अपूर्वा - फिल्म समीक्षा Seema Saxena द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

अपूर्वा - फिल्म समीक्षा

सीमा असीम सक्सेना द्वारा लिखी गयी अपूर्वा फिल्म कि समीक्षा .…

अपूर्वा फिल्म 15 नवंबर 2023 को ओटीटी फिल्म प्लेटफॉर्म डिजनी प्लस “हॉटस्टार” पर रिलीज हुई है ।

इसके मुख्य कलाकार हैं तारा सुतारिया, अभिषेक बनर्जी, राजपाल यादव, धैर्य करवा, सुमित, आदित्य गुप्ता आदि ।

निर्देशक हैं निखिल नागेश भट्ट और निर्माता हैं मुराद खेतानी, स्टार स्टूडियो तथा संगीत निर्देशक हैं विशाल मिश्रा, संपादक शिवकुमार पाणिकर हैं । इसमें तारा सुतारिया ने मुख्य भूमिका निभाई है इसकी कहानी यह है, ग्वालियर की रहने वाली अपूर्वा यानी कि तारा सुतारिया अपने मंगेतर सिद्धार्थ यानि कि धैर्य करवा को उसके जन्मदिन पर सरप्राइज देने का फैसला करती है और उसको सरप्राइज देने के लिए वह उसके पास जाने को बस से यात्रा करती है । सिद्धार्थ आगरा में एक बैंक में कार्यरत है । अपूर्वा ग्वालियर अपने घर से आगरा जाने के लिए बस में यात्रा कर रही होती है तो कुछ गुंडों का एक समूह बस चालक को रोक लेता है और बस चालक पर सिर्फ इसलिए हमला करता है क्योंकि उसने उन्हें बस से आगे नहीं जाने दिया क्योंकि वह ओवरटेक करना चाहते हैं लेकिन बस उन्हें ओवरटेक नहीं करने देती है इस वजह से वह उस बस ड्राइवर पर हमला करता है और उसे गोली से मार देता है फिर उसके बाद यात्रियों से लूट पाट शुरू कर देता है । इसमें अपूर्वा भी अपना सब कुछ दे देती है बस अपना मोबाइल देने से मना करती है इसी वजह से गुंडे उसका अपहरण कर लेते हैं और अपूर्वा उनसे बचने के लिए कितनी जद्दोजहद करती है और किस तरह से उन गुंडो से अपने आप को बचाती है और किस प्रकार वह उनके चंगुल से निकल पाती है ? बस कहानी का यही मुख्य सार है ।

अपूर्वा फिल्म की मुख्य किरदार तारा सुतारिया अभी तक ग्लैमरस भूमिका करती आई है लेकिन अपूर्वा में उन्होंने बहुत अच्छा अभिनय कर दिखाया है इससे लोगों को आश्चर्य भी होता है वाकई में दर्शक आश्चर्य चकित हो जाते हैं उनको इस रोल में देखकर क्योंकि उन्होंने आज तक इस तरह की कोई भी भूमिका नहीं निभाई है जो कभी कोई चुनौती पूर्ण रही हो और अपूर्वा फिल्म में एक बहुत ही चुनौती पूर्ण भूमिका है जो तारा सुतारिया ने बहुत अच्छी तरह से निभा ली है । वह बहुत निडर मजबूत और साहसी महिला के रूप में इसमें दिखाई दी हैं । वह मुसीबत में फंसी हुई है और अकेले ही सारी लड़ाइयां को लड़ती है और वह उनसे बाहर भी निकलती है । फिल्म का जो मुख्य आइडिया है वह बहुत अच्छा है कि कहा जा सकता है कि महिलाओं को बहुत खतरनाक लड़ाइयां को बहादुरी से लड़ने की और महिलाओं को प्रेरणा देने के लिए ही यह फिल्म अपूर्वा बनाई गई है । अभिषेक बनर्जी ने भी फिल्म में बहुत अच्छे से काम किया वैसे उनकी हर भूमिका प्रभावशाली ही रहती है । राजपाल यादव, सुमित और आदित्य अच्छे लगे हैं । फिल्म लगभग एक घंटा 36 मिनट की है और इसकी गति बहुत तेज है, कहीं पर भी कोई रुकावट महसूस नहीं होती है, लगातार अपनी गति से चलती चली जाती है ।

