ड्राई डे - फिल्म समीक्षा Seema Saxena द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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ड्राई डे - फिल्म समीक्षा

सीमा असीम सक्सेना द्वारा लिखित फिल्म ड्राई डे की समीक्षा

 

फिल्म का नाम है ड्राई डे ।

कलाकार है जितेंद्र कुमार श्रेया पिलगांवकर अन्नू कपूर ।

निर्देशक हैं सौरभ शुक्ला ।

लेखक हैं सौरभ शुक्ला ।

रिलीज हुई है ओटीटी प्लेटफार्म अमेजॉन प्राइम वीडियो पर ।

मेरे हिसाब से इसको अंक मिलते हैं मात्र तीन ।

आजकल ओ टी टी पर छोटे शहरों और कस्बों या फिर गांव की पृष्ठभूमि पर कहानियां रची जा रही हैं, उसमें ऐसे ही लोग दिखाए जाते हैं या जो किरदार होते हैं उनकी रियल समस्याएं होती हैं या फिर जो भी सामाजिक मुद्दे होते हैं, जिनके साथ दर्शक बड़ी आसानी से जुड़ जाता है, मतलब ऐसी फ़िल्में आपस में जोड़ने का काम करती हैं, इसीलिए इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर आजकल कहानियाँ  लिखी जा रही हैं और दर्शक वर्ग के लिए सभी ओटीटी प्लेटफार्म पर ऐसे ही कंटेंट को दिखाया जा रहा है, हाईलाइट किया जा रहा है और दर्शक मन लगाकर देख भी रहे हैं ।

इस तरह की फिल्मों का प्रतिनिधि चेहरा है जितेंद्र कुमार, मिडिल क्लास को समर्पित फिल्मों में लोकप्रियता हासिल करने वाले जितेंद्र कुमार इन कहानियों में बहुत अच्छे से रच बस जाते हैं । प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई नई फिल्म ड्राइ डे इस सिलसिले को आगे बढाती है, यह थोड़ी कॉमेडी फिल्म है, इसमें अल्कोहल के खिलाफ एक बहुत ज्यादा शराब पीने वाले शराबी की लड़ाई दिखाई है। सौरभ शुक्ला ने इस फिल्म ड्राई डे का निर्देशन किया है जो खुद भी एक बेहतरीन लेखक और अभिनेता हैं ।

इस फिल्म की कहानी इस प्रकार है, उत्तर भारत का एक काल्पनिक कस्बा है जगोधर, जहाँ पर गन्नू मतलब (जितेंद्र कुमार) स्थानीय राजनेता ओमवीर सिंह दाऊजी (अन्नू कपूर) का दाहिना हाथ है, गन्नू बहुत शराब पीता है, सुबह होती है तो उसकी शराब से और जब शाम डूबती है तो उसकी शराब से ही, कह सकते हैं कि सुबह से लेकर रात तक सिर्फ शराब में ही डूबा रहता है । उसकी पत्नी जो कि अभी गर्भवती है (श्रेया पिलगांवकर ) वह उसे शराब पीने के लिए इतना सुनाती है, इतना सुधारने की कोशिश करती है, बहुत कुछ करती है लेकिन वह किसी भी हाल में नहीं सुधरता है पर अपने राजनीतिक संरक्षक के द्वारा एक बार सार्वजनिक तौर पर जब वह बेइज्जत हो जाता है तो उसकी जिंदगी में एक मोड़ आता है और यह फिल्म का भी एक अहम मोड है, जिसमें वह शराब के खिलाफ ही जंग छेड़ देता है और अपने कस्बे में ही अनशन पर बैठ जाता है और शहर में शराबबंदी के लिए एक अदालत में जाकर अर्जी लगा देता है । इसके साथ ही वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कॉरपोरेटर के चुनाव में अपने लिए उम्मीदवार के तौर पर वह चुनाव भी लड़ने के लिए अपना पत्र डाल देता है हालांकि इस आंदोलन में उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती आती है, अपनी शराब पीने की हुड़क को काबू में रखने के साथ साथ राजनीति में भी काम करने की जद्दोजहद दिखाई जाती है । इस फिल्म की कहानी को स्प्रिंग स्क्रीन प्ले के जरिए दिलचस्प बनाने की कोशिश तो की गई है लेकिन घटनाक्रम इतने ज्यादा अजीब से और बहुत ज्यादा खिंचाव लिए हुए हैं जो फिल्म की गति को बहुत धीमा और नीरस कर देते हैं ।

