पाता है, कभी ईश्वर को याद नहीं करता, वह रजोगुणी है।
* जो सिर्फ माता-पिता, पत्नी, बहू-बेटी इतनों की ही चिंता करता है, वह रजोगुणी है।
* जो सिर्फ खान-पान, वस्त्र और सारी भौतिक चीज़ों के बारे में ही सोचता रहता है, वह रजोगुणी है।
* जो कभी जप-ध्यान नहीं करता, कभी दान-धर्म के बारे में नहीं सोचता, अच्छेबुरे की परवाह नहीं करता, वह रजोगुणी है।
* जिसके मन में सदा अनाचार के विचार रहते हैं, वह रजोगुणी है।
* जिसे धन से बहुत आसक्ति है, जो धन का संचय करने की कोशिश में रहता है, वह रजोगुणी है।
* मैं सुंदर, मैं बलवान, मैं चतुर, मैं सबसे श्रेष्ठ, ऐसा जो सोचता है, वह रजोगुणी है।
* जो अपनी चीज़ों पर अभिमान करता है, वह रजोगुणी है।
* सिर्फ मेरा ही भला हो, ऐसा जो सोचता है, वह रजोगुणी है।
* जो कपट, मत्सर, विषय वासना और दूसरों के प्रति हीन भावना से भरा रहता है, वह रजोगुणी है।
* जो लोभी होता है, वह रजोगुणी है।
* जो संसार की चिंता में डूबा रहता है, वह रजोगुणी है।
* जो भूतकाल की यादों में रहता है, गुज़रे हुए दिन ही अच्छे थे, सोचकर वर्तमान के लिए शोक करता रहता है, वह रजोगुणी है।
* दूसरों के धन की जो लालसा रखता है और वह न पाने पर दुःखी होता है, वह रजोगुणी है।
* जो मनोरंजन में लगा रहता है, व्यसनों में डूबा रहता है, व्यसन करके कलह मचाता है, वह रजोगुणी है।
* जो जुआ खेलता है, तरह-तरह के नाटक करता है, वह रजोगुणी है
* जो हीन लोगों की संगत पसंद करता है, जिसकी सोच अपराधियों से मेल खाती है, वह रजोगुणी है।
* जो दूसरों के दोष, दूसरों की कमियाँ उजागर करने में खुशी मानता है, वह रजोगुणी है।
* जिसके सारे प्रयास, सारे कार्य केवल आजीविका के लिए होते हैं, वह रजोगुणी है।
* जो अपने शरीर के लाड-प्यार में लगा रहता है, जिसे तरह-तरह के व्यंजनों के प्रति आसक्ति है, वह रजोगुणी है।
* जिसे श्रृंगार रस ज़्यादा प्रिय है, भक्ति-वैराग्य आदि गुणों को जो नापसंद करता है, वह रजोगुणी है।
* जो सिर्फ भौतिक चीज़ों से प्रेम करता है, ईश्वर से प्रेम नहीं करता, वह रजोगुणी है।
रजोगुण से बाहर निकलना लोगों को मुश्किल लगता है क्योंकि आसपास के ज़्यादातर लोग इसी प्रकार का जीवन जीते हुए दिखाई देते हैं। ईश्वर भक्ति, संसार के प्रति अनासक्त भाव रजोगुण से बाहर निकलने में मदद करते हैं। लेकिन जिनमें इनका अभाव है, वे कम से कम ईश्वर का नामस्मरण तो करें, ईश्वर का भजन तो गाएँ, ऐसा समर्थ रामदास बताते हैं।
ईश्वर अनादि, अनंत है। उस पर पूर्ण विश्वास ही माया के जाल से मुक्ति दिला सकता है। इसलिए संसार में रहते हुए, अपने कर्तव्यों को निभाते हुए ईश्वर भक्ति, उपासना करना गुणातीत अवस्था तक पहुँचने का मार्ग है।