अपूर्वा फिल्म में बस एक ही कमी है कि यह फिल्म देखते समय पहले से ही पता चल जाती है कि इसमें आगे क्या होने वाला है और किस तरह से होगा पिक्चर का क्लाइमेट क्या होगा ? किसी भी फिल्म में ऐसा नहीं होना चाहिए कि पहले से ही पता चल जाये कि फिल्म का अंत क्या होने वाला है ? हम बहुत पहले से ही अगले दृश्य का अनुमान लगा लेते हैं और सच पता चल जाता है इसकी वजह से फिल्म देखने का जो रोमांच होता है उसमें कमी आती है, वैसे अगर आपको खून खराबा वाली या NH10 जैसी कोई रोड पर बनाई गई फिल्में देखना पसंद है तो फिर आप फिल्म देख सकते हैं, अच्छी लगेगी । फिल्म के निर्माता मुराद खेतानी और स्टार स्टूडियो ने निर्देशक निखिल नागेश भट्ट को एक ऐसी फिल्म बनाने का मौका दिया है जिसके लिए मुंबई के आम फिल्म निर्माता शायद ही कभी तैयार हो पाते । निखिल ने निर्माता निर्देशक अनुराग कश्यप के सहायक के रूप में काफी वक्त गुजारा है जिसके कारण वह काफी अच्छी फिल्में बनाते भी हैं लेकिन अपने कलाकारों के औसत प्रदर्शन के चलते उनको उनकी फिल्में अभी तक कोई सही मुकाम नहीं दे सकी हैं लेकिन निखिल के लिए यह फिल्म एक ठोस पहचान बन सकती है । इस तरह की हिंसात्मक फिल्मों ने विश्व सिनेमा में अपनी अलग एक श्रेणी स्थापित की है और मसाला फिल्मों से निराश हुए दर्शक इन फिल्मों के बेहतर दर्शक होते हैं और इस तरह की फिल्में इसके कलाकारों को अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का बेहतरीन मौका भी देती हैं ।

निखिल नागेश भट्ट ने फिल्म अपूर्वा की कहानी करीब 14 साल पहले लिखी और यह फिल्म की कहानी मात्र इतनी सी ही है कि शादी तय हो जाने के बाद एक युवती अपने प्रेमी के शहर में जाने का सोचती है, जहाँ पर वो बैंक में काम करता है, वहां पर उसके जन्मदिन का सरप्राइज देने बस से जाती है और उसका अपहरण हो जाता है और एक पूरी रात में कैसे हमलावरों से बचने की कोशिश करती है । पूरी फिल्म बस इसी छोटे से पॉइंट पर बनी हुई है । फिल्म की पटकथा लिखने में बहुत बडा कमाल किया है और एक छोटी सी कहानी पर करीब पौने दो घंटे की फिल्म बनाने में कामयाबी हासिल की है, सिर्फ एक लोकेशन है और मुख्य कलाकार भी सिर्फ एक ही है । कहानी के अंत का दर्शकों को पहले से ही आभास हो जाता है इसके बावजूद भी दर्शकों के सामने ऐसी ऐसी घटनाएं और द्रश्य आते हैं जिससे कि उनके मन में रहस्य, रोमांच और डर पैदा होता रहता है । निखिल का निर्देशन यहां भी बहुत काबिले तारीफ है कि अपूर्वा फिल्म में राजपाल यादव को छोड़कर बाकी कोई इतना सधा हुआ कलाकार नहीं है । मुझे लगता है कि अगर अपूर्वा  फिल्म को राजपाल यादव की फिल्म कहा जाये  तो उचित ही होगा, जंगल का सिप्पा अगर आपको याद हो तो समझा जा सकता है कि राजपाल की अभिनय क्षमता का पूरा इस्तेमाल हिंदी सिनेमा में अभी तक कम ही हुआ है, अधिकतर फिल्मों में एक कार्टून टाइप कॉमेडी कलाकार बना दिए जाने वाले राजपाल यादव ने एक खूंखार अक्रूर लुटेरे के गैंग लीडर का किरदार निभाया है । गाड़ी को साइड न देने वाले, गाड़ी को ओवरटेक न करने देने वाले ड्राइवर को गोली मार देने के किस्से उत्तर भारत में आम हैं लेकिन जिस तरह से राजपाल का किरदार जुगनू भैया यहां बस के सहायक को मारता है और उस समय राजपाल यादव के चेहरे पर जिस तरह के भाव रहते हैं वह देखने लायक होते हैं, कुछ कुछ गब्बर जैसा लगता है उनका किरदार, छोटी कदकाठी वाले कलाकार को खलनायक के रूप में पर्दे पर इस तरह का रोल बड़ा अहम् होता है और मौजूद समय के निर्माता निर्देशक समझ पाए तो राजपाल यादव के लिए यहां से हिंदी सिनेमा में नई पारी की शुरुआत भी हो सकती है ।

मेरे हिसाब से इस तरह की फिल्मों में एक ऐसा गाना जरूर होना चाहिए जो दहशत के माहौल में, रात के अंधेरे में अगर बजे तो माहौल पूरा बदल जाये लेकिन इस फिल्म अपूर्वा का संगीत औसत से भी कम है । इसमें एक हांटिंग सॉन्ग तो जरुर होना ही चाहिए । फिल्म में एक सन्देश यह भी दिया गया है कि हालात चाहें कैसे भी हो लड़कियां अगर अपना हौसला ना खोएं तो उन्हें समझना चाहिए कि हर अंधेरी सुरंग के दूसरी तरफ रोशनी जरूर होती है । देखने लायक फिल्म है और एक बार तो जरुर ही देखनी चाहिए । मेरी तरफ से इस फिल्म को अंक हैं 3 ।

सीमा सक्सेना, बरेली