गन्नू की शराब की लत के कारण उसको होने वाली कमशकश, आमरण अनशन करने के कारण का खुलासा करना, राजनीतिक प्रतिद्वंदी लोगों को हटाने की कोशिश करना और उसकी बीवी के बीच शराब को लेकर झगड़े करना आदि आदि, जैसे कुछ ऐसे दृश्य हैं जो कहानी को बहुत बेमतलब का लंबा खींचते हैं, भावनाओं का उतार चढ़ाव भी है और यह सब बहुत अच्छे से दिखाया भी गया है लेकिन फिर भी बहुत बेकार सा लगता है और दिल को नहीं छू पाता है हालाँकि अंत काफी अच्छा लगता है, जिसमें गन्नू को शराब को छोड़ने के लिए दी गयी याचिका को वापस कर लेने का उस पर जोर दिया  जाता है, इस दृश्य में अन्नू कपूर अपने अलग ही रंग में दिखायी देते हैं ।

फिल्म के अंत में सब सही हो जाता है और इसी सब के साथ फिल्म खत्म हो जाती है यानि कि अंत भला तो सब भला । अब रही ड्राई डे फिल्म के कलाकारों के अभिनय की बात तो इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यही है कि कलाकारों ने बहुत उम्दा अभिनय किया है, सभी कलाकारों ने अपने किरदारों को बड़ी शिद्दत के साथ निभाया है और वह फिल्म में दिखाई भी देता है, फिल्म ड्राई डे में जहाँ कहीं पर या किसी भी दृश्य में स्क्रिप्ट कभी अगर कमजोर भी नजर आती है, तो वहां पर अभिनय के द्वारा उस दृश्य को जानदार बना दिया जाता है, फिल्म के हीरो जितेंद्र कुमार जो छोटे से कस्बे की कहानियों के हीरो बनने के लिए एकदम परफेक्ट हैं, उनको देखकर ऐसा ही लगता है कि यह हीरो किसी कस्बे के रहने वाले इन्सान ही हैं । गन्नू का किरदार ऐसा दिखाया गया है जो बूथ पर कैप्चरिंग करवाता है । मारधाड़ और किडनैपिंग तक सब करता है, उसमें जितेंद्र के किरदार के साथ जस्टिफाई नहीं हो पाती है क्योंकि कुछ जगहें दिखाई नहीं गयी हैं, सिर्फ संवादों के जरिए ही खाका खींचा गया है, अन्नू कपूर ने अपने किरदार से फिर एक बार रंग जमा दिया है और बहुत बढ़िया काम करके दिखाया है, उन्होंने फिल्म में जान डाल दी है और गन्नू की पत्नी का किरदार निर्मला जो कि श्रेया पिलगांव कर है । उन्होंने अच्छा काम किया है और वे देखने में लगभग अच्छी भी लगी है और बाकी जो अन्य कलाकार हैं सुनील पलवल, श्रीकांत वर्मा, आदित्य सिन्हा, सौरभ नैय्यर और किरन खोजे आदि सभी अपने किरदारों के साथ ठीक-ठाक काम करते हैं ।

अंत में यही कहना चाहूंगी कि फिल्म ड्राई डे में अभी कलाकारों का अभिनय बहुत ही कमाल का है जिसने कमजोर कहानी को भी अच्छे से संभाल लिया है । मेरे हिसाब से फिल्म को एक बार देख ही लेना चाहिए, अच्छी लगेगी और यह फिल्म ड्राई डे amezon प्राइम टाइम पर है ।

सीमा असीम